उत्तराखंड के सपूतों ने बढ़ाया मान, अकादमी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मिलने वाले दो अहम पुरस्कार इन सपूतों ने किए हासिल

उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के लोकगीतों में शूरवीरों की जिन वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है पराक्रम के वह किस्से देश-विदेश तक फैले हैं। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 10:30 AM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 10:30 AM (IST)
उत्तराखंड के सपूतों ने बढ़ाया मान, अकादमी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मिलने वाले दो अहम पुरस्कार इन सपूतों ने किए हासिल
देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं।

जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के लोकगीतों में शूरवीरों की जिन वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है, पराक्रम के वह किस्से देश-विदेश तक फैले हैं। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं। यही कारण है कि आइएमए से पासआउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है। वहीं भारतीय सेना का हर पाचवां जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है। इस बार की पासिंग आउट परेड में भी उत्तराखंडी जोश नुमाया हुआ। अकादमी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मिलने वाले दो अहम पुरस्कार इस बार देवभूमि के सपूतों ने हासिल किए हैं।

स्वर्ण पदक से नवाजे गए दीपक सिंह प्रदेश की सैन्य परंपरा के संवाहक हैं। उनके पिता त्रिलोक सिंह फौज से हवलदार पद पर रिटायर हुए हैं। उनका परिवार ध्याड़ी गांव अल्मोड़ा का रहने वाला है। शुरुआत से ही सैन्य परिवेश में रहे दीपक की इच्छा थी कि वह सैन्य अफसर बनें। उनकी प्रारंभिक शिक्षा राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल, बैैंगलोर से हुई और लगन व परिश्रम उन्होंने एनडीए की प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल की। अब न केवल उनका सपना पूरा हो गया है बल्कि आइएमए में रहकर उन्होंने अपनी काबिलियत भी साबित की। शनिवार को उन्हें बतौर परेड कमांडर, परेड का नेतृत्व करने का भी मौका मिला।

रजत पदक (टीजी) हासिल करने वाले दक्ष कुमार पंत भी उत्तराखंड से हैं। उनके पिता ब्रिगेडियर हेमंत कुमार पंत फिलवक्त पुणे में तैनात हैं। पंत परिवार मूल रूप से सर्प गांव अल्मोड़ा का रहने वाला है। दक्ष ने एसआरएम विश्वविद्यालय चैन्नई से बीटेक किया हुआ है। वह चाहते तो किसी निजी कंपनी में नौकरी कर सकते थे। पर फौजी वर्दी की ललक ने उनकी जिंदगी का रुख मोड़ दिया।

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सैन्य परम्परा के वाहक स्वार्ड आफ आनर विजेता

जज्बा ही है जो इंसान को सबसे अलग खड़ा करता है। पुरस्कार विजेता कैडेट भी इसी जज्बे से ओतप्रोत दिखे। स्वार्ड आफ आनर से नवाजे गए मुकेश कुमार सैन्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं। सीकर राजस्थान निवासी मुकेश के पिता मनोहर लाल फौज से बतौर नायक सेवानिवृत्त हुए हैं। उनके बड़े भाई मनीष वायुसेना में कोपल हैं। वहीं उससे छोटे भाई महेश कुमार सेना में कैप्टन। मुकेश भी अब फौज में अफसर बन गए हैं।

किसान के बेटे ने पाया मुकाम

कांस्य पदक विजेता मोगा पंजाब निवासी लवनीत सिंह एक सामान्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं। उनके पिता रूपेंद्र सिंह कृषक हैं। वहीं मां परवीन कौर ग्रहणी। लवनीत की इच्छा फौज में अफसर बनने की थी और अपनी मेहनत के बूते यह मुकाम उन्होंने हासिल कर लिया है।

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