साधकों ने जाना स्वस्थ तन, मन व निरोगी काया का राज

अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव में योग साधक प्राचीन भारतीय योग पद्धति की विभिन्न विधाओं से रूबरू हुए। साधकों ने योग क्रियाओं और आसनों के जरिए स्वस्थ तन मन और निरोगी काया का राज भी जाना।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 08:58 PM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 08:58 PM (IST)
साधकों ने जाना स्वस्थ तन, मन व निरोगी काया का राज
साधकों ने जाना स्वस्थ तन, मन व निरोगी काया का राज

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश: अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव में योग साधक प्राचीन भारतीय योग पद्धति की विभिन्न विधाओं से रूबरू हुए। साधकों ने योग क्रियाओं और आसनों के जरिए स्वस्थ तन, मन और निरोगी काया का राज भी जाना।

गढ़वाल मंडल विकास निगम व उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव के चौथे दिन मुनिकीरेती में गंगा तट पर स्थित गंगा रिसॉर्ट में योग साधकों ने विभिन्न योगासनों का अभ्यास किया। प्रात:कालीन सत्र में आर्ट ऑफ लिविग के मोहित सती ने मुख्य पांडाल में अष्टांग योग एवं सूक्ष्म व्यायाम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हमारे जीवन के हर पहलू में योग छिपा हुआ है, जाने अनजाने हमारी दिनचर्या के पूरे क्रियाकलाप योग से जुड़ते हुए जीवन के अविभाज्य अंग बने हुए हैं। योग केवल शरीर पर ही काम नहीं करता वरन यह मन को शक्ति प्रदान कर तनावरहित बनाता है। उन्होंने कहा कि कमजोर शरीर को शक्तिशाली मन चला सकता है, परंतु एक शक्तिशाली शरीर को कमजोर मन नहीं चला सकता। इसलिए योग क्रियाओं के द्वारा मन को स्थिर रखते हुए शारीरिक एवं मानसिक विकारों से मुक्ति पाने का उपक्रम ही योग है। अष्टांग योग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके आठ अंग हैं। जिन्हें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, प्रतिहार और समाधि के रूप में भले ही अलग-अलग देखा जाता है। मगर ये एक दूसरे से जुडे हुए हैं। पहले छह को जोड़कर ध्यान लगता है और तब वह समाधि की और जाता है। उन्होंने कहा कि घरों में काम करने वाली महिलाएं अपने दिनभर की दिनचर्या के दौरान जो काम करती हैं, उस प्रक्रिया में भी जाने अनजाने योग छिपा हुआ रहता है। योग सिर्फ आसन नहीं है वरन यह मन, श्वास व शरीर को जोड़ने वाली कला है।

दूसरी तरफ नगर पालिका हाल में हठ योगी संत स्वामी जीतानन्द ने अभयांतर क्रिया योग, दंड क्रिया, संकुचन प्रसारण, पाद ग्रिहवा योग का अभ्यास कराया। इसकी उपयोगिता के बारे में उन्होंने कहा कि यह क्रिया शरीर को स्वस्थ रखने में इतनी सहायक है कि अन्य योगों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। यदि व्यक्ति इन योग क्रियाओं को करता रहे तो उसके जीवन में आरोग्यता का साम्राज्य स्थापित हो जायेगा।

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रक्तसंचार धीमा होने से अंगों में आते हैं विकार

गढ़वाल मंडल विकास निगम के लाइट एंड साउंड हाल में उत्तराखंड संस्कृत विवि के प्रो. डॉ. लक्ष्मी नारायण जोशी ने कहा कि शरीर की धमनियों में रक्त संचार से कोई भी अंग सहजता से काम करता रहता है, लेकिन जिस दिन रक्त संचार की यह सहजता धीमी पड़ जाए तो अंगों में विकार उत्पन्न हो जाता है। इसलिए योग से शरीर के पूरे तंत्र को ठीक रखा जा सकता है। ताकि सारे अंग प्रत्यंग सही व सुचारू रूप से काम करते रहें। उन्होंने कहा कि नाड़ी चिकित्सा विज्ञान तीन सिद्धांतों पर काम करता है। पहला-हृदय से शरीर के अंगों को निर्बाध गति से रक्त की आपूर्ति करना, दूसरा-मस्तिष्क से निकलने वाली नाड़ियों द्वारा रक्त की आपूर्ति सभी अंगों को मिलते रहना व तीसरा-प्राण ऊर्जा की आपूर्ति का शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाते रहना।

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पिरामिड ध्यान केंद्र बना आकर्षण

योग महोत्सव में पिरामिड स्पिरिचुअल सोसाइटीज मूवमेंट दिल्ली की ओर से विशेष रूप से पिरामिड ध्यान शक्ति योग केंद्र योग साधकों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। जहां योग साधकों को ध्यान योग के बारे में बताया जा रहा है। संस्था की विभा गुप्ता व शक्ति गुप्ता ने बताया गया कि ध्यान योग हमें स्वयं की सांसों से जोड़ना सिखाता है। सांसें सदा हमारे साथ हैं और मृत्यु पर्यन्त हमारे साथ रहेंगी। परंतु हम उनके साथ कभी नहीं रहे। हम सांसों के साथ रहना सीख रहें हैं, हमें सहज सांसों को सहज रूप में सहज भाव से साक्षी होकर देखना है। क्योंकि सांस ही हमारी गुरु और मित्र दोनों हैं। जब गुरु मित्र बन जाय तो हमें अपनी समस्या के समाधान के लिए किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं होती।

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