Badrinath Dham: कल ब्रह्म बेला खोले जाएंगे बदरीनाथ धाम के कपाट, जानिए कपाट खोलने की पौराणिक परंपरा
Badrinath Dham भारत के चार धामों में भू बैकुंट धाम बदरीनाथ के कपाट खुलने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण की ओर अग्रसर होती जा रही है। कल प्रातः 415 पर ब्रह्म बेला में पूर्व निर्धारित मुहूर्त और लग्न के अनुसार भगवान बदरी विशाल के कपाट खोल दिए जाएंगे।
संवाद सहयोगी गोपेश्वर (चमोली)। Badrinath Dham भारत के चार धामों में भू बैकुंट धाम बदरीनाथ के कपाट खुलने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण की ओर अग्रसर होती जा रही है। इसी क्रम में आज सोमवार को पांडुकेश्वर स्थित योग ध्यान बदरी मंदिर में भगवान बदरी विशाल के उत्सव विग्रह उद्धव जी, यक्षों के राजा धन कुबेर जी, तेल कलश व जगतगुरु शंकराचार्य की गद्दी की विशेष पूजन अर्चना के बाद देव डोलिया बदरीनाथ पहुंची।
कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए पांडुकेश्वर से उत्सव डोली के साथ बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवन उनियाल, अपर धर्माधिकारी राधकृष्ण थपलियाल, सत्य प्रसाद चमोला, वेदपाठी भट्ट, भितला बड़वा ज्योतिष डिमरी, अंकित डिमरी, हरीश डिमरी, पुजारी गण, मंदिर व्यवस्था से जुड़े हुए हक हकूकधारी मेहता, भंडारी, कमदी, रैंकवाल थोक के प्रतिनिधि बदरीनाथ पहुंच चुके हैं। बदरीनाथ मंदिर को कपाट खुलने के लिए सिंहद्वार को फूलों से सजाया गया है। कल प्रातः 4:15 पर ब्रह्म बेला में पूर्व निर्धारित मुहूर्त और लग्न के अनुसार भगवान बदरी विशाल के कपाट विधि-विधान व वेद मंत्रोच्चार के बीच खोल दिए जाएंगे।
कपाट खुलने पर क्या होती हैं परंपराओं का निर्वहन
बदरीनाथ धाम के कपाट कल प्रातः 4:15 पर ब्रह्म बेला में खोले जाने है। बदरीनाथ को भूमि का बैकुंठ भी कहा जाता है। यहां मंदिर के कपाट खोलने की पौराणिक मान्यताओं व पारंपरिक रीति रिवाज भी विशिष्ट हैं। आखिर कौन खोलता है भगवान बद्री विशाल के द्वार पर लगे हुए ताले …,किसके पास रहती है तालों को खोलने की चाबियां…, यह सब आम श्रद्धालुओं को शायद पता न हो।
पौराणिक मान्यता व पारंपरिक रीति रिवाज के तहत कपाट खुलने से पूर्व बदरीनाथ मंदिर के सिंहद्वार के आगे सभा मंडप के मुख्य द्वार पर परिसर में विधिवत तौर पर भगवान श्री गणेश व भगवान श्री बदरी विशाल का आह्वान करते हुए धर्माधिकारी व वेदपाटियों द्वारा पूजा आरंभ कर दी जाती है। जिन चाबियों से द्वार के ताले खोले जाते हैं पहले उन चाबियों की पूजा-अर्चना की जाती है। पहला ताला टिहरी महाराजा के प्रतिनिधि के रूप में राजगुरु नौटियाल के द्वारा खोला जाता है।
उसके बाद मंदिर के हक हकूकधारी मेहता थोक व भंडारी थोक के प्रतिनिधियों द्वारा ताले खोले जाते हैं। कपाट खुलने से पूर्व जिन चाबियों की पूजा होती है, उनमें से गर्भगृह के द्वार पर लगे ताले की चाबी मंदिर प्रबंधन द्वारा डिमरी पुजारी भितला बड़वा को सौंपी जाती है और गर्भ गृह का ताला भितला बड़वा के द्वारा खोला जाता है। इस तरह गर्भगृह द्वार खुलते ही विधिवत तौर पर भगवान के कपाट छह माह के यात्रा काल के लिए खुल जाते हैं। कपाट खुलते ही सभी लोगों को भगवान बदरी विशाल की अखंड ज्योति के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त होता है। गर्भगृह में मूर्ति पर छूने का अधिकार केवल मंदिर के मुख्य पुजारी रावल को ही होता है।
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