धर्म प्रचार के साथ लोक कल्याण का संकल्प

ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी 1008 अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने नंदप्रयाग के पास राजबगठी के गंगेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 28 Dec 2020 10:06 PM (IST) Updated:Mon, 28 Dec 2020 10:06 PM (IST)
धर्म प्रचार के साथ लोक कल्याण का संकल्प
धर्म प्रचार के साथ लोक कल्याण का संकल्प

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी 1008 अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने नंदप्रयाग के पास राजबगठी के गंगेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल दक्षिण भारत रवाना होने से पहले धर्म के प्रचार की शुरुआत करते हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में ज्योर्तिपीठ के स्वर्ण ज्योति महामहोत्सव का आयोजन हो रहा है।

शास्त्र में मान्यता है कि नंदप्रयाग से बदरिकाश्रम की धार्मिक सीमा शुरू होती है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने नंदप्रयाग के पास गंगेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक कर श्रद्धालुओं को इस स्थान की महत्ता बताते हुए भक्ति ज्ञान दिया। उन्होंने ज्याोर्तिपीठ की शंकराचार्य परंपरा पर चर्चा करते हुए कहा कि पूर्व में ज्याोर्तिपीठ कई वर्षों तक शंकराचार्य विहीन रही। तब शंकराचार्य के नैष्ठिक ब्रहमचारी ने आगे आकर बदरीनाथ की पूजा का जिम्मा संभाला था, जो रावल के रूप में टिहरी नरेश के सौजन्य से आज भी पूजा संभाल रहे हैं। उन्होने धर्म प्रचार के साथ लोक कल्याण के अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाने का संकल्प भी लिया।

मान्यता है कि दशानन रावण की तप स्थली होने के चलते इस क्षेत्र का नाम दशमोली पड़ा था, जो अब दशोली है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि इस दिव्य स्थान में प्रतिवर्ष धार्मिक आयोजन निस्संदेह सराहनीय है। उन्होंने 2021 में यहां पर शिव पुराण के साथ पवित्र नंदाकिनी नदी के किनारे काशी की तर्ज पर गंगा आरती का आयोजन करने की बात कही। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर के जीर्णोद्धार में अहम योगदान निभाने पर मंदिर के महंत माधव गिरी महाराज, योगेंद्र सिंह रावत व धार्मिक आयोजनों में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए कथाव्यास विजय प्रसाद पांडे को साल ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर के महंत आशुतोष पुरी, ब्रहमचारी श्रवणानंद, ब्रहमचारी रामानंद, स्वामी सदाशिव ब्रहोन्द्रानंद, केशवानंद मौजूद थे।

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