रक्षाबंधन पर एक दिन के लिए खुले लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट

रक्षाबंधन पर्व पर भ्यूंडार घाटी के ग्रामीणों ने समुद्रतल से 15225 फीट की ऊंचाई पर स्थित लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट खोलकर वहां पूजा-अर्चना की।

By Edited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 11:16 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 10:59 AM (IST)
रक्षाबंधन पर एक दिन के लिए खुले लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट
रक्षाबंधन पर एक दिन के लिए खुले लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट

गोपेश्वर (चमोली), जेएनएन। रक्षाबंधन पर्व पर भ्यूंडार घाटी के ग्रामीणों ने समुद्रतल से 15225 फीट की ऊंचाई पर स्थित लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट खोलकर वहां पूजा-अर्चना की।

कोरोना संक्रमण के चलते इस बार अभी तक हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा और लोकपाल लक्ष्मण के कपाट नहीं खोले गए हैं। इसलिए भ्यूंडार घाटी के ग्रामीणों ने रक्षाबंधन पर्व पर एक दिन के लिए मंदिर को खोलने का निर्णय लिया। लोकपाल घाटी के ग्रामीणों के ईष्ट देव भी हैं। चमोली जिले में स्थित इन दोनों धाम के कपाट एक जून को खोले जाने थे, लेकिन बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते बाद में कपाट खोलने का निर्णय स्थगित कर दिया गया। 

इसे देखते हुए भ्यूंडार घाटी के ग्रामीणों ने तय किया कि रक्षाबंधन पर लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट खोलकर वहां पूजा-अर्चना की जाएगी। भ्यूंडार निवासी तीजेंद्र चौहान ने बताया कि पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के कपाट फिर बंद कर दिए गए। अगर अब भी हेमकुंड यात्रा शुरू नहीं हुई तो स्थानीय लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व नंदा अष्टमी के मौके पर भी लक्ष्मण मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे। यह परंपरा घाटी में पीढि़यों से चली आ रही है।

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वंशीनारायण को लगा मक्खन व बाड़ी का भोग 

उर्गम घाटी में स्थित वंशीनारायण मंदिर में भी रक्षाबंधन पर्व पर स्थानीय ग्रामीणों ने भगवान को मक्खन व बाड़ी (मंडुवे के आटे का हलवा) का भोग लगाया। मान्यता है कि राजा बली को दिए गए वचन के अनुसार भगवान नारायण पाताल लोक में उनके द्वारपाल बन गए थे। तब माता लक्ष्मी ने पाताल लोक जाकर राजा बली को राखी बांधी और भगवान को वचन से मुक्त कराया। बीते वर्ष तक वंशीनारायण मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर सिर्फ एक दिन के लिए खोले जाते थे। लेकिन, इस बार परंपरा में बदलाव करते हुए बदरीनाथ धाम के साथ ही वंशीनारायण मंदिर के कपाट भी खोल दिए गए। डुमक गांव के निवासी इंदर सिंह सनवाल ने बताया कि वंशीनारायण मंदिर में रक्षाबंधन पर पूजा की परंपरा पीढि़यों से चली आ रही है।

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