उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी पर ठिठके हुए हैं कदम, जानिए वजह

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रदेश सरकार ने उनकी बिखरी जोत को एक करने का निर्णय लिया। मकसद यह कि किसान को एक स्थान पर खेती योग्य बड़ी जमीन मिल सकेगी।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 03:18 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 03:18 PM (IST)
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी पर ठिठके हुए हैं कदम, जानिए वजह
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी पर ठिठके हुए हैं कदम, जानिए वजह।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रदेश सरकार ने उनकी बिखरी जोत को एक करने का निर्णय लिया। मकसद यह कि किसान को एक स्थान पर खेती योग्य बड़ी जमीन मिल सकेगी। इसके लिए बाकायदा वर्ष 2016 में विधानसभा में भूमि चकबंदी और भूमि-व्यवस्था विधेयक पारित किया गया। इसमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर को छोड़ शेष नौ जिलों को शामिल किया गया। 

कहा गया है कि कृषि, उद्यानीकरण व पशुपालन की जमीन को इसके दायरे में लाया जाएगा। इससे लगा कि बिखरी जोत एक होने से उन्हें खेती योग्य अच्छी जमीन मिल सकेगी। दो वर्ष पहले इसकी शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री के गांव से करने की बात हुई। इसमें आरंभ में कुछ काम हुआ, लेकिन बीते वर्ष कोरोना के कारण लागू लाकडाउन के बाद व्यवस्था आगे नहीं बढ़ पाई। अभी भी गांवों में लोग बिखरी जोत में ही खेती कर रहे हैं। 

याद आई मोबाइल मेडिकल यूनिट योजना 

प्रदेश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच पर्वतीय क्षेत्रों में मोबाइल मेडिकल यूनिटों की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। यदि बीते वर्षों में सही तरीके से काम किया गया होता तो शायद आज पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं काफी बेहतर होतीं। दरअसल, प्रदेश में वर्ष 2009 में सभी पर्वतीय जिलों के विभिन्न क्षेत्रों में निर्धारित तिथियों पर चिकित्सा सुविधा देने को मोबाइल मेडिकल यूनिट योजना शुरू की गई। 

शुरुआत में केवल पांच जिलों पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी व पौड़ी में मोबाइल मेडिकल यूनिटों की संचालन किया गया। शेष को मेडिकल यूनिट मिल ही नहीं पाई। इसके लिए बीते वर्षों में निविदाएं आमंत्रित की गई लेकिन आशानुरूप लाभ नहीं मिला। कोरोना काल में निजी क्षेत्र से मिली मोबाइल यूनिटों को पर्वतीय जिलों में भेजा जा रहा है। बावजूद इसके चिकित्सक व प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ की कमी के कारण ये पूरी तरह संचालित नहीं हो पा रही हैं। 

जेलों में लगातार बढ़ रहे कैदी 

उत्तराखंड की जेलों में इस समय निर्धारित क्षमता से दोगुने कैदी बंद हैं। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में कैदियों की यह संख्या जेलों में संक्रमण की रफ्तार को बढा रही है। स्थिति यह है कि प्रदेश की 11 जेलों में 3420 कैदियों को रखने की क्षमता है लेकिन यहां 5800 से अधिक कैदी हैं। जेलों में कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वर्ष 2016 में छह नई जेल बनाने का निर्णय हुआ। 

ये जेल चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, उधमसिंह नगर और उत्तरकाशी में बनाई जानी प्रस्तावित की गई। इनके लिए जमीन भी मिल गई। सीमित बजट के कारण पहले चंपावत और पिथौरागढ़ में नई जेल बनाने का निर्णय लिया गया। बाद में केवल पिथौरागढ़ में ही जेल बनाने को स्वीकृति मिली। वर्ष 2019 के अंत में इसका काम शुरू हुआ। वर्ष 2020 में  कोरेाना के कारण यह काम रुक गया, जो अब तक शुरू नहीं हो पाया है। 

कागजों में एनएचएम घोटाले की जांच 

राज्य के बहुचर्चित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, यानी एनआरएचएम (अब एनएचएम, नेशनल हेल्थ मिशन) दवा घोटाले की विजिलेंस जांच का मसला फाइलों में ही उलझा हुआ है। सरकार ने इस मामले में विजिलेंस जांच कराने का निर्णय लिया था, जिसका अभी तक आदेश जारी नहीं हुआ है। दरअसल, एनएमएच में दवा घोटाले का मामला वर्ष 2010 में सामने आया था। रुड़की के एक नाले में बड़ी मात्रा में दवाइयां मिलने के बाद जांच शुरू की गई। मामला सूचना आयोग तक पहुंचा तो इसकी जांच सीबीआइ से कराने का निर्णय लिया गया। 

सितंबर 2019 में सीबीआइ ने एक पूर्व सीएमओ समेत सात व्यक्तियों पर कार्रवाई की अनुमति मांगी। अनुमति के स्थान पर सरकार ने मामला सीबीआइ से हटाकर विजिलेंस को देने का निर्णय लिया। पत्रावली गृह विभाग भेजी गई, मगर तकरीबन छह माह पूर्व लिए गए इस निर्णय के क्रम में विजिलेंस जांच के आदेश अब जारी नहीं हो पाए हैं। 

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