उत्तराखंड में मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता बरकरार रखना चुनौती
राज्य में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं।
देहरादून, जेएनएन। राज्य में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील स्कीम (मध्याह्न भोजन योजना) के तहत दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इस योजना का दायरा बढ़ाने की बात हो रही है। ऐसी स्थिति में भोजन की गुणवत्ता बरकरार रखने की चुनौती भी निश्चित रूप से दोगुनी हो जाएगी। वर्तमान में भी विभाग बामुश्किल इस योजना की मॉनीटरिंग कर पा रहा है।
मध्याह्न भोजन योजना वर्ष 1995 में केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य था बच्चों के उचित पोषण के लिए उन्हें स्कूल में ही पौष्टिक भोजन प्रदान करना। जिससे देश से कुपोषण दूर हो सके। प्रदेश की बात करें तो शिक्षा विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में पांच लाख 93 हजार 988 बच्चों को इस योजना का लाभ मिल रहा था। हालांकि, कोरोना संक्रमण के चलते मार्च में स्कूल बंद होने के बाद से भोजन और उसे पकाने का खर्च सीधे बच्चों के बैंक खाते में भेजा जा रहा है। लागू होने के बाद से ही इस योजना पर सवाल उठते रहे हैं। कभी भोजन की गुणवत्ता तो कभी उसकी मात्रा को लेकर। कई बार ऐसी शिकायतें भी आईं कि बच्चों का राशन जिम्मेदार डकार गए। उच्च अधिकारियों के निरीक्षण में इन खामियों की पुष्टि भी हुई।
नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक हेडमास्टर ने बताया कि मिड-डे मील में अनियमितताओं की बड़ी वजह है भोजन माताओं की कमी और एमडीएम की पूरी देखरेख की जिम्मेदारी हेडमास्टर पर ही होना। एक साथ कई जिम्मेदारियां होने के कारण हेडमास्टर इस व्यवस्था पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। क्योंकि, उन्हें कक्षा भी लेनी है और रोज सब्जी भी लानी है। विभाग की बैठकों में शामिल होने के साथ अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी समय पर निपटाने होते हैं। इसीलिए हेडमास्टर लंबे समय से एमडीएम के लिए स्कूलों में अलग अधिकारी नियुक्त करने की मांग कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में जल्द भरे जाएंगे उर्दू शिक्षकों के 144 पद, मुख्य सचिव ने दिए निर्देश
इसके अलावा भी कई अन्य व्यवहारिक कारण भोजन की गुणवत्ता में कमी के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं, मिड-डे मील के अपर निदेशक परमेंद्र बिष्ट ने कहा कि हेडमास्टर की सहायता के लिए स्कूल में अभिभावकों के सहयोग से प्रबंधन समितियां बनाई गई हैं। साथ ही 25 बच्चों पर एक भोजनमाता भी नियुक्त है। हेडमास्टर को अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए इन लोगों का सहयोग लेने की छूट है।
यह भी हैं गुणवत्ता कम होने के कारण
यह भी पढ़ें: कार्मिकों की कमी से जूझ रहा लेखा परीक्षा विभाग के खाली पदों को तत्काल भरने की मांग