प्रकृति से जो लिया, उसे लौटाने को बनाए छोटे जंगल

अल्मोड़ा जिले के एक जुनूनी नौजवान ने बंजर धरा की पीड़ा को समझ प्रयोग के तौर पर पौधा लगाया। उसे वनाग्नि की लपटों से बचाया। दो-चार वर्षो में उसी पेड़ की छांव ने उसे इस कदर प्रभावित किया कि उसने बहुपयोगी पौधे लगा धीरे-धीरे जंगल तैयार कर लिया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 28 Jun 2021 07:25 PM (IST) Updated:Mon, 28 Jun 2021 07:25 PM (IST)
प्रकृति से जो लिया, उसे लौटाने को बनाए छोटे जंगल
प्रकृति से जो लिया, उसे लौटाने को बनाए छोटे जंगल

संस, अल्मोड़ा: प्रकृति ने जो हमें दिया है, उसका अंशमात्र उसे उपहार स्वरूप लौटाया जाय तो वह हमें हरियाली के तौर पर शुद्ध प्राणवायु देने के साथ ही आपदा रूपी संकट से भी बचाती है। इस जुनूनी नौजवान ने भी बंजर धरा की पीड़ा को समझ प्रयोग के तौर पर पौधा लगाया। उसे वनाग्नि की लपटों से बचाया। दो-चार वर्षो में उसी पेड़ की छांव ने उसे इस कदर प्रभावित किया कि उसने बहुपयोगी पौधे लगा धीरे-धीरे जंगल तैयार कर लिया।

जिले के कठपुडि़या कस्बे के दीप चंद्र कांडपाल एकाध नहीं बल्कि चार छोटे-छोटे जंगल तैयार कर चुके हैं। खास बात कि वह वनस्पति विज्ञानी नहीं है मगर सघन मिश्रित वन की अच्छी समझ विकसित कर चुके हैं। करीब आठ वर्ष पूर्व दीप चंद्र ने खालिस चीड़ बहूल कुरचौन वन पंचायत को संवारने का बीड़ा उठाया। पहाड़ी पर लगभग पांच हेक्टेयर क्षेत्रफल में जल व पर्यावरण संरक्षण में सहायक स्थानीय बहुपयोगी बांज, उतीश, काफल, मेहल आदि के पौधे लगाए। साथ में घिंघारू व किल्मोड़ा आदि झाड़ी प्रजातियों को जगह दी। बीच में भूकटाव रोकने में मददगार घास के इर्दगिर्द औषधीय प्रजातियों के तेजपात, आवंला, रीठा आदि के पौधे लगाए। एक दशक तक पौधों की देखभाल व वनाग्नि से बचाने का परिणाम अब सुकून दे रहा। अब ये पेड़ बनकर आसपास शीतलता व प्राणवायु देने लगे हैं।

वनाग्नि से लड़कर बचाई हरियाली

फायर सीजन में आग से निपटने को दीप चंद्र ने युवा टीम बनाई है, जो तत्पर रहती है। इसी समर्पण भाव से वह कुरचौन वन पंचायत के सरपंच भी रहे। इस वर्ष वनाग्नि से औषधीय पौधों को क्षति पहुंची। भरपाई को उन्होंने और पौधे लगाने शुरू कर दिए हैं।

यहां भी बनाए जंगल

कुरचौन ही नहीं इस नौजवान ने ग्रामीणों व युवा टीम को साथ लेकर कफलकोट, बसर व छाना गांव में भी छोटे वनक्षेत्र विकसित किए हैं। चीड़ के बीच बहुपयोगी प्राणवायु देने व भूकटाव रोकने वाले ये पौधे जंगल की शोभा भी बढ़ा रहे। 10 वर्षो में वह पांच हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके।

प्रकृति के अनुरूप व्यवहार करना ही होगा। उत्तराखंड में प्रकृति बार बार संकेत देकर आगाह कर रही है। कोरोना की दूसरी लहर ने बहुत कुछ सिखा दिया है। इस बरसात अलग अलग जंगलों में बरगद व पीपल के पौधे लगाने की योजना है।

- दीप चंद्र कांडपाल, पूर्व सरपंच कुरचौन वनपंचायत'

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