प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा निदेशालयों में खैरियत पूछी तो खैर नहीं

प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा निदेशालयों में इन दिनों कोई गलती से भी खैरियत नहीं पूछ रहा। ऐसा पूछने वाले का हाल सिर मुंडाते ही औले पड़ने सरीखा हो जाता है। शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच कर रहा शिक्षा विभाग परेशान है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Thu, 19 Nov 2020 07:34 AM (IST) Updated:Thu, 19 Nov 2020 07:34 AM (IST)
प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा निदेशालयों में खैरियत पूछी तो खैर नहीं
देहरादून के ननूरखेड़ा स्थित विद्यालय शिक्षा निदेशालय।

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा निदेशालयों में इन दिनों कोई गलती से भी खैरियत नहीं पूछ रहा। ऐसा पूछने वाले का हाल सिर मुंडाते ही औले पड़ने सरीखा हो जाता है। शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच कर रहा शिक्षा विभाग परेशान है। प्रमाणपत्रों की जांच के लिए संबंधित विश्वविद्यालयों में विभागीय अधिकारी दौड़-भाग कर रहे हैं। कोरोना महामारी को देखते हुए विश्वविद्यालयों में इन अधिकारियों को एंट्री नहीं मिल रही है। उन्हेंं चिट्ठी-पत्री तक ड्रॉप बॉक्स में छोडऩे को कहकर लौटा दिया जाता है। किसी तरह मशक्कत कर विभाग का पत्र विश्वविद्यालय के अधिकारियों तक पहुंचता है तो प्रमाणपत्रों की जांच के लिए अच्छी खासी फीस मांगी जा रही है। मामला सौ-पचास का हो तो कोई बात नहीं, लेकिन 60 हजार शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच होनी है। विभाग के हाथ-पांव फूले हैं। जांच में देरी होने पर हाईकोर्ट की भृकुटी तन रही है। आगे कुंआ पीछे खाई जैसे हालात हैं।

समान वेतन संग चलाया डंडा

समान पद समान वेतन के चाबुक का खौफ सरकार पर तारी है। ऐसे मामलों में अदालत सरकार को बख्श नहीं रही हैं। सहायता प्राप्त अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में वर्षों से प्रधानाचार्य का प्रभार देख रहे शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पद के समान वेतन की मांग की। मांग को वाजिब मान हाईकोर्ट ने सरकार को ऐसे शिक्षकों को प्रधानाचार्य के पद का वेतनमान देने के आदेश दिए हैं। आदेश का पालन करने के साथ सरकार ने झट प्रभारी और कार्यवाहक के तौर पर काम कर रहे प्रधानाचार्यों पर गाज गिरा दी। उन्हेंं तुरंत रिवर्ट करने के आदेश दे डाले। दो माह के भीतर प्रधानाचार्यों के रिक्त पद भरे जाएंगे। नाफरमानी करने वाले शिक्षाधिकारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का डंडा दिखाया गया है। सरकार की खुन्नस से विभाग से लेकर विद्यालयों में हड़कंप है। शिक्षक एसोसिएशन मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री के दरवाजे पर दस्तक देकर रहम की गुहार लगा रही है।

तबादले को जारी बेइंतहा कोशिश

तबादलों को लेकर अगर कहीं जुनून नजर आता है तो वो शिक्षकों में है। सरकार ने भले ही तबादला सत्र शून्य घोषित कर दिया, लेकिन गुरुजन कोशिश छोडऩे को तैयार नहीं हैं।फिलहाल एकमात्र रास्ता तबादला एक्ट का नियम-27 है। इसके तहत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति जरूरतमंद शिक्षकों के तबादलों पर मुहर लगाती है। सिर्फ गंभीर बीमारी से पीडि़त, दिव्यांग या दिव्यांग बच्चों के माता-पिता शिक्षकों के साथ ही पति-पत्नी को एक स्थान या नजदीकी स्थान पर तैनाती जैसे बेहद जरूरी मसलों पर ही गौर किया जाता है। मारामारी देखिए, सिर्फ प्राथमिक के ही करीब डेढ़ हजार शिक्षकों के आवेदन शासन को मिले हैं। माध्यमिक शिक्षकों के आवेदनों का ढेर निदेशालय में लग चुका है। माना जा रहा है कि समिति की बैठक होने तक ये ढेर कम होने के बजाय बढ़ेगा। तबादलों की चाह समिति के फैसले तक नहीं थमने वाली। आखिरी कोशिश अदालत का दर है।

दीपावली पर भी मिली मायूसी

सरकारी विद्यालयों के सैकड़ों शिक्षक गाहे-बगाहे वेतन के लिए परेशान होने को मजबूर हैं। परेशानी की बड़ी वजह सरकार और विभाग दोनों का असंवेदनशील होना है। केंद्र से वेतन मिलने का काल्पनिक ताना-बाना बुनकर समग्र शिक्षा अभियान के तहत कार्यरत माध्यमिक शिक्षकों को वेतन से महरूम कर दिया गया। केंद्र सरकार इन शिक्षकों को वेतन देने से इन्कार कर चुकी है। इससे पहले राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत भी इन शिक्षकों को वेतन मिलने में दिक्कत आती रही है। केंद्र से वेतन का बजट हासिल करने के प्रयास भले ही जारी रखे जाएं, लेकिन इसके लिए शिक्षकों को संकट में डालना उचित नहीं है। दीपावली पर जहां राज्य के हजारों कर्मचारियों को पहले ही वेतन दिया गया, वहीं इन्हेंं मायूसी हाथ लगी। बाद में सरकार को इन्हेंं अपने बजट में से ही वेतन जारी करना पड़ा। यही फैसला पहले होने पर इनकी दीपावली भी ज्यादा रोशन हो सकती थी।

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