उत्तराखंड में 250 किलोमीटर भाग पर सिकुड़ रही धरती, बन सकती है बड़ा खतरा

देहरादून और टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल की जमीन सिकुड़ती जा रही है। जो एक बड़ा खतरा बन सकती है।

By Edited By: Publish:Fri, 09 Nov 2018 03:01 AM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 08:15 AM (IST)
उत्तराखंड में 250 किलोमीटर भाग पर सिकुड़ रही धरती, बन सकती है बड़ा खतरा
उत्तराखंड में 250 किलोमीटर भाग पर सिकुड़ रही धरती, बन सकती है बड़ा खतरा

देहरादून, [जेएनएन]: देहरादून से टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल की जमीन लगातार सिकुड़ती जा रही है। धरती के सिकुड़ने की यह दर सालाना 18 मिलीमीटर प्रति वर्ष है। यह बात नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी नई दिल्ली के अध्ययन में सामने आई है। 

सेंटर के निदेशक डॉ. गहलोत के मुताबिक वर्ष 2013 से 2018 के बीच देहरादून (मोहंड) से टनकपुर के बीच करीब 30 जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) लगाए गए। इसके अध्ययन में पता चला कि यह पूरा भूभाग 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ रहा है। जबकि, पूर्वी क्षेत्र में यह दर महज 14 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। इस सिकुड़न से धरती के भीतर ऊर्जा का भंडार बन रहा है, जो कभी भी इस पूरे क्षेत्र में सात-आठ रिक्टर स्केल के 

भूकंप के रूप में सामने आ सकती है। क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में पिछले 500 से अधिक वर्षो में कोई शक्तिशाली भूकंप नहीं आया है। एक समय ऐसा आएगा, जब धरती की सिकुड़न अंतिम स्तर पर होगी और कहीं भी भूकंप के रूप में ऊर्जा बाहर निकल आएगी। 

नेपाल में धरती के सिकुड़ने की दर इससे कुछ अधिक 21 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। यही वजह है कि वर्ष 1934 में बेहद शक्तिशाली आठ रिक्टर स्केल का नेपाल-बिहार भूकंप आने के बाद वर्ष 2015 में भी 7.8 रिक्टर स्केल का बड़ा भूकंप आ चुका है। हालांकि यह कह पाना मुश्किल है कि धरती के सिकुड़ने का अंतिम समय कब होगा, जब भूकंप की स्थिति पैदा होगा। इतना जरूर है कि जीपीएस व अन्य अध्ययन से धरती के बदलाव व हर भूकंप का अध्ययन किया जा रहा है। 

तीन बड़े लॉकिंग जोन पता चले 

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार वैसे से 250 किलोमीटर का पूरा हिस्सा भूकंपीय ऊर्जा का लॉकिंग जोन बन गया है, लेकिन अब तक के अध्ययन में सबसे अधिक लॉकिंग जोन चंपावत, टिहरी-उत्तरकाशी क्षेत्र में धरासू बैंड व आगराखाल में पाए गए हैं।

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