बगावत और डैमेज कंट्रोल के मोर्चो पर अग्निपरीक्षा

बगावत, भितरघात और डैमेज कंट्रोल। निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने उक्त तीनों मोर्चो पर अग्नि परीक्षा दी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Nov 2018 03:00 AM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 03:00 AM (IST)
बगावत और डैमेज कंट्रोल के मोर्चो पर अग्निपरीक्षा
बगावत और डैमेज कंट्रोल के मोर्चो पर अग्निपरीक्षा

राज्य ब्यूरो, देहरादून

बगावत, भितरघात और डैमेज कंट्रोल। निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने उक्त तीनों मोर्चो पर अग्नि परीक्षा दी। चुनाव में यह भी साबित हो गया कि असंतोष पर काबू पाने वाले को ही आखिरकार कामयाबी मिली। बावजूद इसके बगावत ने कई जगह पर दलों की जीत की राह तो रोकी ही, साथ में जीत में बड़े अंतर को थामने का काम भी किया। दलों की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें आंशिक तौर पर ही कारगर साबित हुई हैं। निकायों में निर्दलों को मिली कामयाबी के पीछे बगावत और भितरघात को भी प्रमुख कारण के तौर पर गिनाया जा रहा है। माना ये भी जा रहा है कि निकाय चुनाव परिणामों की समीक्षा के दौरान दलों के भीतर भितरघात को लेकर सिर-फुटव्वल की नौबत आ सकती है।

निकाय चुनाव में बागियों और असंतुष्टों ने दोनों ही दलों के माथे पर बल डाले हैं। बागियों की बड़ी संख्या का अंदाजा इससे लग सकता है कि जहां भाजपा ने 60 से अधिक बागियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, वहीं कांग्रेस को 70 से अधिक लोगों को निष्कासित करना पड़ा। बाद में निर्दल के तौर पर लड़े बागी कई निकायों में अध्यक्ष और पार्षद के चुनाव में निर्दल के तौर पर विजयी रहे। काफी संख्या में इन्हीं निर्दलों ने कई निकायों में भाजपा और कांग्रेस के जीत का रथ थाम लिया।

कोटद्वार नगर निगम में महापौर पद पर भाजपा के बागी और टिहरी नगरपालिका परिषद अध्यक्ष पद पर कांग्रेस की बागी प्रत्याशी के आगे दलों के अधिकृत प्रत्याशी टिक ही नहीं सके। निर्दल कई निकायों के अध्यक्ष पदों पर कब्जा करने में सफल रहे। दरअसल निकाय चुनाव के लिए टिकट वितरण के बाद ही भाजपा और कांग्रेस में असंतोष जताने और बगावत का सिलसिला शुरू हो गया था। भाजपा ने बागियों पर शुरुआती दौर में ही तेवर सख्त करते हुए उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था। इसके उलट कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल के लिए लंबे समय तक इंतजार किया। आखिरी क्षण तक मानने को तैयार नहीं हुए बागियों को निष्कासित कर दिया गया।

निकाय चुनावों के नतीजों से ये भी जाहिर हो रहा है कि डैमेज कंट्रोल में दोनों दल कामयाब रहते तो नगरपालिका परिषद व नगर पंचायतों में अध्यक्ष पद पर निर्दलों की जीत का आंकड़ा बड़ा नहीं होता। निर्दलों की जीत में भितरघात भी प्रमुख कारक के तौर पर सामने आया है। चुनाव नतीजों के रुझान से दलों के रणनीतिकार सन्न हैं। इसकी वजह भितरघात के असर से दलों को नुकसान है। माना जा रहा है कि टिकट वितरण से उपजी असंतोष की आग में भितरघात के चलते कई सीटों पर अधिकृत प्रत्याशियों को पराजय का स्वाद चखना पड़ा।

कांग्रेस ने तो इस रणनीति के तहत बाकायदा चिनियानौला रानीखेत, लोहाघाट और कलियर में अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए। पार्टी के क्षेत्रीय विधायकों के मशविरे पर उठाए गए इस कदम का फायदा ये हुआ कि उक्त सीटों पर निर्दल विजयी हुए हैं। कांग्रेस अब उन्हें अपने खेमे होने का दावा भी कर रही है।

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