मुखौटा नृत्य पर दिखी संस्कृति, झूमे लोग

संवाद सूत्र जोशीमठ प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्राम सेलंग में रम्माण मेले का आयोजन किया ग

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Apr 2019 06:05 PM (IST) Updated:Wed, 24 Apr 2019 06:05 PM (IST)
मुखौटा नृत्य पर दिखी संस्कृति, झूमे लोग
मुखौटा नृत्य पर दिखी संस्कृति, झूमे लोग

संवाद सूत्र, जोशीमठ: प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्राम सेलंग में रम्माण मेले का आयोजन किया गया। यह रम्माण सलूड डूंगरा में आयोजित होने वाले विश्व सांस्कृतिक धरोहर रम्माण मेले की तरह होता है।

बैशाख माह में ग्राम सेलंग की संयुक्त पंचायत इस मेले का आयोजन करती है। वर्ष के बैशाख माह की संक्रांति से इस मेले की शुरुआत होती है और विभिन्न चरणों में भूमियाल देवता की पूजा और हर दिन घर कुटे चावल से बने भात का भोग लगाया जाता है। अंत में इस मेले का समापन सांस्कृतिक विरासत रम्माण के साथ होता है। रम्माण मेले की तिथि ग्राम पंचायत की संयुक्त बैठक में निकाली जाती है और पंचायत की ओर से ऐसे दिन और बार को तय किया जाता है, जिसमें दिन बेजोड़ और बार रविवार या बुधवार हो। इसी क्रम में इस साल पंचायत ने बुधवार का समय निकाला था। रम्माण मेला पैनखंडा की पौराणिक सांस्कृतिक विरासत ही नहीं बल्कि यहां की प्राचीन जीवन पद्धति है, लोक की संस्कृति है। क्षेत्र के ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग इस मेले को देखने गांव में आते हैं और स्थानीय देवी-देवता भूमियाल से प्रार्थना करते हैं कि साल में उगने वाली फसल अच्छी हो और इस पर किसी प्रकार का दैवीय खतरा पैदा न हो। रम्माण मेले में मुख्यत: गणेश, राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान ढोल की 18 तालों पर नृत्य करते हैं। सूर्य, कानडु, ईश्वर, गाना-गानी, माल मल युद्ध नृत्य होता है तथा चोर का पात्र सबका मनोरंजन करता है। आखिर में भूमियाल देवता प्रकट होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देकर सालभर के लिए अपने मूल स्थान में विराजमान हो जाते हैं। वर्तमान में स्थानीय ग्रामीण अपने व्यक्तिगत संसाधनों से ही इस मेले का आयोजन कर रहे हैं और हर वर्ष मेले अपनी रीति-नीति से मना रहे है। पौराणिक और पारंपरिक होने के बाद भी सरकारों ने इसके संरक्षण और लोक संस्कृति को बचाने के लिए कोई कार्य नहीं किया है। इस मौके पर ग्राम गाण्या शिशुपाल सिंह भंडारी, मुरली सिंह फरस्वान, मातबर सिंह पंवार, राजे सिंह बिष्ट, कुंदन सिंह बिष्ट, राजेंद्र सिंह बिष्ट, मातवर सिंह पंवार, कल्पेश्वर भंडारी रुकमणी देवी, सरस्वती देवी, उर्मिला देवी आदि मौजूद थे।

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