उत्‍तराखंड में रोपवे निर्माण की मुहिम को आगे बढ़ाने में जुटी सरकार

उत्‍तराखंड आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु अब रोपवे का आनंद भी उठा सकेंगे। राज्‍य में केदारनाथ नैनीताल हेमकुंड पंचकोटी से नई टिहरी औली से गौरसू मुनस्‍यारी से खलिया टाप और ऋषिकेश से नीलकंठ तक रोपवे का निर्माण किया जाएगा।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 12:49 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 12:49 PM (IST)
उत्‍तराखंड में रोपवे निर्माण की मुहिम को आगे बढ़ाने में जुटी सरकार
उत्‍तराखंड में रोपवे निर्माण की मुहिम को आगे बढ़ाने में जुटी सरकार।

केदार दत्‍त, देहरादून। उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए ढांचागत सुविधाओं के विकास की दिशा में प्रदेश सरकार ने अब तेजी से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। सरकार ने केदारनाथ, नैनीताल, हेमकुंड साहिब, पंचकोटी-टिहरी, औली-गोरसौं, मुनस्यारी-खलियाटाप और ऋषिकेश- नीलकंठ रोपवे की स्थापना के लिए केंद्र सरकार से करार किया है। इन सात रोपवे के निर्माण से केदारनाथ, हेमकुंड साहिब जैसे धार्मिक स्थलों पर हर उम्र के तीर्थयात्री दर्शनों के लिए आसानी से पहुंच सकेंगे। यही नहीं, रोपवे के जरिये सैलानी और तीर्थयात्री यहां के प्राकृतिक नजारों से रूबरू होंगे।

जाहिर है कि इस पहल के आकार लेने पर पर्यटन और तीर्थाटन को तो पंख लगेंगे ही, यात्री प्रदूषणमुक्त सफर का लुत्फ भी उठा सकेंगे। वैसे भी पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह की पहल आवश्यक है। इससे सड़कों के निर्माण से पहाड़ों के दरकने की संभावना से भी निजात मिल सकेगी।

रोपवे की मुहिम में उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद नोडल विभाग की भूमिका में रहेगा, जबकि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रलय के अधीन नेशनल हाइवे लाजिस्टिक मैनेजमेंट लिमिटेड (एनएचएलएमएल) इन रोपवे के लिए रिक्वेस्ट फार प्रपोजल (आरएफपी) करने के साथ ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करेगा। फिर इनके निर्माण के लिए टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। सबसे अहम बात ये कि रोपवे बनाने के लिए केंद्र सरकार वित्तीय सहयोग देगी।

निश्चित रूप से यह पहल सराहनीय मानी चाहिए, लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए संशय के बादल भी कम नहीं हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब राज्य सरकार ने रोपवे के लिए पहल की है। पूर्व में केदारनाथ, गंगोत्री-यमुनोत्री के लिए भी रोपवे प्रस्तावित किए गए थे, लेकिन तब पर्यावरणीय समेत अन्य कारणों के चलते यह मुहिम परवान नहीं चढ़ पाई थी। इसके अलावा देहरादून को पहाड़ों की रानी मसूरी से जोड़ने के लिए रोपवे लंबे समय से मंजूर है, लेकिन अभी तक इसका निर्माण नहीं हो पाया है।

ऐसे में यह जरूरी है कि पहले उन सभी कारणों की भी गहनता से पड़ताल कर ली जाए, जिनकी वजह से पूर्व में रोपवे की योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाई थीं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी, ताकि पर्यटन विकास के मद्देनजर विकसित की जाने वाली रोपवे की सुविधा आकार ले सके। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में रोपवे प्रस्तावित हैं, वहां तीर्थयात्रियों व सैलानियों के लिए अन्य सुविधाएं भी विकसित की जानी आवश्यक हैं। पर्यटन की व्यापक संभावनाओं वाले उत्तराखंड में रोपवे निर्माण की पहल सराहनीय है, लेकिन इसके लिए गंभीरता से कदम उठाने की दरकार है।

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