उच्च शिक्षा जगत में हलचल, अनुदान पर अशासकीय डिग्री कॉलेज और सरकार आमने-सामने

उच्च शिक्षा जगत में इन दिनों हलचल मची है। अनुदान पर चल रहे अशासकीय डिग्री कॉलेज और सरकार आमने-सामने हैं। मदद सरकार से और केंद्रीय विश्वविद्यालय से नेह। ये रिश्ता क्या कहलाता है इसे सरकार भी बूझ नहीं पा रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 08:45 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 08:45 PM (IST)
उच्च शिक्षा जगत में हलचल, अनुदान पर अशासकीय डिग्री कॉलेज और सरकार आमने-सामने
अनुदान पर अशासकीय डिग्री कॉलेज और सरकार आमने-सामने।

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। प्रदेश के उच्च शिक्षा जगत में इन दिनों हलचल मची है। अनुदान पर चल रहे अशासकीय डिग्री कॉलेज और सरकार आमने-सामने हैं। मदद सरकार से और केंद्रीय विश्वविद्यालय से नेह। ये रिश्ता क्या कहलाता है, इसे सरकार भी बूझ नहीं पा रही है। गढ़वाल विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने से पहले से उससे संबद्ध 17 कॉलेज राज्य विश्वविद्यालय से जुड़ने को तैयार नहीं हैं। नियुक्तियों से लेकर तमाम मामलों में कॉलेज प्रबंधन मनचाहे तरीके से फैसले ले रहा है। सरकार कुछ कहने बोलने की स्थिति में नहीं है। राज्य के कानूनों की सीमा केंद्रीय विश्वविद्यालय में खत्म हो जाती है। चारों अंगुलियां घी में होने से कॉलेज सरकार की अनदेखी कर रहे कॉलेजों पर अंब्रेला एक्ट का चाबुक चल गया। इस तनातनी को खत्म करने को भाजपा और एबीवीपी से जुड़े शिक्षक आगे आए हैं। कॉलेजों और सरकार के बीच सुलह का रास्ता तलाश किया जा रहा है।

सीएम दरबार में अटकी फाइल

प्रदेश में साढ़े तीन साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बावजूद नए अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों को अनुदान सूची में शामिल नहीं किया गया। पिछली कांग्रेस सरकार ने दरियादिली से यह काम किया था। मानकों को पूरा नहीं करने वाले काफी संख्या में विद्यालय सियासी रसूख की वजह से मंजिल पाने में कामयाब रहे। हालांकि जाते-जाते पिछली सरकार ने अनुदान के बजाए प्रोत्साहन राशि देने का कानून बना दिया। इस पर अमल से पहले ही सरकार रुखसत हो गई थी। मौजूदा सरकार शुरुआत से ही सख्त रुख अपनाए हुए है। अनुदान के बजाय प्रोत्साहन राशि देने के निर्देश हैं। इस बीच 66 अशासकीय विद्यालयों को अनुदान देने की कवायद की जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खफा हो गए। इसके बाद संबंधित फाइल मुख्यमंत्री ने तलब कर ली। करीब सालभर होने को है, लेकिन फाइल सीएम दफ्तर में अटकी है। विधानसभा चुनाव तक मामला यूं ही लटकने के आसार हैं।

बाल मनोविज्ञान के लिए जंग

कोरोना काल में मजबूरी में ही सही ऑनलाइन पढ़ाई की तरकीब निकाल ली गई है। इस शैक्षिक सत्र में स्कूल अब तक खुले ही नहीं हैं। खासतौर पर कक्षा एक से आठवीं तक कक्षाओं वाले विद्यालय पूरी तरह सूने पड़े हैं। अक्षर, अंक ज्ञान और उससे जुड़ी कविताओं के पाठ से गुंजायमान रहने वाले विद्यालयों में सूनापन पसरा है। ये सूनापन लाइव क्लासरूम को लील चुका है। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान छाई रहने वाली चुप्पी अभिभावकों के साथ शिक्षकों को भी कचोट रही है। कोरोना संकट लंबा खिंचने पर बच्चों में होने वाली मनोवैज्ञानिक परेशानी से अभिभावक आशंकित हैं। ऐसे में पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय देवराना की शिक्षिका अनीता ध्यानी सोशल मीडिया पर छोटी कविताओं के माध्यम से कोरोना के डर को भगाने का उपाय बच्चों को बताती रहती हैं। शिक्षकों का एक तबके मनोवैज्ञानिक परेशानी का तोड़ अपने तरीके से ढूंढ रहा है। सराहनीय प्रयास। 

फरमान जो बढ़ा रहा परेशानी

शिक्षकों में एक बार फिर रोष पनप गया है। वजह शिक्षकों की नियुक्तियों में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद शिक्षा महकमे की ओर से बार-बार जारी होने वाला फरमान है। बड़ी संख्या में नियुक्तियों में गड़बड़ी सामने आने के बाद महकमे ने शिक्षकों को तमाम शैक्षिक, जाति व अन्य प्रमाणपत्र महकमे में जमा करने का आदेश दिया। आनन-फानन में शिक्षकों ने अपने प्रमाणपत्र जमा करा दिए। इतने प्रमाणपत्रों के रखरखाव की व्यवस्था दफ्तरों के लिए सिरदर्द बन चुकी है। जांच में होने वाली देरी के चलते प्रमाणपत्रों का ढेर दफ्तरों में इधर-उधर लुढ़काया जाता रहा। कुछ दिन ऐसा चलने के बाद विभाग को मालूम पड़ता है कि प्रमाणपत्र नहीं मिल रहे हैं। फरमान फिर जारी। शिक्षक इसीतरह कई बार अपने प्रमाणपत्र जमा करा चुके हैं। ये नौबत बार-बार आने लगी तो शिक्षकों के भौंहें तन रही हैं। आखिर प्रमाणपत्रों के रखरखाव के पुख्ता बंदोबस्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं।

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