कहीं हाजिरी जांचने से मास्साब खफा, कहीं डीएम संभाल रहे इंजीनियरिंग कालेज
मास्साब फिर खफा हैं। चाहे या अनचाहे तरीके से फिर टार्गेट हो गए हैं। इस बार टार्गेट करने वाले विभाग या शासन के अधिकारी नहीं हैं। ड्रेस पहनने के लिए दबाव बनाने वाले शिक्षा मंत्री भी नहीं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इशारों में ही सहीगुरुजनों को निशाने पर लिया।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। मास्साब फिर खफा हैं। चाहे या अनचाहे तरीके से फिर टार्गेट हो गए हैं। इस बार टार्गेट करने वाले विभाग या शासन के अधिकारी नहीं हैं। ड्रेस पहनने के लिए दबाव बनाने वाले शिक्षा मंत्री भी नहीं हैं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इशारों में ही सही, लेकिन गुरुजनों को निशाने पर ले लिया है। विभाग की पहली समीक्षा बैठक में ही मुख्यमंत्री ने शिक्षकों के स्कूलों में पहुंचने की मानीटरिंग के निर्देश दिए। यह सबकुछ होगा एडवांस डिजिटल तकनीक से।
दरअसल बीते वर्षों में स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति जांचने को बायोमैट्रिक प्रणाली का इस्तेमाल हुआ। ये पाबंदी नागवार गुजरनी ही थी, सो हंगामा भी खूब हुआ। बाद में स्कूलों में इंटरनेट की समस्या नमूदार हुई। बायोमीट्रिक व्यवस्था का तब से अता-पता नहीं। अब बात जीपीएस आधारित मोबाइल एप्लीकेशन की हो रही है। मोबाइल फोन गुरुजी का होगा और नजर सरकार की रहेगी। बेचैनी बढऩा स्वाभाविक ही है।
डीएम संभाल रहे इंजीनियरिंग कालेज
प्रदेश के चार पर्वतीय जिलों के सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में अब शिकवा-शिकायतों का दौर कुछ थम सा गया है। इसकी वजह चकित करने वाली है। पिथौरागढ़ जिले में सीमांत इंजीनियरिंग कालेज, अल्मोड़ा जिले में कुमाऊं इंजीनियरिंग कालेज द्वाराहाट, पौड़ी जिले में जीबी पंत इंजीनियरिंग कालेज घुड़दौड़ी और टिहरी जिले में टीएचडीसी इंजीनियरिंग कालेज में निदेशकों की जगह प्रशासक तैनात हैं। ये जिम्मा संबंधित जिले के डीएम के पास है।
इससे पहले नियुक्त किए गए निदेशकों के खिलाफ खूब शिकायतें शासन को मिलीं थीं। शासन ने कार्रवाई करते हुए निदेशकों को हटाने के साथ ही कालेजों को जिलाधिकारियों के सुपुर्द कर दिया है। कालेजों में खींचतान के माहौल में विराम लग गया है। जिलाधिकारी का प्रताप कहें या खौफ, शिकायत करने की हिम्मत जुटाना मुश्किल हो गया है। खौफजदा कालेजों में शिक्षा की व्यवस्था अब पटरी पर बताई जा रही है। टांग खिंचाई और झिक-झिक खत्म। शासन मौज में है।
इशारों को अगर समझो तो..
सरकार ने कही, विभाग ने तुरंत मानी और फिर बन गई कहानी। यहां बात तकनीकी शिक्षा की हो रही है। पिछला साल कोरोना के साये में गुजरा। बजट का बड़ा हिस्सा ही खर्च नहीं हो सका तो भला जमीन पर क्या दिखता। नया वित्तीय साल शुरू होते ही मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव ने विभागों को बजट को तेजी से खर्च करने की हिदायत दी।
सरकार के फरमान का वजन को कई विभाग जहां तौलने में जुटे थे, वहीं तकनीकी शिक्षा विभाग ने आनन-फानन में बजट जारी कर दिया। साथ में यह ताकीद भी की गई कि बजट की धनराशि पर कुंडली न मारी जाए। वेतन भुगतान में देरी न हो। विभाग की मुखिया शासन की आला अधिकारी हैं। सरकार का इशारा समझती हैं। चुनावी साल है। बजट देरी से इस्तेमाल होगा तो सरकार की बैचनी बढ़ेगी। तकनीकी शिक्षा की तेजी से अब और विभाग भी सबक ले रहे हैं।
विवादों के घेरे में कुलपति
प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के साथ ही विवाद होना प्रचलन बन गया है। ये हाल तब हैं, जब कुलपतियों के चयन में पात्रता शर्तों की अनदेखी किए जाने पर हाईकोर्ट सख्त रुख अपना चुका है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय और दून विश्वविद्यालय में ऐसा ही हो चुका है। अब राजभवन में कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को लेकर शिकायत की गई है। कुलपति के लिए पैनल सर्च कमेटी तैयार करती है।
तीन सदस्यीय कमेटी में सरकार, राजभवन के प्रतिनिधि के साथ बाहर से भी एक प्रतिनिधि नामित किया जाता है। कुलपति पद के आवेदनों की कई स्तर पर छंटाई होती है। इसके बावजूद कुलपति के चयन को लेकर सरकार का विवादों से नाता टूट नहीं रहा है। सरकार चयन में पात्रता शर्तों का गहराई से परीक्षण का दावा करती है। ये दावे हाईकोर्ट में क्यों नहीं टिक पाते, यह उच्च शिक्षा विभाग की समझ से परे है।
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