कोरोना संक्रमण के प्रति अभी भी बेपरवाह दिख रही दून की पढ़ी-लिखी जनता, अकले सरकारी तंत्र के बस की बात नहीं संक्रमण की रोकथाम, पढ़‍िए पूरी खबर

कोरोना संक्रमण की रोकथाम की जिम्मेदारी क्या अकेले सरकारी तंत्र की है। महामारी की रोकथाम में इस समय सरकारी तंत्र एक छोर पर दिख रहा है और जनता दूसरे छोर पर। जो कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं उन्हें बचाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 06:30 AM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 06:30 AM (IST)
कोरोना संक्रमण के प्रति अभी भी बेपरवाह दिख रही दून की पढ़ी-लिखी जनता, अकले सरकारी तंत्र के बस की बात नहीं संक्रमण की रोकथाम, पढ़‍िए पूरी खबर
कोरोना संक्रमण की रोकथाम की जिम्मेदारी क्या अकेले सरकारी तंत्र की है।

 सुमन सेमवाल, देहरादून: कोरोना संक्रमण की रोकथाम की जिम्मेदारी क्या अकेले सरकारी तंत्र की है। महामारी की रोकथाम में इस समय सरकारी तंत्र एक छोर पर दिख रहा है और जनता दूसरे छोर पर। जो लोग कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं, उन्हें बचाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। मगर, संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज है कि अब तक की सभी व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है। संक्रमण इसी तरह बढ़ता रहा तो आने वाला समय और विकट हो सकता है। ऐसे हालात किसी भी पीढ़ी के व्यक्ति ने शायद ही देखे हों, लिहाजा इन परिस्थितियों में सब कुछ सरकार के जिम्मे डाल देना भी सही नहीं है। क्योंकि संक्रमण की जो भी रफ्तार बढ़ रही है, उसके लिए कहीं न कहीं जनता भी जिम्मेदार है। इससे पहले कि हालात और बेकाबू हो जाएं, जनता को अपनी जिम्मेदारी और समझदारी दोनों दिखानी होगी।

जिम्मेदारी बस इतनी सी है कि लोग अनावश्यक बाहर न घूमें। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए शारीरिक दूरी व मास्क पहनने के जो नियम बनाए गए हैं, उनका अनिवार्य रूप से पालन किया जाए।

बेशक इससे कोरोना पूरी तरह खत्म नहीं होगा, मगर संक्रमण के मामले कम आएंगे, तो अस्पतालों पर दबाव कम होगा। गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को आसानी से आइसीयू बेड व ऑक्सीजन की उपलब्धता हो पाएगी। मरीजों का दबाव कम होने से चिकित्सा कर्मी भी भली-भांति मरीजों का उपचार कर पाएंगे। फिर न किसी की जान वेंटिलेटर के अभाव में जाएगी और न ऑक्सीजन की कमी के चलते कोई सांस उखड़ेगी।

हर एक व्यक्ति से बनता है समाज, तानाबाना बचाने की जुगत जरूरी

जब हम समाज की बात करते हैं तो उसमें हर एक व्यक्ति समाहित होता है। यह तानाबाना बचा रहे, इसके लिए हर एक व्यक्ति को समाज की सुरक्षा की चिंता करनी होगी। जो लोग अनावश्यक बाहर घूम रहे हैं, हो सकता है वह संक्रमण के बाद भी सुरक्षित रहें, मगर ऐसा नहीं है कि संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति की शारीरिक क्षमता उतनी बेहतर हो।

जाने-अनजाने हम ऐसा काम न करें, जिससे दूसरी की जान पर बन आए। हो सकता है आप अपने ही परिवार के किसी सदस्य या करीबी के जीवन को खतरे में डाल दें। आज के हालात में हर व्यक्ति को अपनी भूमिका तय करनी होगी और समाज की सुरक्षा के लिए अपने नियम बनाने होंगे। क्योंकि पुलिस व प्रशासन भी एक सीमा तक ही नियमों का पालन करा सकता है। फिर ही सरकारी तंत्र भी मन से यह नहीं चाहता कि किसी नागरिक को नियमों के उल्लंघन के लिए कड़े से कड़ा दंड दिया जाए।

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जनता की बेसब्री बढ़ा रही किल्लत

इस समय देखने में आ रहा है कि रेमडेसिविर दवा के इंजेक्शनों की भारी किल्लत हो गई है। ऑक्सीजन के सिलेंडरों के लिए भी लोग मारे-मारे फिर रहे हैं। जिन्हें सिलेंडर मिल भी गया, उन्हें फ्लोमीटर, पाइप व ऑक्सीजन मास्क नहीं मिल पा रहे। जरूरत एक सामान की है तो तमाम लोग पहले ही कई की संख्या में उसकी जमाखोरी कर चुके हैं। महज कोरोना संक्रमित होने की आशंका में ही तमाम लोग संक्रमण की रोकथाम की सामान्य दवाओं की खेप जमा कर दे रहे हैं।

 

इससे बाजार में हर एक वस्तु का कृत्रिम संकट पैदा होने लगा है या उनके दाम यकायक बढ़ गए हैं। हमारे विशेषज्ञ बार-बार यह कह रहे हैं कि हर किसी को न रेमडेसिविर की जरूरत है और न ऑक्सीजन की। दवाओं की मात्रा व उसके सेवन के लिए भी दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। फिर भी लोग न जाने किस अनजाने भय से घिरकर बस सबकुछ हासिल करने पर आतुर दिख रहे हैं। दूसरी तरफ कोरोना कफ्र्यू लागू होने से पहले लोग बाजार में इस तरह उमड़े कि जैसे कल से सबकुछ बंद हो जाएगा। राशन से लेकर फल-सब्जी और अन्य सामान की खरीद के लिए लोग दुकानों पर टूट पड़ते दिखे। यह स्थिति भी ठीक नहीं है और इसी तरह की बेसब्री कोरोना के संक्रमण को अनावश्यक बढ़ाने का काम करती है। कोरोना की पहली लहर में जब लंबा लॉकडाउन लगा था, तब भी खाने-पीने की वस्तुओं की कोई कमी नहीं हुई थी। 

प्रदेश को लॉकडाउन से बचाने की जिम्मेदारी सबकी

कोरोना की पहली लहर में देश ने लंबा लॉकडाउन झेला। इसके एवज में देश और हमारे नागरिकों ने बड़ी कीमत भी चुकाई।

पहले से अधिक विकराल कोरोना की दूसरी लहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाने की सलाह राज्यों को दे चुके हैं। हालात काबू में रहें, इसके लिए राज्य सरकार की मशीनरी क्षमता के कहीं अधिक काम कर रही है। यदि इस समय सरकार को जनता का साथ नहीं मिला तो प्रतिबंध और कड़े किए जा सकते हैं। फिर सभी को इसके प्रतिकूल प्रभाव भी झेलने पड़ेंगे। अब यह जनता पर ही निर्भर है कि वह राज्य को लॉकडाउन की तरफ न बढऩे दे।

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