सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा-कचरा प्रबंधन का बेहतर मॉडल देखना हो तो चले आइए यहां, आप भी कह उठेंगे वाह

सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा-कचरा प्रबंधन का बेहतर मॉडल देखना हो तो सीधे चले आइए देहरादून के चिड़ियाघर में। पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहे प्लास्टिक कचरे से निजात पाने को अपनाई गई थ्री आर पहल रंग जमा रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 03:15 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 10:42 PM (IST)
सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा-कचरा प्रबंधन का बेहतर मॉडल देखना हो तो चले आइए यहां, आप भी कह उठेंगे वाह
कचरा प्रबंधन की मिसाल पेश कर रहा देहरादून चिड़ियाघर।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड में सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा-कचरा प्रबंधन का बेहतर मॉडल देखना हो तो सीधे चले आइए देहरादून के चिड़ियाघर में। पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहे प्लास्टिक कचरे से निजात पाने को अपनाई गई रिड्यूस, रीसाइकिल और रीयूज की पहल रंग जमा रही तो जैविक कचरे से खाद भी तैयार हो रही है। परिणामस्वरूप यह चिड़ियाघर न सिर्फ अजैविक-जैविक कचरे से मुक्त हुआ है, बल्कि इससे आमदनी भी हो रही है। दो वर्ष पहले शुरू की गई इस पहल के बूते एकदम साफ-सुथरा हुआ यह चिड़ियाघर नए कलेवर में निखरा है। बल्कि प्लास्टिक की खाली बोतलों का लैंडस्केप बनाने में किया गया इस्तेमाल हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचता है।

कचरा प्रबंधन का उत्कृष्ट नमूना बने देहरादून चिड़ियाघर में स्थिति पहले ऐसी नहीं थी। मसूरी मार्ग पर मालसी में 25 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस चिड़ियाघर में सैलानियों द्वारा पानी की खाली बोतलें, पॉलीथिन समेत अन्य सामग्री यत्र-तत्र फेंक दी जाती थी। इससे यहां के सौंदर्य पर तो दाग लग ही रहा था, कचरे के निस्तारण में कार्मिकों को पसीने छूट रहे थे। लगातार गहराती इस समस्या के निदान को कमर कसी चिडिय़ाघर के निदेशक आइएफएस पीके पात्रो ने।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित हो पात्रो ने ऐसी पहल करने पर जोर दिया, जिससे 'वेस्ट को वेल्थ' में बदला जा सके। इसके लिए चिडिय़ाघर में प्लास्टिक कचरे के निदान को अपनाई गई रिड्यूस, रीसाइकिल और रीयूज की तकनीक। 2018 से शुरू हुई इस पहल के बूते करीब 80 किलो प्लास्टिक कचरे का चूरा बनाकर बेचा गया है।

इसके साथ ही पेड़ों की गिरने वाली पत्तियों और अन्य जैविक कचरे से खाद तैयार कर इसे चिड़ियाघर में दूसरे पौधे पनपाने में उपयोग में लाया जा रहा है। इस पहल से चिड़ियाघर का परिवेश साफ-सुथरा होने के साथ ही इसकी खूबसूरती भी निखरी है। इसके साथ ही जू में प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध भी लगाया गया है। परिणामस्वरूप यह चिड़ियाघर  सार्वजनिक स्थलों में कचरा प्रबंधन के मॉडल के रूप में उभरकर सामने आया है।

चिड़ियाघर में हुई पहल

रिड्यूस- चिड़ियाघर में प्रतिवर्ष औसतन साढ़े छह लाख सैलानी आते हैं। अगर वो यहां अपने साथ प्लास्टिक की पानी की बोतल लाते हैं तो इसके एवज में उनसे 10 रुपये लिए जाते हैं। वापसी में खाली बोतल जमा कराने पर यह राशि लौटाई जाती है। अगर कोई बोतल जमा नहीं करता है तो उसकी यह राशि जब्त कर ली जाती है। चिड़ियाघर में यदि कहीं कोई खाली बोतल मिलती है तो इसे एकत्र करने वाले कर्मचारी को प्रति बोतल 10 रुपये के हिसाब से भुगतान कर दिया जाता है।

रीसाइकिल- प्लास्टिक की बोतलें रीसाइकिल करने के दृष्टिगत चिड़ियाघर में पेट बॉटल क्रशिंग मशीन लगाई गई। इस मशीन में प्लास्टिक की खाली बोतलें डालकर इसका चूरा तैयार कर बेच दिया जाता है।

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रीयूज- प्लास्टिक की खाली बोतलों, पॉलीथिन, थर्माकोल के अलावा अनुपयोगी सामग्री का उपयोग चिड़ियाघर के लैंडस्केप को संवारने में हो रहा। स्नेक हाउस के निर्माण में प्लास्टिक की खाली बोतलें प्रयोग में लाई गई हैं। इसी तरह कैक्टस गार्डन और उसके प्रवेश द्वार के अलावा जू में कई सजावटी आकृतियां तैयार की गई हैं। इसका तरीका भी आसान है। खाली बोतलों से आकृतियां बनाकर इन्हें सीमेंट के खाली कट्टों का जाल बनाकर ढका जाता है। फिर सीमेंट की हल्की परत लगाने के बाद इन पर कलर किया जाता है।

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