वैष्णवी मंदिरों में शुमार है मां वाराही धाम मंदिर

मां वाराही धाम देवीधुरा का मंदिर भारत के गिने-चुने वैष्णवी मंदिरो में से एक है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 11:25 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:11 AM (IST)
वैष्णवी मंदिरों में शुमार है मां वाराही धाम मंदिर
वैष्णवी मंदिरों में शुमार है मां वाराही धाम मंदिर

गौरी शंकर पंत, लोहाघाट :

मां वाराही धाम देवीधुरा का मंदिर भारत के गिने-चुने वैष्णवी मंदिरों में से एक है। पौराणिक मान्यता के आधार पर जब हिरणाक्ष्य राक्षस पृथ्वी को पाताल लोक ले जा रहा था तो पृथ्वी की करुण पुकार सुन भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को अपने बाम अंग में लेकर उसे डूबने से बचाया था। तभी से पृथ्वी स्वरूपा वैष्णवी मां वाराही कहलाई। हाल के ही वर्षो तक यहां पत्थर युद्ध बग्वाल खेली जाती थी। वर्ष 2013 से कोर्ट के आदेश पर यहां फल और फूलों की बग्वाल खेली जा रही है।

देवीधुरा में मां वाराही अनादि काल से गुफा में रहकर भक्तों की मनोकामना पूरी करती आ रही हैं। आज भी मां वाराही भक्तों के कष्टों को उसी प्रकार दूर करती है जिस प्रकार पौराणिक समय में किया करती थी। जो भक्त संकट में मां को पुकारता है वह उसके संकट हर लेती हैं। यही कारण है कि इस मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था कभी कम नहीं हुई। बग्वाल मेला इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते भले ही फीका रहा लेकिन मां के प्रति अटूट आस्था में कोई कमी नहीं आई। परंपरा के अनुसार देवीधुरा के खोलीखांड़ दुबाचौड़ में वालिक, लमगड़िया, चम्याल और गहड़वाल खामों के लोग दो भागों में बंटकर एक-दूसरे के ऊपर पत्थर बरसा कर बग्वाल खेलते थे। परंतु 2013 में कोर्ट के आदेश के बाद स्थानीय लोगों व मंदिर कमेटी के संयुक्त प्रयासों से पत्थरों की जगह फूल व फलों ने ले ली। अब बग्वाल फलों से खेली जाती है।

बग्वाल से भी अन्य कथाएं भी जुड़ी हुई हैं, जो महाभारत के राक्षस बेताल से लेकर चंद शासन में महर फत्र्याल धड़ों से जुड़ी हैं। मगर पौराणिक कथा यह भी कहती है कि देवासुर संग्राम में मुचकुंद राजा की सेना ने भी भाग लिया था। जिसने असुरों को मां बाराही की कृपा से पराजित किया था। तब देव सेना ने प्रसन्न होकर प्रतीक स्वरूप बग्वाल खेली और ई-ह-हा-हा-इ-ही का वैदिक उद्घोष किया। तब से लेकर अब तक यहां बग्वाल की परंपरा किसी न किसी रूप में चली आ रही है।

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