जंगल बचेंगे, महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा

महिला हाथों को काम देने के लिए उरेडा चीड़ की पत्ती यानी पिरूल का उपयोग करेगा। इसके तहत 25 किलोवाट का विद्युत उत्पादन प्लांट लगाया जाएगा जिसकी लागत 25 लाख रुपये आएगी। यहां महिलाएं पिरूल बेच सकेंगी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Nov 2021 03:40 PM (IST) Updated:Thu, 18 Nov 2021 03:40 PM (IST)
जंगल बचेंगे, महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा
जंगल बचेंगे, महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा

घनश्याम जोशी, बागेश्वर

महिला हाथों को काम देने के लिए उरेडा चीड़ की पत्ती यानी पिरूल का उपयोग करेगा। इसके तहत 25 किलोवाट का विद्युत उत्पादन प्लांट लगाया जाएगा, जिसकी लागत 25 लाख रुपये आएगी। यहां महिलाएं पिरूल बेच सकेंगी। इससे उनकी आíथकी मजबूत होगी। स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इस योजना से वनों को दोहरा लाभ होगा। पिरूल समय से जंगल से हट जाएगा। इससे जंगलों में आग लगने की आशंका काफी हद तक कम होगी। उत्तराखंड में चीड़ के पेड़ सबसे अधिक हैं। चीड़ के सूखी पत्तियों का पिरूल बनाता है। जिससे मवेशियों के बिछौने के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। सरकार ने पिरूल से बिजली बनाने की नीति भी मंजूर की है। प्रदेश में 150 किलोवाट बिजली पिरूल से पैदा करने का लक्ष्य है। जिसके तहत जिले के गरुड़ क्षेत्र के डंगोली में 25 किलोवाट प्लांट को मंजूरी मिल गई है। ऊर्जा निगम से बिजली खरीद अनुबंध भी हो गया है। सिगल विडो से एनओसी मिलने के बाद प्लांट की स्थापना होगी और बिजली बनने लगेगी।

पिरूल की ऊर्जा से उत्तराखंड बनेगा ऊर्जावान अंग्रेजी हुकूमत के समय उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में चीड़ के पेड़ों को संरक्षित किया गया। चीड़ के पेड़ों से लीसा, फर्नीचर और इमारती लकड़ी के लिए दोहन हुआ। गुलिया, छिलका आदि से आज भी स्थानीय लोग बेहतर आमदनी कर रहे हैं। गर्मियों में जंगल में आग लगने के कारण भारी नुकसान होता है। पिरूल की ऊर्जा से उत्तराखंड को ऊर्जावान बनाने की पहल शुरू हो गई है। महिला मंगल दलों को मिलेगा रोजगार पिरूल से बिजली उत्पादन के साथ ही जंगल बचेंगे। महिला और महिला मंगल दलों को काम मिलेगा। प्रतिदिन एक प्लांट से 200 यूनिट बिजली का उत्पादन होगा। वर्षभर में लगभग 25 हजार किलोवाट तक विद्युत उत्पादन का लक्ष्य है।

चार लाख हेक्टेयर वन भूमि उत्तराखंड में चार लाख हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें से 16.36 प्रतिशत में चीड़ के वन हैं। चीड़ की पत्तियां गिरने के बाद वह पिरूल बन जाता है। यहां लगा है प्लांट बेरीनाग में अवनी संस्था ने प्लांट लगाया है। राजेंद्र जोशी ने बताया कि पिरूल से उत्पादित बिजली को अपने परिसर में उपयोग करने के बाद अवशेष को यूपीसीएल के ग्रिड में सप्लाई की जा रही है। प्लांट में एक घंटे में 15 से 16 किलोग्राम पिरूल की खपत होती है। महिलाएं नजदीक के जंगलों से फांचा (ढेरी) बना कर लाते हैं। उन्हें दो रुपये प्रति किलो की दर से भुगतान करते हैं। एक बार में एक ग्रामीण औसतन 35 से 40 किलो तक पिरूल लाते हैं।

प्लांट लगाने को डीपीआर तैयार हो गई है। सिगल विडो से एनओसी मिलने के बाद 23 लाख रुपये की लागत से डंगोली मे प्लांट संचालित कर दिया जाएगा। यूपीसीएल से बिजली खरीदने के लिए अनुबंध हो गया है। बिजली के साथ ही महिला समूहों को रोजगार और जंगलों को आग से बचाया जा सकेगा। - राकी सिंह, परियोजना अधिकारी, उरेडा

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