जंगल की बात : तो अब शांत रहेंगे गजराज, क्‍योंकि जंगल में ही होगा पानी का इंतजाम

हरिद्वार क्षेत्र में तीन उत्पाती हाथियों पर रेडियो कालर लगाकर किए जा रहे अध्ययन में बात सामने आई कि ये तो हलक तर करने को आबादी की तरफ आ रहे हैं। इसके बाद जंगल में पानी की व्यवस्था की गई तो हाथियों का आबादी की तरफ आना थम गया।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 09:33 AM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 09:33 AM (IST)
जंगल की बात : तो अब शांत रहेंगे गजराज, क्‍योंकि जंगल में ही होगा पानी का इंतजाम
राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्र में इस तरह मुख्य मार्ग पर आ रहे थे हाथी।

केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत 12 वन प्रभागों का करीब साढ़े छह हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र। खुशी की बात ये है कि यहां गजराज का कुनबा खूब फल-फूल रहा है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। हाथियों की आबादी वाले क्षेत्रों में धमक और उनका आक्रामक व्यवहार पेशानी पर बल डाले है। इसे देखते हुए सर्वाधिक हाथी प्रभावित हरिद्वार क्षेत्र में तीन उत्पाती हाथियों पर रेडियो कालर लगाकर किए जा रहे अध्ययन में बात सामने आई कि ये तो हलक तर करने को आबादी की तरफ आ रहे हैं। इसके बाद जंगल में ही इनके लिए पानी की व्यवस्था की गई तो हाथियों का आबादी की तरफ आना थम गया। इससे यह भी साफ हुआ कि पानी का इंतजाम हो तो गजराज के कदम जंगल से बाहर नहीं निकलेंगे। जाहिर है, अब इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

कोरोना ने खड़ी की बाधा

राजाजी टाइगर रिजर्व का एक हिस्सा बाघों की दहाड़ से गूंज रहा तो दूसरा हिस्सा इस लिहाज से शांत है। जी हां, बात सोलह आने सच है। रिजर्व के चीला, रवासन, गौहरी क्षेत्रों में बाघों की संख्या चार दर्जन के आसपास है, जबकि दूसरे हिस्से यानी मोतीचूर व धौलखंड क्षेत्र में सिर्फ चार। इनमें भी एक बाघ दिसंबर और दूसरा जनवरी में कार्बेट से यहां लाया गया है। इस क्षेत्र में बाघों का कुनबा बढ़ाने को तीन और बाघ लाए जाने हैं, मगर इस मुहिम में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने बाधा खड़ी कर दी। हालांकि, कार्बेट टाइगर रिजर्व में यहां लाने को बाघ चिह्नित हैं, उन पर नजर भी रखी जा रही, लेकिन फिलवक्त उनकी शिफ्टिंग करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में वन महकमे ने स्वाभाविक तौर पर अपने कदम पीछे खींचे हैं। कोरोना के लिहाज से बाघों के साथ ही वन कर्मियों की सुरक्षा आवश्यक भी है।

वन महकमे की सार्थक पहल

विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों के रखवाले भी कोरोना संक्रमण से त्रस्त हैं। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में वन महकमा करीब आधा दर्जन कार्मिकों को खो चुका है। ऐसे में चिंता बढऩे लगी है। परिस्थितियों को देखते हुए महकमे ने अपने सभी कार्मिकों के टीकाकरण पर फोकस किया है। साथ ही संक्रमण की चपेट में आए वनकर्मियों के लिए आइसोलेशन आदि की दिक्कत न हो, इसके लिए कोटद्वार, रामनगर, हल्द्वानी, देहरादून में आक्सीजन समेत आवश्यक सुविधाओं से युक्त अस्थायी कोविड केयर सेंटर बनाए हैं। इनके लिए 12 आक्सीजन कंसन्ट्रेटर की व्यवस्था की जा रही तो वहां एंबुलेंस, औषधियां, उपकरण आदि का इंतजाम भी किया गया है। यही नहीं, अब वन महकमे ने यह भी निर्णय लिया है कि जरूरत पडऩे पर वन विश्राम गृहों को अस्थायी कोविड केयर सेंटर में तब्दील किया जाएगा। निश्चित रूप से यह वन महकमे की सार्थक पहल है।

जल संरक्षण पर फोकस जरूरी

जंगल की आग ने हर किसी की पेशानी पर बल डाले हुए हैं। यह स्वाभाविक ही है। गत वर्ष अक्टूबर से शुरू हुआ जंगलों के धधकने का क्रम अभी तक बना है। शुक्र इस बात का कि अब नियमित अंतराल में हो रही वर्षा-बर्फबारी से राहत मिल रही, अन्यथा हालात बेहद खराब हो जाते। इस बीच आग के कारणों की पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि वनों में नमी कम होना इसकी मुख्य वजह है। यानी, जंगलों में वर्षा जल संरक्षण के उपाय पूरी गंभीरता के साथ किए गए होते तो शायद आग इतनी न धधकती। खैर, इसका अहसास वन महकमे को हुआ है। उसने जंगलों में वर्षा जल संरक्षण के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही मानसून सीजन में होने वाले पौधरोपण में जल संरक्षण में सहायक प्रजातियों के पौधे लगाने की ठानी है। देखना होगा कि महकमा इसे कितनी गंभीरता से धरातल पर उतारता है।

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