सूरी हत्याकांड की एफआर फिर खारिज, डीआइजी को जांच के आदेश

अधिवक्ता राजेश सूरी हत्याकांड मामले में न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एसआइटी की फाइनल रिपोर्ट (एफआर) को निरस्त करते हुए डीआइजी गढ़वाल रेंज को मामले की जांच करने के आदेश जारी किए हैं। इस मामले में कोर्ट पहले भी पुलिस की एफआर को निरस्त कर चुकी है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 04:22 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 04:22 PM (IST)
सूरी हत्याकांड की एफआर फिर खारिज, डीआइजी को जांच के आदेश
एसआइटी की फाइनल रिपोर्ट (एफआर) को निरस्त करते हुए डीआइजी गढ़वाल रेंज को जांच करने के आदेश जारी किए हैं।

जागरण संवाददाता, देहरादून : अधिवक्ता राजेश सूरी हत्याकांड मामले में न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एसआइटी की फाइनल रिपोर्ट (एफआर) को निरस्त करते हुए डीआइजी गढ़वाल रेंज को मामले की जांच करने के आदेश जारी किए हैं। पुलिस जांच की फाइनल रिपोर्ट पर मृतक राजेश सूरी की बहन रीता सूरी ने आपत्ति जाहिर करते हुए मामले की फिर से जांच करने की अपील की थी। इस मामले में कोर्ट पहले भी पुलिस की एफआर को निरस्त कर चुकी है।

कांवली रोड, देहरादून निवासी रीता सूरी ने शिकायत दर्ज करवाई थी कि उनके भाई राजेश कुमार सूरी की जुलाई 2014 में उच्च न्यायालय से लौटते समय जहर देकर हत्या कर दी गई थी। रीता सूरी के अनुसार, राजेश सूरी ने कुछ व्यक्तियों की ओर से किए गए घोटालों का पर्दाफाश किया था। घोटालों के संबंध में याचिका व मुकदमे दर्ज किए गए थे। ऐसे में कुछ व्यक्ति राजेश सूरी के साथ रंजिश रखने लगे। आरोपितों ने राजेश सूरी के खिलाफ झूठे मुकदमे भी दर्ज करवाए, जिनमें न्यायालय ने सुनवाई के बाद उन्हें दोषमुक्त कर दिया।

राजेश सूरी ने आरोपितों की ओर से मिल रही धमकियों के संबंध में खतरे को देखते हुए अपनी सुरक्षा की मांग की थी। इस संबंध में एक लिखित पत्र सीलबंद लिफाफे में एडीएम फाइनेंस को दिया। मामले की जांच कर रहे विवेचक की ओर से बंद लिफाफे के संबंध में कोई विवेचना नहीं की गई जोकि मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य है। मामले में हत्या की गुत्थी सुलझाने में मददगार साबित हो सकेगा। शिकायतकर्ता ने बताया कि लिफाफे को प्राप्त करने का प्रयास किया गया, लेकिन न्यायालय की अनुमति लिए बिना एडीएम ने लिफाफे को देने से इन्कार कर दिया।

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रीता सूरी ने बताया कि मामला हाई प्रोफाइल होने के बावजूद पुलिस ने मामले में लापरवाही बरती और आरोपितों को बचाने का प्रयास किया है। हाईकोर्ट की ओर से मामले की जांच जब एसआइटी से करवाई गई तो एसआइटी ने महत्वपूर्ण सबूतों की अनदेखी व प्राप्त सबूतों का गहनता से परीक्षण किए बिना दिसंबर 2020 को जांच समाप्त करते हुए अंतिम आख्या कोर्ट में दाखिल कर दी। इसके खिलाफ आपत्ति पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने एफआर को निरस्त कर दिया।

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