अपने फैसलों की पैरवी में उतरे पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, बोले- मेरी सरकार के फैसलों के पीछे विधायकों की भी थी सहमति

गैरसैंण कमिश्नरी और देवस्थानम बोर्ड के अपनी सरकार के फैसले को लेकर शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने न सिर्फ तर्क रखे बल्कि इस बारे में तीरथ सरकार के नजरिये को नई सरकार की सोच और निर्णय बताया।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 11 Apr 2021 06:30 AM (IST) Updated:Sun, 11 Apr 2021 06:30 AM (IST)
अपने फैसलों की पैरवी में उतरे पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, बोले- मेरी सरकार के फैसलों के पीछे विधायकों की भी थी सहमति
उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनके कार्यकाल में लिए गए फैसलों में वर्तमान तीरथ सरकार द्वारा की जा रही तब्दीली पर अब सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी है। गैरसैंण कमिश्नरी और देवस्थानम बोर्ड के अपनी सरकार के फैसले को लेकर शनिवार को उन्होंने न सिर्फ तर्क रखे, बल्कि इस बारे में तीरथ सरकार के नजरिये को नई सरकार की सोच और निर्णय बताया। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके द्वारा ये फैसले व्यापक जनहित में लिए गए। इनके पीछे ठोस आधार के साथ ही विधायकों की सहमति भी थी।

प्रदेश सरकार में परिवर्तन के बाद तीरथ सिंह रावत ने कमान संभाली तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के फैसलों को लेकर भी किंतु-परंतु के सुर उभरने लगे थे। खासकर, गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा पर विपक्ष तो पहले ही मुखर था, भाजपा के भीतर भी सुगबुगाहट थी। नेतृत्व परिवर्तन के बाद त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे डा.हरक सिंह रावत और राज्यमंत्री रेखा आर्य ने गैरसैंण कमिश्नरी को लेकर सवाल उठाए थे। कैबिनेट मंत्री रावत का यह तक कहना था कि इस घोषणा के बारे में कोई राय तक नहीं ली गई। यही नहीं, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी जनभावनाओं के अनुरूप इस बारे में निर्णय लेने व देवस्थानम बोर्ड के संबंध में पुनर्विचार की बात कही। बीते रोज ही कैबिनेट ने गैरसैंण कमिश्नरी के निर्णय को स्थगित करने पर मुहर लगाई।

इस परिदृश्य के बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत न सिर्फ अपने फैसलों की पैरवी में उतरे हैं, बल्कि इनमें की जा रही तब्दीली पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी भी जाहिर की है। शनिवार को डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास पर पत्रकारों से बातचीत में रावत ने कहा कि गैरसैंण कमिश्नरी बनाने का निर्णय ग्रीष्मकालीन राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास और भविष्य की सोच के साथ लिया गया था। हम चाहते थे कि यह कमिश्नरी गढ़वाल व कुमाऊं की मिली-जुली संस्कृति का नया प्रयाग बने।

पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि सदन में कमिश्नरी की घोषणा से पहले उन्होंने वहां के विधायकों की राय ली थी, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि इस तरह के सवाल भी उठेंगे। सभी का कहना था कि इसे लेकर किसी तरह की आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि गैरसैंण राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। गैरसैंण के भावी विकास की दृष्टि से यह जरूरी भी था। गैरसैंण राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास के लिए 10 साल के लिए 25 हजार करोड़ का रोडमैप बनाया गया था, जिस पर काम भी शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि गैरसैंण में नियमित रूप से विधानसभा सत्र होंगे। ऐसे में वहां कानून व्यवस्था बनाने, जनता की मांगों के त्वरित निराकरण और क्षेत्र के सुनियोजित विकास को वरिष्ठ आइएएस व आइपीएस के नियमित रूप से बैठने के लिए गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की सोच थी।

रावत ने कहा कि पूर्व में कुछ व्यक्तियों ने पिथौरागढ़ को नई कमिश्नरी में शामिल करने को कहा था, जिस पर विचार की बात कही गई थी। उन्होंने कहा कि जहां तक संस्कृति का सवाल है तो अल्मोड़ा को निश्चित तौर पर कुमाऊं का सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है, मगर संस्कृति गंगा की तरह है। उसमें जो भी मिल जाए, मगर वह कभी अपना रूप नहीं बदलती बल्कि उसे आत्मसात कर लेती है। उन्होंने कहा कि जहां तक कैबिनेट का गैरसैंण कमिश्नरी को स्थगित करने का निर्णय है तो उस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। यह सरकार की अपनी सोच और निर्णय है।

बोर्ड में नहीं जोड़ा एक भी नया मंदिर

सरकार द्वारा चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार की बात कहे जाने के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि बदरीनाथ व केदारनाथ तो पहले से बदरी-केदार मंदिर समिति के जरिये एक एक्ट से संचालित होते हैं। इसके तहत 51 मंदिर हैं। हमने एक भी नया मंदिर बोर्ड में नहीं जोड़ा। उन्होंने कहा कि यमुनोत्री धाम को एसडीएम की देखरेख में संचालित किया जाता है। वर्ष 2003 तक गंगोत्री धाम भी प्रशासक के तौर पर एसडीएम की देखरेख में संचालित होता था। अब किन कारणों से यह व्यवस्था बदली, उसके लिए पिछला अध्ययन करना पड़ेगा। देवस्थानम बोर्ड का मकसद सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए बेहतर व्यवस्था बनाना था। मंदिर समितियों ने भी वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर यहां भी बोर्ड बनाने का सुझाव दिया था। यहां तक कि पूर्णागिरि व चितई के लिए भी समितियां ऐसी व्यवस्था चाहती रहीं। उन्होंने कहा कि हमने वर्षों से मंदिरों में पूजा अर्चना कर रहे पंडों, पुरोहितों और हक-हकूकधारियों के हितों से कोई छेड़छाड़ नहीं की।

महालक्ष्मी जैसा व्यापक नाम मिला

एक सवाल पर उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में जच्चा-बच्चा के लिए सौभाग्यवती किट योजना शुरू करने का निर्णय लिया गया था। अब कैबिनेट ने इसका नाम बदलकर महालक्ष्मी कर दिया है। अच्छा है कि योजना को महालक्ष्मी जैसा व्यापक नाम मिला है। एक अन्य प्रश्न पर उन्होंने कहा कि कोविड संक्रमण की रोकथाम के लिए सभी को विशेषज्ञों की राय पर चलना चाहिए। कोविड के नियमों का गंभीरता से पालन करते हुए संभलकर चलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देहरादून व हरिद्वार में कोविड संक्रमण की रोकथाम को सरकार सख्ती बरत रही है तो वह जनता के हित में है।

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