मोक्ष ही आसानी से दिला दीजिए: जीते जी इलाज को काटे अस्पतालों के चक्कर, मौत के बाद भी करना पड़ रहा है सफर

श्मशान घाट। वह स्थान जहां जीवन का सफर समाप्त होता है। विडंबना देखिए कि कोरोना संक्रमितों को इस अंतिम पड़ाव में भी सफर करना पड़ रहा। जीते जी इलाज को एक से दूसरे अस्पताल तक दौड़े और अब अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट में कतार लगानी पड़ रही है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 03:45 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 03:45 PM (IST)
मोक्ष ही आसानी से दिला दीजिए: जीते जी इलाज को काटे अस्पतालों के चक्कर, मौत के बाद भी करना पड़ रहा है सफर
मोक्ष ही आसानी से दिला दीजिए: जीते जी इलाज को काटे अस्पतालों के चक्कर।

विजय मिश्रा, देहरादून। श्मशान घाट। वह स्थान, जहां जीवन का सफर समाप्त होता है। विडंबना देखिए कि कोरोना संक्रमितों को इस अंतिम पड़ाव में भी सफर (परेशानी का सामना) करना पड़ रहा है। जीते जी इलाज को एक से दूसरे अस्पताल तक दौड़े और अब अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट में कतार लगानी पड़ रही है। उनके स्वजनों को अपनों को खोने के गम के बीच लूट-खसोट से जूझना पड़ रहा है। श्मशान घाट के भीतर अंतिम क्रिया कराने वाले मनमानी कर रहे हैं और बाहर एंबुलेंस वाले। घाट में बैठने के लिए छायादार स्थान और पेयजल तक सुलभ नहीं है। लोग सवाल कर रहे हैं कि साहब इन हालात में भी ध्यान नहीं देंगे तो कब देंगे। सवाल वाजिब भी है। इससे पहले विदेशों में भी ऐसी तस्वीरें देखी जा चुकी हैं। तब सीख नहीं ली न सही, अब तो गौर कर लीजिए। मौत के बाद तो भागदौड़ से मोक्ष मिले। 

भव्यता का त्याग कीजिए, जिम्मेदार बनिए 

विवाह समारोह भव्य हो, हर किसी की ख्वाहिश होती है। मगर, हालात वर्तमान जैसे हों तो भव्यता का त्याग ही ख्वाहिश होनी चाहिए। तंत्र की कोशिश भी यही है। इसीलिए फिलहाल किसी शादी समारोह में अधिकतम 25 लोग ही शामिल हो सकते हैं। इस दिशा में कुछ प्रदेशवासियों ने तंत्र से भी एक कदम आगे बढ़कर फिलहाल के लिए ऐसे समारोहों को रद ही कर दिया है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पाबंदियों को नजरअंदाज करने में शान समझ रहे हैं। गत दिवसों में ऐसे ही दो मामले उत्तरकाशी और टिहरी में सामने आए। दूल्हा पक्ष के लोग शादी की खुशियों में ऐसे डूबे कि बरातियों की संख्या का भी ख्याल नहीं रहा। एक मामले में दूल्हे के भाई पर मुकदमा दर्ज हुआ तो दूसरे में दूल्हे के पिता पर। शायद अब इनको समझ आ गया होगा कि कोरोना संक्रमण को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं है। 

अच्छी है यह पहल, जारी रखिए 

बीते वर्ष उत्तराखंड समेत कई राज्यों के प्रवासियों को उनके घर पहुंचाकर रियल हीरो बने अभिनेता सोनू सूद का मदद का मिशन अभी भी जारी है। इस बार सोनू सूद दून की एक गर्भवती महिला की मदद के लिए आगे आए। इससे पहले उत्तराखंड की बेटी अभिनेत्री उर्वशी रौतेला ने मुंबई से ही प्रदेश के लिए 27 ऑक्सीजन कंसनट्रेटर की व्यवस्था की। इसके अलावा विभिन्न संगठन और कुछ लोग एकाकी रूप से भी कोरोना संक्रमितों से लेकर उनके स्वजनों तक मदद पहुंचाने में जुटे हैं। ऐसे वाकये मन को सुकून देते हैं। यह प्रमाण हैं कि इस मुश्किल दौर में भी समाज में सेवा भाव जागृत है। सोनू और उर्वशी से प्रदेश की अन्य सक्षम हस्तियों को भी सीख लेनी चाहिए। उन्हें इस संकटकाल में जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। उनकी आवश्यकताओं का दायित्व उठाना चाहिए। नायक वही है, जो संकट के दौर में आगे आकर समाज को दिशा दिखाए। 

भावनाओं को संक्रमण से बचाकर रखिए 

कोरोना ने समाज के एक वर्ग की भावनाओं को भी संक्रमित कर दिया है। जब लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं तो यह वर्ग कालाबाजारी में जुटा है। 36 घंटे का एंबुलेंस का किराया 80 हजार रुपये। 1200 रुपये कीमत वाला पल्स ऑक्सीमीटर 2200 का। 1000 रुपये कीमत वाला ऑक्सीजन सिलिंडर 2000 का। चार से पांच हजार रुपये वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन 25 हजार का। ये चंद उदाहरण हैं कालाबाजारी के। जिसका शिकार जनता को इन दिनों सबसे ज्यादा होना पड़ रहा है।

तंत्र ऐसे मुनाफाखोरों पर कार्रवाई तो कर रहा है, मगर वह ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। सैकड़ों मुनाफाखोरों में कुछेक तक ही तंत्र पहुंच पा रहा है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच इस पर लगाम कसना थोड़ा मुश्किल है, मगर अधिकारियों को प्रयास बढ़ाने होंगे। जनता तक आवश्यक चिकित्सकीय उपकरणों की पहुंच सुलभ करनी होगी। तभी समाज इस विकट स्थिति से उबर पाएगा। 

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