उत्तराखंड: लालढांग-चिलरखाल सड़क के निर्माण को फिर केंद्र में दस्तक, गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ती है ये रोड

Kandi Road गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल-लालढांग वन मार्ग) के चिलरखाल (कोटद्वार)-लालढांग (हरिद्वार) हिस्से के निर्माण के लिए सरकार ने फिर कवायद शुरू कर दी है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 02:57 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 02:57 PM (IST)
उत्तराखंड: लालढांग-चिलरखाल सड़क के निर्माण को फिर केंद्र में दस्तक, गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ती है ये रोड
लालढांग-चिलरखाल सड़क के निर्माण को फिर केंद्र में दस्तक।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल-लालढांग वन मार्ग) के चिलरखाल (कोटद्वार)-लालढांग (हरिद्वार) हिस्से के निर्माण के लिए सरकार ने फिर कवायद शुरू कर दी है। राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे इस क्षेत्र में सड़क के निर्माण और पुलों की ऊंचाई पांच मीटर रखे जाने के मद्देनजर अब राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को प्रस्ताव भेजा जा रहा है। राज्य वन्यजीव बोर्ड ने हाल में ही इस प्रस्ताव पर सहमति जताई थी।

मौजूदा राज्य सरकार की प्राथमिकता में शुमार रही कंडी रोड के निर्माण के मद्देनजर पूर्व में इसके गैर विवादित रहे लालढ़ांग- चिलरखाल हिस्से को बनाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए लोनिवि को कार्यदायी संस्था नामित करने के साथ ही उसे गैर वानिकी कार्यों के लिए छह हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित की गई। लोनिवि ने सड़क का डामरीकरण कराने के साथ ही कुछ पुलों का निर्माण भी शुरू कराया।

इस बीच यह मामला एनजीटी में पहुंचा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की इंपावर्ड कमेटी ने भी इसका संज्ञान लिया। वजह ये कि ये मार्ग राजाजी टाइगर रिजर्व से सटा हुआ है। बाद में इंपावर्ड कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। सुप्रीम कोर्ट ने कार्य पर रोक लगा दी थी। साथ ही सरकार को यह राहत दी थी कि यदि वह सड़क बनाना चाहती है तो सभी मानकों को पूरा करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से नए सिरे से अनुमति ले।

इसके बाद सरकार ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को नए सिरे से इस सड़क का प्रस्ताव भेजा। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पांच अक्टूबर को हुई 59 वीं बैठक में राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने इस सड़क को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की शर्तों को संशोधित करने का आग्रह किया। इसे स्टैंडिंग कमेटी ने स्वीकार नहीं किया। प्राधिकरण ने शर्त लगाई है कि इस मार्ग पर वन्यजीवों की सुगम आवाजाही के मद्देनजर जो भी पुल बनेंगे, उनकी ऊंचाई कम से कम सात मीटर होनी चाहिए। उत्तराखंड पुलों की ऊंचाई पांच मीटर चाहता है। ऐसे में यह मसला फिर लटक गया।

हाल में हुई राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इस सड़क का मसला फिर से रखा गया। तर्क दिया गया कि हाथी बहुल ऋषिकेश रेंज में रेलवे द्वारा नदी पर जो पुल बनाया गया है, उसका अंडर पास 4.5 मीटर है। ऐसे में लालढांग-चिलरखाल मार्ग पर पुल के अंडरपास की ऊंचाई पांच मीटर तक ही सीमित रखी जानी चाहिए। राज्य वन्यजीव बोर्ड ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। अब इसे अनुमोदन के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को भेजा जाएगा। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार जल्द ही यह प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को भेज दिया जाएगा।

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