एपल मिशन: इस साल भी लैप्स हो सकता है बजट, जानिए वजह

उत्तराखंड में सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के मद्देनजर संचालित एपल मिशन दम तोड़ने लगा है। माना जा रहा है कि इस साल भी मिशन एपल का बजट लैप्स हो सकता है।

By Edited By: Publish:Wed, 19 Dec 2018 03:00 AM (IST) Updated:Wed, 19 Dec 2018 08:00 PM (IST)
एपल मिशन: इस साल भी लैप्स हो सकता है बजट, जानिए वजह
एपल मिशन: इस साल भी लैप्स हो सकता है बजट, जानिए वजह
v style="text-align: justify;">देहरादून, राज्य ब्यूरो। औद्यानिकी को राज्य की आर्थिकी का मुख्य जरिया बनाने का सपना और हालत यह कि सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के मद्देनजर राज्य में संचालित एपल मिशन दम तोड़ने लगा है। तीन साल में मिशन के तहत जैसे-तैसे सेब के अति सघन बागान स्थापित हुए, मगर पिछले वित्तीय वर्ष से तो यह मुहिम ठप पड़ी है। नतीजतन, इस बार भी मिशन के तहत खर्च होने वाली करीब डेढ़ करोड़ की राशि सरेंडर करने की नौबत आ गई है। ऐसे में सिस्टम की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं। राज्य में वर्तमान में करीब 34 हजार हेक्टयेर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है। 
सेब उत्पादन की अपार संभावनाओं को देखते हुए वर्ष 2014-15 में तत्कालीन राज्य सरकार ने मिशन एपल की शुरूआत की। इसका मकसद प्रदेश में उच्च तकनीकी के जरिये सेब उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देना, उच्च उत्पादन वाली उन्नत प्रजातियों व नवीनतम तकनीकी अपनाते हुए सेब के पौधों का सघन रोपण और सेब उत्पादन में राज्य को विशिष्ट पहचान दिलाना है। मिशन के तहत एक एकड़ क्षेत्र में बागान स्थापित कर संबंधित किसान को दिया जाता है। प्रति बागान 12 लाख का बजट तय किया गया। लागत का 80 फीसद राज्य सरकार और 20 फीसद सेब उत्पादक को वहन करना होता है। 
सरकार ने इस मिशन के तहत सबसे पहले उत्तराखंड कृषि विपणन परिषद के माध्यम से देहरादून व नैनीताल जिलों में एक-एक बागान स्थापित कराए। सेब पौधरोपण का कार्य नैनीताल जिले की एक फर्म से कराया गया। इसके बाद देहरादून में दो, नैनीताल, अल्मोड़ा व उत्तरकाशी में एक-एक किसानों के बागान तैयार कराए गए। पिछले साल जब इस योजना में कोई प्रस्ताव नहीं आया और किसी फर्म ने पौधरोपण में रुचि नहीं ली तो पुराने बागानों का स्थलीय निरीक्षण कराया गया। इसमें कई खामियां सामने आई। 
ये भी बात सामने आई कि बागान स्थापना को प्रति बागान 12 लाख रुपये की राशि बेहद कम है, जबकि जम्मू-कश्मीर में यह इसके तीन गुना अधिक है। इसी के चलते कोई फर्म आगे नहीं आ रही। और तो और निरीक्षण करने वाली समिति ने इन परिस्थितियों के मद्देनजर पुनर्विचार के बाद ही मिशन को विस्तार देने का सुझाव दिया। यही कारण है कि इस वर्ष मिशन में अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं आया है। 
विभाग को जिम्मेदारी क्यों नहीं 
मिशन एपल को लेकर सिस्टम की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। मिशन में बागान तैयार कराने की जिम्मेदारी फर्मों को देने का प्रावधान किया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विभाग के पास ऐसे कार्मिक नहीं हैं, जो इस तरह के बागान तैयार करा सकें। जानकारों की मानें तो इस कार्य में विभागीय कार्मिकों को झोंका जाना चाहिए।
कृषि एवं उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि एपल मिशन में स्थापित होने वाले बागानों में खर्च होने वाले बजट में बढ़ोत्तरी के मद्देनजर प्रभारी उद्यान निदेशक को रिवाइज रेट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। इस पर विचार कर फैसला लिया जाएगा। इसके साथ ही मिशन में विभागीय कार्मिकों को भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
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