पवित्र फूल्यात माह के खत्म होते ही बिसु का जश्न शुरू, फूलों से की जाती है पूजा

पवित्र फूल्यात माह आज खत्म हो रहा है और इसी के साथ बिसु का जश्न भी शुरू हो गया है। मसूरी से सटे जिला देहरादून के जनजातीय जौनसार-बाबर टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड और उत्तरकाशी के रवांईं घाटी में बिसु (वैशाखी)के त्योहार का बहुत महत्व है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 04:18 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 09:36 PM (IST)
पवित्र फूल्यात माह के खत्म होते ही बिसु का जश्न शुरू, फूलों से की जाती है पूजा
पवित्र फूल्यात माह के खत्म होते ही बिसु का जश्न शुरू, फूलों से की जाती है पूजा।

संवाद सहयोगी, मसूरी। पवित्र फूल्यात माह आज खत्म हो रहा है और इसी के साथ बिसु का जश्न भी शुरू हो गया है। मसूरी से सटे जिला देहरादून के जनजातीय जौनसार-बाबर, टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड और उत्तरकाशी के रवांईं घाटी में बिसु (वैशाखी)के त्योहार का बहुत महत्व है। चैत्र महीने के पहले दिन से ही हर एक गांव-परिवार में प्रतिदिन सूरज की पहली किरन निकलने से पहले ही गांव के बच्चे विशेषकर कन्याएं ताजे फूलों से अपने ईष्टदेवों, घर के चूल्हे, देहरी और बुजुर्गों के कंघों व सिर पर फूलों से पूजा करते हैं। यह पूजा पूरे चैत्र माह में की जाती है और चैत्र माह की समाप्ति पर फुल्यात माह भी खत्म हो जो जाता है। 

वैशाख की संक्रांति को बच्चे अपने गांवों में ठेस्या देवता की पूजा करते हैं। ठेस्या पूजा के बाद वैशाखी के दिन पहले गावों में टेसू के फूलों से होली खेली जाती थी, लेकिन अब यह सिमटकर कुछ ही गांवों में रह गई है। जौनपुर विकासखंड की सिलवाड़ पट्टी के सुरांसू, खरक, पाब, कोटी, मसोन, टटोर, जैद्वार, खरसोन, बणगांव आदि गावों में आज भी बैशाखी के दिन टेसू के फूलों से होली खेलने की परंपरा कायम है और 14 अप्रैल को वैशाखी के अवसर पर ठेस्या पूजन के बाद होली खेली जाएगी, लेकिन ठेस्या पूजन हर एक गांव में होता है। 

वैशाखी में हर एक परिवार में चावलों से विशेष पापड़ी बनाई जाती है, जो लगभग तैयार की जा चुकी है। महिलाएं वैशाखी से एक सप्ताह पहले ही पापड़ी बनाना शुरू कर देती हैं और वैशाखी से एक दिन पहले जिसको आठयीं कहते हैं, पापड़ियों को तेल में तल लिया जाता है। इन पापड़ियों को वैशाखी के प्रसाद के रूप में सबको परोसा जाता है। इसके बाद दो गते वैशाख पूरे क्षेत्र में वैशाखी थौलू-मेलों की शुरुआत हो जाती है, जो तीन मई को जौनसार के शहीद केसरीचंद मेमोरियल मेले के साथ समाप्त होती है। 

दो गते वैशाख को पहला मेला सिलवाड़ पट्टी के खरक-काण्डी गावों के ऊपर ऊंची देवीकोल पहाड़ी पर मां भद्रकाली मंदिर प्रांगण में आयोजित मेले से होती है। इस बार शायद पहली बार इस मेले का आयोजन पंद्रह अप्रैल यानि दो गते वैशाख को नवरात्रों के दौरान हो रहा है, जो एक अत्यंत शुभ संयोग है। देवीकोल मंदिर समिति द्वारा मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। छ: गते वैशाख यानि 19 अप्रैल को त्याड़े भद्रराज का मेला आयोजित किया जाएगा।

यह भी पढ़ें- Haridwar Kumbh 2021: पुलिस ने दूर की भाषा की अड़चन, श्रद्धालुओं की मदद कर रहे दुभाषिये

Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें

chat bot
आपका साथी