Uttarakhand Glacier Disaster: आधुनिक विकास के साथ हमें पर्यावरण संतुलन पर भी देना होगा ध्यान

Uttarakhand Glacier Disaster बर्फ के एक बड़े शिलाखंड के टूटने से आई बाढ़ के कारण चमोली जिले में ऋषिगंगा और धौलीगंगा जल विद्युत परियोजनाओं के लिए बनाए जा रहे बांध टूट गए। इस घटना ने एक बार फिर आधुनिक विकास बनाम प्रलय की चेतावनी दी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 09 Feb 2021 01:26 PM (IST) Updated:Tue, 09 Feb 2021 01:26 PM (IST)
Uttarakhand Glacier Disaster: आधुनिक विकास के साथ हमें पर्यावरण संतुलन पर भी देना होगा ध्यान
आपदाकाल में किसी जोखिम से निपटने के लिए यहां किसी किस्म की वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई?

लोकमित्र। Uttarakhand Glacier Disaster रविवार की सुबह उत्तराखंड के नंदा देवी बायोस्फीयर क्षेत्र में स्थित रैणी गांव के समीप लोग अपने रोजमर्रा के काम में जुटे थे और धौलीगंगा पर बन रहे 520 मेगावॉट के बिजलीघर विष्णुगाड प्रोजेक्ट पर मजदूर रोजाना की तरह काम कर रहे थे। आसपास ऊपर की तरफ से अचानक तेज आवाज आने लगी। इतवार का दिन था। संयोगवश आज बड़े अधिकारी साइट पर नहीं थे, मजदूर और कुछ सुपरवाइजर और इंजीनियर ही साइट पर मौजूद थे। मजदूर काम में मस्त थे, उन्होंने अपने पीछे ऊपर की तरफ से आ रही आवाज को नहीं सुना, जो हर गुजरते क्षण के साथ भयानक होती जा रही थी।

करीब एक घंटे बाद देश और दुनिया को पता चला कि नंदा देवी पहाड़ के पास से निकलने वाली ऋषिगंगा नदी पर नंदा देवी ग्लेशियर का जो एक बड़ा हिस्सा टूटकर गिर गया है, उसकी वजह से ऋषिगंगा नदी में भयानक बाढ़ आ गई। ग्लेशियर के फटने से अथाह जलराशि भयावहता से आगे बढ़ी, जो किसी जल दैत्य की तरह रैणी गांव के पास तपोवन इलाके में लगभग घंटेभर तक खूंखार तांडव मचाता रहा। उफान मारती लहरों ने किसी को बचने का कोई रास्ता नहीं दिया। जो भी जलप्रलय के आसपास था, उन सबको प्रलय तांडव करते जल दैत्य दबोचकर अपने साथ आगे ले गया।

हालांकि हाल के वर्षो में हमारा आपदा प्रबंधन काफी मजबूत हुआ है, इस कारण इस जल दैत्य को लगातार कहर ढाते हुए आगे जाने से रोक दिया गया। चूंकि इस घटना के बारे में पता चलते ही करीब 40 से 45 मिनट के भीतर ही बचाव और राहत के काम पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, नेशनल डिजास्टर रिस्पोंस फोर्स तथा एसडीआरएफ, सेना तथा स्थानीय पुलिस के बहुत तेजी से एक्शन में आ जाने के कारण इस जल प्रलय का, उस तरह खामियाजा नहीं भुगतना पड़ा, जो भुगतना पड़ सकता था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर यह दुर्घटना घटी क्यों? यह सवाल इसलिए भी प्रासंगिक है कि इस दुर्घटना का शिकार हुए दो बिजलीघरों ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और विष्णुगाड प्रोजेक्ट का पिछले काफी दिनों से स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे।

खासकर ऋषिगंगा नदी पर बन रहे ऋषिगंगा प्रोजेक्ट का। इसका विरोध करने वाले लोगों में स्थानीय लोगों से लेकर तमाम जाने माने ग्लेशियर विशेषज्ञ और आपदा प्रबंधन के जानकार भी रहे हैं। बावजूद इस तमाम विरोध के आखिरकार इन पहले से ही इतने खतरनाक प्रोजेक्ट को किसी तरह से भी रोकने की कोशिश क्यों नहीं की गई और जब विशेषज्ञों के मुताबिक ये दोनों प्रोजेक्ट बड़े जोखिम वाले क्षेत्र में मौजूद हैं तो फिर आपदाकाल में किसी जोखिम से निपटने के लिए यहां किसी किस्म की वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई?

हालांकि इन सबके बीच हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि तमाम पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के संदर्भ में सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि एक तरफ लोग उनका विरोध करते हैं कि इससे पर्यावरण को नुकसान होगा, लेकिन दूसरी तरफ एक बड़ा विरोधाभास यह भी है कि अगर सरकार लोगों की तमाम बातों और विरोधों को ध्यान में रखकर तमाम क्षेत्रों में किसी तरह के विकास को अंजाम न दे, तो वही लोग जो पर्यावरण के नुकसान और बायोस्फीयर क्षेत्र तथा इकोलॉजी के नष्ट होने की बात करते हैं, सरकारों पर यह आरोप भी लगाते हैं कि वह रोजगार के लिए कुछ नहीं कर रही है? ऐसे में बहस इस विषय पर भी होनी चाहिए कि पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अगर कोई सरकार अपने यहां किसी प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं देती है तो लोगों को भी एक नैतिक और जिम्मेदार जीवनशैली को अपनाना होगा, ताकि भयानक उपभोक्तावाद और रोजगार का सरकार पर इस कदर दबाव न पड़े कि वह कुछ भी करने को तैयार रहे।

[वरिष्ठ पत्रकार]

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