उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी में 250 शिकायतें लंबित, सुनवाई एक सदस्य के भरोसे
रेरा में एकमात्र सदस्य मनोज कुमार ही कार्यरत हैं। जुलाई माह में रेरा में 200 के करीब शिकायत लंबित थीं और अब यह संख्या बढ़कर 250 पहुंच गई है। नियमों के मुताबिक रेरा को शिकायत का निस्तारण 60 दिन के भीतर करना होता है।
सुमन सेमवाल, देहरादून। उत्तराखंड निरंतर अनियोजित शहरीकरण की भेंट चढ़ रहा है। अगर जनगणना 2011 के ही आंकड़ों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्र में आबादी की दर करीब चार गुना बढ़ी है। शहरों में तेजी से बढ़ रही आबादी के मुताबिक ही आवासीय सुविधाओं की मांग भी बढ़ी है। यह सभी सुविधाएं सुनियोजित ढंग से विकसित हों, इसके लिए विकास प्राधिकरण बने हैं और वर्ष 2017 में रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट के लागू होने के बाद उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) भी गठित की है। प्राधिकरण किस तरह अपना काम कर रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है और संवैधानिक संस्था रेरा की हालत भी अध्यक्ष व सदस्य के अभाव में पतली नजर आ रही है।
रेरा अध्यक्ष विष्णु कुमार पिछले अप्रैल व सदस्य एमसी जोशी जून में रिटायर हो चुके हैं। अब रेरा में एकमात्र सदस्य मनोज कुमार ही कार्यरत हैं। जुलाई माह में रेरा में 200 के करीब शिकायत लंबित थीं और अब यह संख्या बढ़कर 250 पहुंच गई है। नियमों के मुताबिक रेरा को शिकायत का निस्तारण 60 दिन के भीतर करना होता है, जबकि एक दर्जन के करीब शिकायतें सालभर से लंबित हैं और अधिकतर शिकायतें तीन से चार माह की अवधि की हैं।
अधिकतर लंबित शिकायतें बिल्डरों के समय पर कब्जा न देने संबंधी हैं। रेरा पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी इस बात की भी है कि कोई भी परियोजना बिना पंजीकरण के न खड़ी हो। इसी तरह प्लाटिंग के लिए भी पंजीकरण की अनिवार्यता की गई है। हालांकि, रेरा में एकमात्र सदस्य के होने के चलते सुनवाई तक में विलंब हो रहा है। ऐसे में बिना पंजीकरण मनमर्जी से निर्माण कर रहे बिल्डरों व प्रापर्टी डीलरों पर शिकंजा कसना दूर की बात है।
सरकार की भी रेरा को सशक्त बनाने में दिलचस्पी नहीं
रेरा में अध्यक्ष व सदस्य पद की तैनाती को लेकर सरकार सक्रिय नहीं दिख रही। यही कारण है कि रेरा की ओर से जारी किसी भी आदेश व दिशा-निर्देश को अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते। बीते तीन साल में रेरा ने तमाम विकास प्राधिकरणों से यह जानकारी मांगी थी कि उनके यहां कितनी आवासीय व कमर्शियल परियोजनाओं के नक्शे पास किए गए हैं। इसको लेकर रेरा को कभी भी समुचित जानकारी नहीं मिल पाई।
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वहीं, रेरा बिना पंजीकरण निर्माण के मामले में जिलाधिकारियों को भूखंडों की रजिस्ट्री पर रोक लगाने के आदेश जारी करती रही है। रेरा के इस तरह के आदेश का भी पालन नहीं किया जाता। इसके चलते आमजन बिल्डरों की मनमानी का शिकार हो रहे हैं और सुनियोजित विकास के दावों की भी पोल खुलती रहती है।
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