सोन चिरैया के अस्तित्व पर संकट, 150 रह गई संख्या

ब्रिटिशकाल में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या 13सौ तक आंकी गई थी, जबकि इनकी तादाद आज महज 150 रह गई है। इस बात का खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान के ताजा शोध में हुआ।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 18 Sep 2018 07:53 PM (IST) Updated:Wed, 19 Sep 2018 04:17 PM (IST)
सोन चिरैया के अस्तित्व पर संकट, 150 रह गई संख्या
सोन चिरैया के अस्तित्व पर संकट, 150 रह गई संख्या

देहरादून, [जेएनएन]: जिस सोन चिरैया का नाम कभी मोर के साथ भारत के राष्ट्रीय पक्षी के लिए प्रस्तावित था, उनका कुनबा आज अस्त्वि के गंभीर संकट से जूझ रहा है। ब्रिटिशकाल में सोन चिरैया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की संख्या 13सौ तक आंकी गई थी, जबकि इनकी तादाद आज महज 150 रह गई है। इस बात का खुलासा भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के ताजा शोध में हुआ।

डब्ल्यूआइआइ में चल रहे राष्ट्रीय सेमिनार में इस शोध पर प्रस्तुतीकरण देते हुए प्रोजेक्ट एसोसिएट सुथिर्ता दत्ता ने बताया कि जो सोन चिरैया एक समय में उत्तर प्रदेश समेत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओढिय़ा व तमिलनाडु राज्य के चारागाहों की शान हुआ करती थी, वे आज सिमटकर राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक तक रह गई है। इस 150 की संख्या में भी 120 सोन चिरैया सिर्फ राजस्थान के जैसलमेर के थार में ही रिकॉर्ड की गई है।

शेष राज्य में इक्का दुक्का ही  नजर आ रही हैं। ब्रिटिशकाल में शिकार के कारण सोन चिरैया की संख्या में कमी आने लगी। अस्तित्व के इसी संकट के चलते इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज ने सोन चिरैया को संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में रखा है। आज यह संकट इसलिए भी गहरा गया है कि इनके प्रमुख वास स्थल घास के मैदान सिमटने लगे हैं। इसके अलावा सोन चिरैया की सीधे देखने की क्षमता कम होती है, ऐसे में बिजली के तारों से टकराकर भी इनकी मौत हो रही है। यदि इसी दर से इनकी मौत होती रही तो निकट भविष्य में सोन चिरैया का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो जाएगा।

पाकिस्तान में मांस के लिए शिकार

वैज्ञानिकों के अनुसार भारतीय सीमा से सटे पाकिस्तानी क्षेत्रों में सोन चिरैया का शिकार मांस के लिए किया जाता है। लंबे क्षेत्र में विचरण करने की प्रवृत्ति के कारण अक्सर सोन चिरैया पाकिस्तानी क्षेत्र में भी प्रवेश कर जाती हैं।

संरक्षण को दी संस्तुतियां

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने सोन चिरैया के संरक्षण के लिए इनके वासस्थलों पर बिजली लाइनों को भूमिगत करने का सुझाव दिया। इसके साथ ही इनके वासस्थलों को हिस्सों में बांटकर संरक्षित करने की संस्तुति भी की गई है। 

इसलिए नहीं मिला राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा

वैज्ञानिकों के अनुसार जब सोन चिरैया का नाम राष्ट्रीय पक्षी के रूप में प्रस्तावित किया गया तो प्रख्यात भारतीय पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने भी इस बात का समर्थन किया था। हालांकि तब यह आशंका जाहिर की गई कि इसके नाम में 'बस्टर्ड' जुड़ा होने से लोग इसका गलत उच्चारण कर सकते हैं। 

सोन चिरैया की खासियत

-शुतुरमुर्ग की भांति लंबी गर्दन, लंबी नंगी टांगें होती हैं।

-इनकी लंबाई करीब एक मीटर व वजन 10 से 15 किलोग्राम के बीच होती है।

-सोन चिरैया में 20 से 100 मीटर तक की ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता होती है।

-ये करीब 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल तक में विचरण करते हैं।

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