सत्ता के गलियारे से: सौम्य छवि के यशपाल की अफसरों पर तिरछी नजर

सियासत में ऐसे लोग कम दिखते हैं यशपाल आर्य सरीखे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एनडी तिवारी सरकार के दौरान स्पीकर कांग्रेस की विजय बहुगुणा और हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री। कांग्रेस में रहते स्वाभिमान को चोट पहुंची तो अलविदा कह भाजपा में चले गए।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 08:30 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 08:30 AM (IST)
सत्ता के गलियारे से: सौम्य छवि के यशपाल की अफसरों पर तिरछी नजर
सत्ता के गलियारे से: सौम्य छवि के यशपाल की अफसरों पर तिरछी नजर।

विकास धूलिया, देहरादून। सियासत में ऐसे लोग कम दिखते हैं, यशपाल आर्य सरीखे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, एनडी तिवारी सरकार के दौरान स्पीकर, कांग्रेस की विजय बहुगुणा और हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री। कांग्रेस में रहते स्वाभिमान को चोट पहुंची तो अलविदा कह भाजपा में चले गए। सम्मान मिला, त्रिवेंद्र, तीरथ और अब धामी के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य हैं। छवि जितनी सौम्य, मंत्री के रूप में मिजाज उतना ही कड़क। परिवहन और आबकारी का जिम्मा संभाल रहे हैं। इन दिनों दोनों महकमों के अफसरों की कारगुजारियों पर नजर तिरछी किए हुए हैं। परिवहन निगम कर्मियों को आधे वेतन के मसले पर अफसरों पर इस कदर भड़के कि मुख्यमंत्री को खुद आगे आना पड़ा। आबकारी का जिम्मा मिला, तो पहली ही बैठक में 93 करोड़ की गड़बड़ी पकड़ डाली। अब इस पर भी उच्च स्तरीय जांच बिठा दी। लगता है अफसर इनकी साफ्ट इमेज से गच्चा खा गए।

पुरानी तो नहीं दोहराएंगे, अब कुछ नई गलतियां करेंगे

उत्तराखंड क्रांति दल, अलग राज्य निर्माण की अवधारणा के साथ पैदा क्षेत्रीय दल। अविभाजित उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भी उक्रांद के विधायक उपस्थिति दर्ज करा चुके थे, मगर उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर जब इसे सशक्त विकल्प बनना था, यह सत्ता लोलुपता और अंदरूनी झगड़ों की वजह से हाशिये पर है। भाजपा को सरकार बनाने को सुविधाजनक बहुमत की जरूरत पड़ी तो इसके नेता तुरंत बगलगीर हो मंत्री बन गए। कांग्रेस को बहुमत जुटाना था, तो उससे भी गलबहियां करने से गुरेज नहीं। सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन इस चक्कर में दल का बंटाधार। मौजूदा विधानसभा में भी उक्रांद के एक सदस्य हैं, लेकिन बतौर निर्दलीय। तमाम राज्यों में क्षेत्रीय दल आज सत्ता में हैं, लेकिन उक्रांद की भूमिका पिछलग्गू के अलावा कुछ नहीं। उक्रांद नेता अब फिर एका का राग अलाप रहे हैं, यह कहकर कि भविष्य में पुरानी गलतियां नहीं दोहराएंगे। मतलब, अब नई गलतियां करेंगे।

10 विधायक और पांच अध्यक्षों का कांग्रेस का कुनबा

देश में सबसे ज्यादा वक्त तक सत्ता में रही कांग्रेस की स्थिति यह हो गई कि उत्तराखंड जैसे छोटे सूबे में भी, जहां उसके महज 10 विधायक हैं, पार्टी नेताओं को थामे रखने के लिए उसे संगठन में पांच अध्यक्ष तैनात करने पड़े। हाल ही में पंजाब में अंदरूनी कलह को काबू करने के लिए पार्टी ने यह फार्मूला अपनाया। कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्हें फार्मूला इतना भाया कि हाईकमान को इसे अपने सूबे में भी इस्तेमाल करने के लिए राजी कर लिया। पंजाब और उत्तराखंड में अगले साल एक साथ ही विधानसभा चुनाव हैं, तो सत्ता के गलियारों में चर्चा चल पड़ी कि हरदा के हाथ लगता है पांच-पांच अध्यक्षों का कोई नया टोटका लग गया है। वैसे, कांग्रेस के शुभचिंतकों को चिंता भी सता रही है कि कहीं चुनाव आते-आते ये पंच परमेश्वर पार्टी को ही पंचिंग बैग न बना डालें।

फिर भी पोस्टर पर तो हरदा ही छपे होंगे

हरीश रावत काफी समय से पार्टी नेतृत्व से मांग करते आ रहे हैं कि कांग्रेस किसी का चेहरा आगे कर विधानसभा चुनाव में जाए। अब यह तो हो नहीं सकता कि उनके अलावा चेहरा किसी अन्य का होगा। दरअसल, रावत के अलावा फिलहाल कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा है ही नहीं, जिसकी फालोइंग गढ़वाल, कुमाऊं से लेकर भाबर और तराई तक हो। पहले थे ऐसे कुछ चेहरे, मगर सब एक-एक कर रुखसत हो गए। रावत के पैंतरे को पार्टी में उनके विरोधी भांप गए, लिहाजा सामूहिक नेतृत्व की बात उठा दी। अब हुआ यह कि हाईकमान ने रावत को प्रत्यक्ष तौर पर तो चुनावी चेहरा बनाने का एलान नहीं किया, मगर उन्हें चुनाव संचालन समिति की बागडोर सौंप दी। कुछ वैसे ही, जैसे कान सीधा पकड़ा जाए या फिर हाथ घुमाकर। इस फैसले पर रावत खेमा खुश है, तो विरोधी गुट शोर मचा रहा है कि ऐसा नहीं है।

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