कन्याओं के हिस्से का प्रसाद निकालकर अधिकांश ने गाय को खिलाया

मंगलवार को नवरात्रि के आठवें दिन नव देवी दुर्गा के उपासकों ने घरों में ही माता के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए श्रद्धालुओं ने कन्याओं को घर बुलाकर भोजन नहीं कराया।

By Edited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 06:57 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 06:57 PM (IST)
कन्याओं के हिस्से का प्रसाद निकालकर अधिकांश ने गाय को खिलाया
कालिका मार्ग स्थित श्री कालिका माता मंदिर में कन्या पूजन के लिए मंदिर में प्रवेश करती कन्याऐं।

जागरण संवाददाता, विकासनगर: मंगलवार को नवरात्रि के आठवें दिन नव देवी दुर्गा के उपासकों ने घरों में ही माता के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए श्रद्धालुओं ने कन्याओं को घर बुलाकर भोजन नहीं कराया, बल्कि देवी भगवती को भोग लगाने के बाद श्रद्धालुओं ने नौ कन्याओं का भोजन निकालकर व्रत खोला। इक्का-दुक्का घरों में ही कन्याओं का पूजन हुआ और उन्हें प्रसाद ग्रहण कराया गया। अधिकांश व्रतियों ने कन्याओं के अंश का भोजन गाय को खिलाया और मानवांछित फल की कामना की। घरों में ही सीमित रहकर पूजा अर्चना करने के चलते मंदिरों में पूजा-पाठ करने वालों की संख्या काफी कम दिखी।

नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर मां महागौरी की पूजा की गई। महागौरी ही शक्ति मानी गई हैं। पुराणों के अनुसार इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार शुंभ, निशुंभ से पराजित होने के बाद देवताओं ने गंगा नदी के तट पर देवी महागौरी से ही अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की थी। मां के इस रूप के पूजन से शारीरिक क्षमता का विकास होने के साथ मानसिक शांति भी बढ़ती है। माता के इस स्वरूप को अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पूर्व जन्म में कठोर तपस्या की थी। शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था।

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अनूठी परंपरा: जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में की गई सिर्फ अष्टमी की पूजा

साहिया: जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में रीति-रिवाज अनूठे हैं। पूरे देश में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, लेकिन जनजाति क्षेत्र में नवरात्र में दुर्गा के नौ रूपों में से सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी की ही पूजा होती है। मंगलवार को अष्टमी के दिन घर के मुखिया ने व्रत रखा। दिन में हलवा-पूरी से मां का पूजन कर भोग लगाया गया। पूरे देश में जहां पहाड़ की पुत्री मां शैलपुत्री, विशेष कृपा करने वाली मां ब्रह्मचारिणी, चांद की तरह दमकने वाली चंद्रघंटा, पूरा जगत अपने पैर में समाने वाली कूष्मांडा, कार्तिक स्वामी की मां स्कंदमाता, कात्यायन आश्रम में जन्मी कात्यायनी, काल का नाश करने वाली कालरात्रि, सफेद दिव्य कांतिवाली महागौरी, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी का ही पूजन होता है। यहां पर सभी नवरात्र नहीं मनाए जाते।

सिर्फ अष्टमी के दिन श्रद्धालु व्रत रखकर मां काली की पूजा अर्चना करते हैं। मंगलवार को श्रद्धालुओं ने अष्टमी का पूजन किया। जौनसारी भाषा में अष्टमी पूजन को आठों पर्व कहा जाता है। अष्टमी पूजन में हर गांव में हर घर से मुखिया ने सपत्निक व्रत रखा। देवी मां की पूजा के दौरान नए कपड़े पहनाए। उसके बाद देवी मां को कचोरी, हलवा, चावल व गाय के घी का भोग लगाया गया। परिवार के सभी सदस्यों ने दूध व चावल का टीका लगाया।

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