उमा के प्रयासों से बंजर भूमि भी उगल रही सोना
यह लगन और समर्पण का नतीजा ही है कि कुछ समय पहले कर्णप्रयाग के सोनला क्षेत्र में जहां पानी की कमी से ग्रामीण घर तो छोड़ो गोशाला तक नहीं बनाना चाहते थे उस जगह आज ग्रामीण नकदी फसलों की खेती में जुटे हैं।
संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: यह लगन और समर्पण का नतीजा ही है कि कुछ समय पहले कर्णप्रयाग के सोनला क्षेत्र में जहां पानी की कमी से ग्रामीण घर तो छोड़ो गोशाला तक नहीं बनाना चाहते थे, उस जगह आज ग्रामीण नकदी फसलों की खेती में जुटे हैं। यह संभव हो पाया है समाजसेवी उमाशंकर बिष्ट के जल संरक्षण के अनुभवों से।
एक दशक पहले वीरान पड़े इस क्षेत्र में अब लोग घर बना रहे हैं। इतना ही नहीं अपनी आजीविका के लिए वर्षा जल का संग्रहण कर नकदी फसलों का उत्पादन करने में भी जुटे हैं। दशोली विकासखंड के मंडल निवासी उमाशंकर बिष्ट पेशे से सामाजिक कार्यकत्र्ता हैं। वह चमोली जिले में एक संस्था चलाते हैं। हालांकि उनके गृह क्षेत्र में प्राकृतिक स्त्रोतों व वर्षा जल की कमी नहीं है। चमोली जिले की मंडल घाटी को अधिक वर्षा के चलते स्थानीय भाषा में चेरापूंजी भी कहा जाता है। बचपन से ही उन्हें वर्षा जल से ऊखड़ में भी सिचाई कर खेती का अनुभव था। लेकिन, जब उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए कर्णप्रयाग के सोनला क्षेत्र में कार्य करने का अवसर मिला तो पता चला कि क्षेत्र में पानी की किल्लत है। अपने अनुभवों के आधार पर पानी की किल्लत दूर कर जल संरक्षण को आधार बना उमाशंकर बिष्ट ने सोनला-कंडारा रोड पर हड़कोटी में ऐसी जगह पर बहुमंजिला प्रशिक्षण केंद्र बनाया। शुरू में घर बनाने को लेकर पानी की समस्या से आसपास के ग्रामीणों ने उन्हें अवगत कराया। लेकिन, उन्होंने वर्षा जल संरक्षित कर जलापूर्ति सुनिश्चित करने की मंशा जाहिर की। सेंटर में आठ कक्ष व एक मीटिग हाल हैं। 40 व्यक्तियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था इस प्रशिक्षण केंद्र में है। अक्सर यहां प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित होते हैं। साथ ही यहां पर कोशिश यह की गई है कि वर्षा जल को संरक्षित कर उसे कृषि एवं नकदी फसलों की सिचाई के उपयोग में लिया जाए।
विदेशी छात्र भी लेते हैं प्रशिक्षण
प्रशिक्षण केंद्र में हर साल स्वीडन के सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले छात्र-छात्राएं भी आकर जल संरक्षण के महत्व व तरीकों की जानकारी प्राप्त करते हैं। अपने सेंटर पर उन्होंने न केवल वर्षा जल को छत से पाइप कर सुरक्षित टैंक तक पहुंचाया। बल्कि पहाड़ियों से निकलने वाले बारिश के पानी को भी रेन वाटर हार्वेस्टिग के तहत टैंकों में जमाकर जल आपूर्ति को सुचारू रखा। वहीं नजदीकी गांवों में सामुदायिक सहभागिता के सहयोग से परंपरागत स्त्रोतों से वाटर टैंकों का सृजन कर उन्हें जल संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ाया जा रहा है। वन पंचायतों, महिला संगठनों को भी जल संरक्षण की तकनीकी की जानकारी दे रहे हैं।
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नकदी फसलों ने बढ़ाई आर्थिकी
उमाशंकर बिष्ट की पहल का ही नतीजा है कि आज सोनला क्षेत्र के हड़ाकोटी में अब फसलें भी लहलहाने लगी हैं। ग्रामीण वर्षा जल से एकत्रित पानी का उपयोग फसलों की सिचाई के लिए कर रहे हैं। यहां आलू और राजमा जैसी नकदी फसलों से ग्रामीण आजीविका भी चला रहे हैं। हड़कोटी निवासी गजेंद्र पंत ने वर्षा जल संरक्षण के जरिये पांच साल पहले खेती शुरू की। वह यहां 12 नाली भूमि पर काली दाल, सब्जियों के अलावा चारापत्ती बोकर आजीविका चला रहे हैं। गजेंद्र का कहना है कि पहले वह बेरोजगार थे। हड़कोटी में उनकी जमीन थी, लेकिन पानी की कमी के कारण वह बंजर पड़ी थी। उन्होंने बताया कि वर्षा जल संग्रहण कर जब बारिश का पानी टैंकों में एकत्रित किया और बंजर खेतों में बुआई की तो आज दाल-सब्जियों से वह अपनी आजीवका चला रहे हैं। इतना ही नहीं चारापत्ती प्रजाति के पौधे रोपकर मवेशियों के लिए चारा भी स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो रहा है।