बागेश्वर में टीकाकरण के बावजूद गलघोंटू बीमारी पर उठे सवाल
बागेश्वर में गलघोंटू बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण के ाबवजूद संक्रमण पर उठे सवाल।
जासं, बागेश्वर: गलघोंटू बीमारी से पीड़ित बालिकाओं के अभिभावक परेशान हैं। बता दें कि नवजात शिशु को दो साल का होते-होते उसे सभी टीके लग जाते हैं। डॉक्टरों के अनुसार इस टीके में गलघोंटू की वैक्सीन भी शामिल रहती है। बावजूद इसके बच्चों के बीमार पड़ने के बाद जिले के टीकाकरण पर सवाल उठाना लाजिमी है।
कपकोट ब्लॉक के चचई गांव के बाद जगथाना गांव में गले का संक्रमण फैलने से स्वास्थ्य महकमे के हाथ-पांव फूले हुए हैं। चचई में संक्रमण के चलते पूर्व में एक बच्चे की मौत भी हो गई है जबकि दो बच्चे गंभीर रूप से जिला अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। बच्चों में फैल रही गलघोंटू बीमारी को लेकर अभिभावक भी परेशान हैं। डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी को डिप्थीरिया कहा जाता है। यह जीवाणु सांस नली में तंत्र के ऊपरी भाग में मौजूद होता है। मौसम परिवर्तन के कारण (गलघोंटू) रोग की चपेट में आ सकते हैं। इसकी वैक्सीन आती है और बच्चों को लगाई जाती है। जब बच्चा डेढ़, ढ़ाई और साढ़े तीन माह का होता है, यह सभी तरह के टीके उसे लगा दिए जाते हैं। ऐसे में इस बीमारी के होने के आशंका काफी कम रहती हैं। लेकिन चचई के बाद जगथाना गांव में बच्चों को गले की बीमारी होने से टीकाकरण पर भी सवाल उठने लगे हैं।
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वैक्सीन के बाद भी गलघोंटू
मुख्य चिकित्साधिकारी डा. बीडी जोशी ने कहा कि डिप्थीरिया समेत काली खांसी आदि की वैक्सीन बच्चों को लगाई जाती है। वैक्सीन के बाद भी यह बीमारी होना गले नहीं उतर रहा है। जो बच्चे बीमारी से ग्रसित हैं, उनके अभिभावकों से संपर्क किया गया लेकिन टीकाकरण से संबंधित जानकारी उनके पास नहीं है। दस साल पूर्व टीकाकरण को कार्ड आदि भी नहीं बनाए जाते थे। जिसका रिकार्ड भी लोग नहीं रखते हैं। इन गांवों में टीकाकरण भी हुआ है।
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जिला अस्पताल से बच्चे रेफर
गलघोंटू बीमारी से ग्रसित बच्चों को जिला अस्पताल से रेफर कर दिया गया है। डॉ. मनीष पंत ने बताया कि जगथाना गांव के प्रताप सिंह की बेटियां पांच वर्षीय तनुजा और दस वर्षीय भूमिका का हायर सेंटर रेफर कर दिया गया है। दोनों को डिप्थीरिया के लक्ष्य थे। बाकी जांच के बाद पता चल सकेगा।