उत्तराखंड में बिसरा दिया गया बेनामी संपत्ति कानून, चार साल के बाद भी परवान नहीं चढ़ पाई योजना

उत्तराखंड सरकार को आशंका थी कि भ्रष्ट राजनीतिकों नौकरशाहों और उद्योगपतियों ने गलत तरीके से अकूत संपत्ति जमा की है जिसे दूसरों के नाम पर खरीदा गया है। यानी ये बेनामी संपत्ति के रूप में रखी गई हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 03:24 PM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 03:24 PM (IST)
उत्तराखंड में बिसरा दिया गया बेनामी संपत्ति कानून, चार साल के बाद भी परवान नहीं चढ़ पाई योजना
उत्तराखंड में बिसरा दिया गया बेनामी संपत्ति कानून। प्रतीकात्मक फोटो

विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड सरकार को आशंका थी कि भ्रष्ट राजनीतिकों, नौकरशाहों और उद्योगपतियों ने गलत तरीके से अकूत संपत्ति जमा की है, जिसे दूसरों के नाम पर खरीदा गया है। यानी, ये बेनामी संपत्ति के रूप में रखी गई हैं। इस पर अंकुश को सरकार ने सख्त कानून बनाने की बात कही। सरकार ने कहा कि आमजन से लेकर विधि विशेषज्ञों तक से इसके लिए सुझाव लिए जाएंगे।

इस प्रस्तावित कानून में सभी बेनामी संपत्तियों को सूचीबद्ध कर संपत्ति खरीदने वाले व्यक्ति के आय के स्रोत व खरीद के कारण की जांच की बात कही गई, ताकि बेनामी संपत्ति आसानी से पकड़ में आ सके। इससे आमजन में अच्छे दिनों की उम्मीद जगी। लगा कि अब बेनामी संपत्ति की जानकारी छिप नहीं सकेगी और इसे सरकार में निहित किया जाएगा। इससे सरकारी योजनाओं के लिए जमीन भी मिलेगी। अफसोस, चार साल गुजरने के बावजूद भी यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई है।

सर्वे में फंसी टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन 

प्रदेश के लिहाज से अति महत्वाकांक्षी टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का आजादी से पूर्व देखा गया सपना आज तक पूरा नहीं हो पाया है। राज्य गठन के बाद तीन बार सर्वे की कवायद शुरू हुई, लेकिन कागजों तक ही सिमट कर रह गई। दरअसल, बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन के सर्वे का काम सबसे पहले 2006 में शुरू हुआ। तब तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने रेल बजट में टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन के लिए बजट में प्रविधान किया। उस समय के सर्वे में टनकपुर से बागेश्वर की दूरी 137 किमी पाई गई। इसके बाद वर्ष 2011 में इस रेल लाइन का फिर से सर्वे हुआ। सर्वे का क्या हुआ, कुछ पता नहीं। इसके बाद एनडीए सरकार ने सर्वे का दायरा बढ़ाते हुए इसे गैरसैंण तक कराने का निर्णय लिया। इसकी रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपी गई। इसके बाद से ही इस पर क्या हो रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं है। 

विभागों में इलेक्ट्रिक वाहन अभी नहीं

डीजल व पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने विभागों में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने का निर्णय लिया। निर्णय इसलिए भी बाध्यकारी हो गया था, क्योंकि केंद्र सरकार ने इसके लिए सभी राज्यों को पत्र भेजे थे। ऐसे में प्रदेश सरकार ने सभी विभागों को इसका परीक्षण करने को कहा। सचिवालय से इसकी शुरुआत की गई। एक अधिकारी को बाकायदा एक इलेक्ट्रिक कार परीक्षण के लिए दी गई।

इस दौरान यह कहा गया कि पेट्रोल व डीजल से हानिकारक गैस निकलती हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग से पर्यावरण पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही लागत की नजरिये से भी यह लाभकारी साबित हो सकते हैं। इस परीक्षण के बाद एक रिपोर्ट बनाई गई। बताया गया कि बाजार में अभी इलेक्ट्रिक वाहनों की खासी कमी है। अभी ऐसे तुलनात्मक आंकड़े भी नहीं हैं कि यह लाभकारी है भी या नहीं।

स्वरोजगार की योजना कागजों में फंसी

प्रदेश से लगातार हो रहे पलायन को देखते हुए सरकार ने युवाओं को स्वरोजगार से जोड‍ने के लिए योजना बनाई। यह थी युवाओं को टूरिस्ट गार्ड के रूप में प्रशिक्षित करने की। एक कंपनी के जरिये इन्हें प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया गया। इसे एक साल से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन इस दिशा में सार्थक कदम आगे नहीं बढ़ पाए हैं।

देखा जाए तो उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करती है। बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक यहां सैर के लिए आते हैं। यहां कई मनोहारी पर्यटन स्थल होने के बावजूद पर्यटक वहां तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसका मुख्य कारण उन्हें इन क्षेत्रों तक ले जाने वाले टूरिस्ट गाइडों की कमी होना है। जो पर्यटक यहां आते भी हैं, वे टूर एंड ट्रेवल एजेंसियों के भरोसे ही रहते हैं। ऐसे में युवाओं के लिए यह योजना खासी मुफीद साबित हो सकती थी। 

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