बर्फ और चट्टान के विशाल टुकड़ों से विकराल हुई थी चमोली आपदा, पढ़िए पूरी खबर
चमोली जिले में ऋषि गंगा कैचमेंट से निकली तबाही पर उत्तराखंड व देश के विभिन्न विज्ञानी व विशेषज्ञ काफी कुछ पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। अब देश व विदेश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के 53 विज्ञानियों के दल ने भी चमोली आपदा पर अध्ययन पूरा कर लिया है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। इसी साल सात फरवरी को चमोली जिले में ऋषि गंगा कैचमेंट से निकली तबाही पर उत्तराखंड व देश के विभिन्न विज्ञानी व विशेषज्ञ काफी कुछ पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। अब देश व विदेश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के 53 विज्ञानियों के दल ने भी चमोली आपदा पर अध्ययन पूरा कर लिया है। दोनों ही दफा यह बात समान रूप से निकलकर आ चुकी है कि रौंथी पर्वत से बड़े पैमाने पर हिमस्खलन व बोल्डरे ऋषि गंगा में गिरने के चलते जलप्रलय निकली।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय व आइआइटी इंदौर समेत देश-विदेश के तमाम विज्ञानियों ने आपदा के कारण पता करने के लिए धरातलीय अध्ययन के साथ सेटेलाइट चित्रों का सहारा लिया। जर्नल साइंस में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक रौंथी पर्वत से चट्टानों के साथ जो बर्फ के खंड गिरे, उनका डायामीटर (व्यास) 20 मीटर से अधिक था। फलस्वरूप दो करोड़ 70 लाख घन मीटर मलबा पानी के साथ बहकर आया। यह स्खलन करीब एक मील तक बेहद तीव्र ढाल पर हुआ। उदाहरण के तौर पर यह ऊंचाई छह एफेल टावर व 11 स्पेस नीडल्स (स्पेस कार्यों संबंधी निगरानी टावर) के बराबर रही। तेज घर्षण के चलते बर्फ मिनटभर में पिघली और तबाही के लिए भारी मात्रा में पानी उपलब्ध हो गया। पानी के साथ जब बोल्डर वेग के साथ बढ़े तो निचले क्षेत्रों में तबाही का सबब बनते चले गए। विज्ञानियों ने सुझाव दिया है कि पूरा क्षेत्र अभी भी संवेदनशील बना है। लिहाजा, ऐसे किसी भी क्षेत्र में बांध या अन्य बड़ी परियोजनाओं का निर्माण पूरी संवेदनशीलता के साथ करना जरूरी है।
फरवरी में ऋषि गंगा में आए सैलाब में चमोली जिले के रैणी गांव के पास बनी ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि तपोवन विष्णुगाड परियोजना को भी भारी नुकसान पहुंचा था। हादसे में 205 लोग लापता हुए थे। इनमें से अब तक 83 शव मिले हैं, शेष 122 लापता हैं।
ये तथ्य भी आ चुके हैं सामने
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