उत्तराखंड में केंद्रीय योजनाओं के 1521 करोड़ नहीं हुए हैं खर्च

केंद्रीय योजनाओं में बुने गए खुशहाली के ख्वाबों को उत्तराखंड में मंजिल नसीब होना मुमकिन नहीं है। अगर होगी भी तो इसमें कितना वक्त लगेगा यह कहना मुश्किल है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Wed, 20 Nov 2019 08:57 PM (IST) Updated:Wed, 20 Nov 2019 08:57 PM (IST)
उत्तराखंड में केंद्रीय योजनाओं के 1521 करोड़ नहीं हुए हैं खर्च
उत्तराखंड में केंद्रीय योजनाओं के 1521 करोड़ नहीं हुए हैं खर्च

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। वर्ष 2022 तक सब गरीबों-बेघरों को घर, हर घर को नल से जल और अंधेरे घरों को बिजली से रोशन, गांवों को लाइफलाइन से जोड़ने, इलाज की सुविधा, सूखे खेतों को जीवन देने को सिंचाई, किसानों की आमदनी दोगुना करने समेत केंद्रीय योजनाओं में बुने गए खुशहाली के ख्वाबों को उत्तराखंड में मंजिल नसीब होना मुमकिन नहीं है। अगर होगी भी तो इसमें कितना वक्त लगेगा, यह कहना मुश्किल है। इसकी वजह केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं की धनराशि बेहद कम खर्च होना है। 

प्रदेश के दूरदराज हिस्सों समेत सभी जिलों में इन योजनाओं पर इस वित्तीय वर्ष में अप्रैल से अगस्त माह तक खर्च के सरकारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इन योजनाओं के लिए अगस्त तक जारी की गई धनराशि का सिर्फ 44 फीसद ही खर्च हुआ। इस अवधि में 1521.65 करोड़ खर्च नहीं हो पाए। जिन केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं पर उत्तराखंड की तस्वीर बदलने का दारोमदार है, उनके लिए जिम्मेदार महकमों का प्रदर्शन सरकार के माथे पर डाले हुए है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और महिला सशक्तीकरण की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता वाली योजनाएं भी तेजी से अमल के बजाए रेंग रही हैं। ग्राम्य विकास, सिंचाई, लघु सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, ऊर्जा, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, बाल विकास, चिकित्सा और स्वास्थ्य, कृषि और समाज कल्याण की करीब दो दर्जन केंद्रपोषित योजनाओं में खर्च की रफ्तार चालू वित्तीय वर्ष के पहले पांच महीनों में 44 फीसद तक सिमट गई। वित्तीय वर्ष के शेष हिस्से में भी यही हाल रहा तो विकास की जन उम्मीदें औंधे मुंह गिरते देर नहीं लगेंगी। 

इन योजनाओं के लिए महकमों के पास 2721.21 करोड़ का बजट था, लेकिन महज 1199.42 करोड़ ही खर्च किया जा सका। शहरी गरीबों को जरूरी सुविधाएं देने और आवास व मलिन बस्ती सुधार योजना पर इस अवधि में खर्च नहीं हो सका, जबकि छोटे और मध्यम शहरों के विकास मद में ही सिर्फ 8.51 करोड़ ही इस्तेमाल हुआ। कुल 25.66 करोड़ में से 17.14 करोड़ खर्च के लिए तरस गए। खेती, शहरी विकास और समाज कल्याण में तो 29 से लेकर 33 फीसद तक ही हो पाया। 

मुख्य सचिव उत्पल सिंह ने कहा, केंद्रपोषित योजनाओं में खर्च की समीक्षा की जा रही है, पहली छमाही में खर्च की स्थिति बेहतर नहीं रही, लेकिन आगे इसमें सुधार के लिए महकमों को निर्देश दिए गए हैं। मॉनीटरिंग तेज की गई है।

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इन केंद्रीय योजनाओं में पांच महीनों में इसतरह हुआ बजट का इस्तेमाल: (खर्च फीसद में) 

-शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सुविधाएं (बीएसयूपी) में खर्च-शून्य 

-आवास एवं मलिन बस्ती सुधार (आइएचएसडीपी)-शून्य 

-त्वरित सिंचाई लाभ प्रोग्राम-40.86 

-महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना-68.63 

-इंदिरा आवास योजना-10.19 

-प्रधानमंत्री ग्राम सडक योजना-38.30 

-राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम-71.80 

-केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम-38.66 

-त्वरित ऊर्जा विकास व सुधार कार्यक्रम-पार्ट बी-28.38 

-मिड डे मील-82.50 

-सर्व शिक्षा अभियान-63.88 

-एकीकृत बाल विकास सेवाएं-53.88 

-प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना-36.44 

-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ-32.11 

-महिला सशक्तीकरण मिशन-2.54 

-आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व शिक्षकों को प्रशिक्षण-शून्य 

-पुष्टाहार कार्यक्रम-53.88 

-नेशनल हेल्थ मिशन-60.53 

-राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-33.44 

-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन-30.83 

-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन-26.02 

-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांग पेंशन:32.62 

-राष्ट्रीय परिवार लाभ योजनाएं-28 

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