धरा को हरा बनाया तो छलछला उठे पेयजल स्त्रोत
पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में बागेश्वर जिले के मंडलसेरा निवासी किशन सिंह पिछले 35 सालों से जुटे हैं। अब तक वह सात लाख पौधों का रोपण कर चुके हैं। उनका 10 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। उनकी इस पहल से जंगल हरे भरे होने के साथ ही जलस्रोत दोबारा रिचार्ज होने लगे हैं।
घनश्याम जोशी, बागेश्वर : पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में मंडलसेरा निवासी किशन सिंह मलड़ा ने बेहतरीन काम किया है। 35 वर्ष से लगातार वह पौधारोपण कार्य कर रहे हैं और उन्हें सफलता भी हासिल हुई है। उनके लगाए पौध पेड़ बन गए हैं और गांव के दो प्राकृतिक स्त्रोतों में पानी निकल आया है। अभी तक वह सात लाख पौधों का रोपण कर चुके हैं और एक करोड़ पौधारोपण का उनका लक्ष्य है।
मंडलसेरा में आठ नाली भूमि में उनकी नर्सरी है। जहां से पौध तैयार होते हैं और वह निश्शुल्क वितरित करते हैं। उन्होंने 15 हेक्टेयर भूमि में शांति शहीद वन बनाया है। पांच हेक्टेयर में घना जंगल बन गया है। यहां जंगली मुर्गियां, गुलदार, खरगोश समेत विभिन्न प्रजाति की चिड़ियां निवास कर रही हैं। जंगल बढ़ने से नौला और दुनगाड़ जलस्त्रोतों में पेयजल की उपलब्धता भी बढ़ गई है। किशन मलड़ा का लक्ष्य है कि वह एक करोड़ पौधारोपण करेंगे।
आठ स्थानों पर शांति वन
किशन मलड़ा ने मेलाडुंगरी, धौलाड़ी, पंत क्वैराली, जांतोली, गैरगांव, मलाड़ीधार, लकड़ियथल और कठायतबाड़ा आदि स्थानों पर शांति वनों की स्थापना की है। यहां लगाए पौधे वर्तमान में पेड़ बन गए हैं। जिससे यहां की आबोहवा भी बेहतर होने लगी है।
नए पौधों पर किया प्रयोग
तराई और अन्य क्षेत्रों में होने वाले पौधों का बीज नर्सरी में तैयार कर किशन ने नया प्रयोग किया है। सिलिग, अर्जुन, पारिजात, चंदन, कपूर धूप, तेजपत्ता, शम्मी, लस्यूड़ा, नाग केशर, अश्वगंधा, कासनी, रुद्रांश आदि के बीज बनाकर पौध तैयार किए और वह आज बड़ी संख्या में पेड़ बन गए हैं। यह सभी पेड़ औषाधि गुणों से भरपूर हैं।
जापानी बांस की तीन प्रजातियां
नर्सरी में जापानी बांस की तीन प्रजातियां पैदा की और 2012-13 में जांतोली गांव में आई आपदा के बाद यहां रोपित किए गए हैं। लगभग पांच हजार पौधे यहां लहलहा रहे हैं। अखरोट, पांगर और मूंगा रेशम के 300 पौधे भी तैयार किए हैं। मूंगा रेशम से रोजगार के अवसर मिल सकते हैं।
अक्सर लोग पानी और पर्यावरण को लेकर केवल चिता ही •ाहिर करते हैं। धरातल पर जब काम करने की बात आती है तो अधिकांश लोग हाथ पीछे खींच लेते हैं। सरकार, प्रशासन व वन विभाग सहित ऐसे महकमे जो पौधारोपण कराते हैं, उनमें से एक प्रतिशत पौधे भी पेड़ बनने में सफल नहीं हो पाते। वर्ष 1987 में पहला पौधा पीपल का लगाया। इसके तीन साल बाद वर्ष 1990 में अपनी मां के नाम से देवकी लघु वाटिका की स्थापना की। तभी से पौधा रोपण का कार्य निरतर जारी है। अब तक सात लाख से अधिक पौधों का रोपण किया है।
- किशन सिंह मलड़ा, वृक्ष प्रेमी, बागेश्वर।