उत्तरौड़ा से बेटी की तरह विदा किए कदली वृक्ष

पोथिग गांव में हर साल भादो महीने में होने वाली भगवती माता की पूजा की तैयारी शुरू हो गई है। उत्तरौड़ा गांव कदली वृक्ष लेने गए भक्त और देव डंगरिए पोथिग गांव लौट आए हैं। माता के जयकारों के साथ सुबह उत्तरौड़ा गांव गुंजायमान रहा और ग्रामीणों ने बेटी की तरह कदली वृक्ष को विदा किया। इस क्षण गांव के लोग काफी भावुक भी हो गए।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Jul 2021 04:16 PM (IST) Updated:Fri, 16 Jul 2021 04:16 PM (IST)
उत्तरौड़ा से बेटी की तरह विदा किए कदली वृक्ष
उत्तरौड़ा से बेटी की तरह विदा किए कदली वृक्ष

जागरण संवाददाता, बागेश्वर: पोथिग गांव में हर साल भादो महीने में होने वाली भगवती माता की पूजा की तैयारी शुरू हो गई है। उत्तरौड़ा गांव कदली वृक्ष लेने गए भक्त और देव डंगरिए पोथिग गांव लौट आए हैं। माता के जयकारों के साथ सुबह उत्तरौड़ा गांव गुंजायमान रहा और ग्रामीणों ने बेटी की तरह कदली वृक्ष को विदा किया। इस क्षण गांव के लोग काफी भावुक भी हो गए। पोथिग गांव स्थित मां भगवती का भव्य मंदिर है। जहां हर वर्ष भाद्रपद की नवरात्रों में मां की विशेष पूजा की जाती है। पूजा में मां भगवती की मूíत का निर्माण कदली वृक्ष के तनों से किया जाता है। जिसे कपकोट के उत्तरौड़ा गांव से पूरे विधि-विधान के साथ लाया जाता है। हरेला की पूर्व संध्या पर पोथिग गांव से चुनिदा लोग देवी भगवती, लाटू, गोलू, बाण, छुरमल आदि देव डांगरों के साथ पैदल कन्यूटी, पुल बाजार, कपकोट, पनौरा होते हुए उत्तरौड़ा गांव पहुंचे। शुक्रवार को हरेला पर्व की भोर में देव डांगर और दल के सदस्य सरयू में स्नान कर मंदिर पहुंचे। देवी भगवती अपने डांगर में अवतरित होकर कदली वृक्षों को पोथिग धाम को चुनाव किया। मान्यता है जिस वृक्ष को माता के द्वार जाना होता है उसमें कंपन पैदा होती है और उसी वृक्ष को पोथिग ले जाया जाता है। --------- नम आंखों से दी विदायी उत्तरौड़ा गांव के ग्रामीणों ने शुक्रवार की सुबह कदली वृक्षों को बेटी की तरह विदा किया। ग्रामीणों की आंखें भी नम हो गई। वृक्षों को चुनरी, पिछौड़ा आदि वस्त्र ओढ़ाकर विदा करने की परंपरा है। दल दो कदली वृक्षों को लेकर गैनाड़ की पहाड़ी, पन्याति, बीथी होते हुए पैदल पोथिग गांव पहुंचते हैं। भाद्रपद की सप्तमी को होगा मूíत निर्माण पोथिग गांव में कदली वृक्षों के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। दास बंधु दल को लाने के लिए ढोल-दमाऊं और नागड़े के साथ बीथी टॉप तक जाते हैं। यहां से सभी भक्त दल में सम्मिलित होते जाते हैं। पोथिग गांव के निर्धारित स्थान पर इन वृक्षों का रोपण किया जाता है। हर दिन गो-दुग्ध से वृक्षों को सींचा जाता है। भाद्रपद की सप्तमी को इन वृक्षों को मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है, जहां अष्टमी को होने वाली पूजा के लिए मां भगवती के मूíत निर्माण में इनके तनों का उपयोग होता है।

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