अमेरिका, इंग्लैंड तक पहुंच रही उत्तराखंड के चाय की महक

बागेश्वर उत्तराखंड के चाय की महक राज्य के लोग ही नहीं बल्कि इंग्लैंड और अमेरिका के लोग भी ले रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 07:59 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 07:59 PM (IST)
अमेरिका, इंग्लैंड तक पहुंच रही उत्तराखंड के चाय की महक
अमेरिका, इंग्लैंड तक पहुंच रही उत्तराखंड के चाय की महक

चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर: उत्तराखंड के चाय की महक राज्य के लोग ही नही बल्कि इंग्लैंड और अमेरिका के लोग भी ले रहे हैं। राज्य की चार फैक्ट्रियों में प्रतिवर्ष करीब 57 हजार किलो चाय का उत्पादन होता है। इन चाय बागानों से चार हजार काश्तकार सीधे जुडे़ हुए है। साथ ही करीब 1200 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर नए चाय बागान विकसित करने की तैयारी भी हो रही है।

उत्तराखंड की चाय दाíजलिग की तरह ही रोजगार का प्रमुख साधन बन सकती है। वर्तमान में राज्य में 1381 हेक्टेयर में चाय का उत्पादन किया जा रहा हैं। उत्तराखंड टी नाम से यह चाय अभी अमेरिका को सीधे निर्यात की जा रही है। इसके अलावा इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका व इराक में भी इस चाय की डिमांड है। इन देशों में कोलकाता से चाय का निर्यात किया जाता है। ब्लैक-टी और ग्रीन-टी की कीमत 1400 रुपया प्रति किलो है। इस बार 7 करोड 98 लाख की चाय का उत्पादन हुआ है।

-----

और विस्तार लेगा चाय उद्योग

हाल में सरकार ने एक हजार हेक्टेयर भूमि का चयन चाय बागानों को विकसित करने के लिए किया है। इसके अलावा 260 हेक्टेयर भूमि उद्यान विभाग की है जहां पर कोई कार्य नही हो रहा हैं। उसका भी अधिग्रहण चाय बागानों के लिए किया जाना है। अगर यह हो गया तो चाय का उत्पादन और बढ़ेगा।

------

लाकडाउन का नही हुआ असर

अप्रैल में चाय के पौधों में पत्तियां तैयार हो गई थी। शासन से अनुमति लेने के बाद टी बोर्ड ने लाकडाउन में बागानों और फैक्ट्रियों में काम शुरु कर दिया था। बोर्ड के अधीन चार हजार श्रमिक कार्य करते हैं। लाकडाउन अवधि में 3200 श्रमिकों से एक दिन छोड़कर कार्य लिया जा रहा था। प्रतिदिन 1600-1600 श्रमिकों को कार्य पर लगाया गया।

-------

उत्तराखंड की पहाड़ियां चाय बागान के लिए अनुकूल

उत्तराखंड की पहाड़ियां चाय बागानों के लिए अनुकूल हैं। दाíजलिग के टक्कर की चाय होने के कारण इसकी डिमांड भी काफी है। यहां सभी चाय के बागान में पौधों के क्लोन दाíजलिग से ही लाए गए है। इसकी खेती 12 सौ से दो हजार मीटर की ऊंचाई पर यह आसानी से हो जाती हैं।

--------

2004 में हुआ टी बोर्ड का गठन

चाय उत्पादन और मुनाफे को देखते हुए सरकार ने कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) और गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) से इस कारोबार को हटाकर 2004 में उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का गठन किया। जिसका मुख्यालय अल्मोड़ा में बनाया गया। 2013 तक बोर्ड ने 211 हेक्टेयर भूमि में चाय का उत्पादन कर 2.50 लाख किलो कच्ची पत्तियां फैक्ट्री को उपलब्ध कराई।

---------

छह साल से बंद कौसानी चाय फैक्ट्री

बागेश्वर जिले के कौसानी में 14 सालों तक रिकार्डतोड़ उत्पादन करने वाली चाय फैक्ट्री 2014 में बंद हो गई। 1994-95 में यहां करीब 10 किलोमीटर के दायरे में 211 हेक्टेयर जमीन का चयन चाय के बागान के लिए किया। संसाधनों की कम उपलब्धता के कारण उस समय केवल 50 हेक्टेयर जमीन पर ही प्रकोष्ठ ने चाय बागान विकसित किये जो कि 2001 के आते-आते पूरी तरह से व्यवसायिक चाय बनाने के लिये तैयार हो गये थे। चाय की अच्छी फसल को देखते हुए 2001 में एक निजी कंपनी गिरीराज को कौसानी में चाय की फैक्ट्री लगाने के लिये आमंत्रित किया। अनुबंध को पूरा नही कर पाने के कारण यह फैक्ट्री बंद हो गई।

--------

चार जिलों में हैं चाय फैक्ट्रियां

जिला उत्पादन

श्यामखेत नैनीताल 3000 किलो

हरि नगरी बागेश्वर 38000 किलो

बडोली चमोली 7000 किलो

चंपावत 7000 किलो --वर्जन-

चाय के उत्पादन को लगातार बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जल्द ही उत्पादन और बढ़ेगा।

अनिल खोलिया, वित्त अधिकारी, उत्तराखंड टी बोर्ड

chat bot
आपका साथी