चौखुटिया के सोमनाथ मेले में निभी ओड़ा भेंटने की रस्म

तल्ला गेवाड़ की धरती मासी में लगने वाला सात दिवसीय ऐतिहासिक व पौराणिक सोमनाथ मेला रस्मी तौर पर संपन्न हो गया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 06:40 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 06:40 PM (IST)
चौखुटिया के सोमनाथ मेले में निभी ओड़ा भेंटने की रस्म
चौखुटिया के सोमनाथ मेले में निभी ओड़ा भेंटने की रस्म

संस, चौखुटिया : तल्ला गेवाड़ की धरती मासी में लगने वाला सात दिवसीय ऐतिहासिक व पौराणिक सोमनाथ मेला कोविड-19 संक्रमण के चलते महज एक दिन में निपट गया। सोमवार को मुख्य मेला प्रतीकात्मक रूप में मना। इसमें परंपरा के अनुसार दो आलों की ओर से सीमित संख्या में रणबांकुरों ने ओड़ा भेंटने की रस्म निभाई। मेला स्थल पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही अन्य गतिविधियां नहीं हुई। वीर रस के प्रतीक ढ़ाल-तलवार व सरंकार नृत्य भी देखने को नहीं मिला।

मासी का सोमनाथ मेला पाली पछाऊं क्षेत्र का प्राचीन व पौराणिक मेला है। गत वर्ष से मेले पर कोरोना का साया पड़ा है। सोमवार को मेले की रस्म पूरी सादगी से मनाई गई। मेले की परंपरा के अनुसार दोपहर करीब दो बजे मासीवाल आल के रणबांकुरों ने सीमित संख्या में नगाड़-निशानों के साथ जोश-खरोश से रामगंगा नदी में पहले पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटा। इसके बाद ही कनौणी आल की ओर से पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म अदा की गई। कोरोना संक्रमण को देखते नगाड़े-निशानों के साथ दोनों आलों के गांवों के ग्रामीण नहीं पहुंचे।

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इन्होंने ने निभाई रस्म

सोमनाथ मुख्य मेले में मासी आल की ओर से थोकदार हरीश चंद्र मासीवाल, शिव दत्त मासीवाल, राम स्वरूप, विनोद मासीवाल, संतोष मासीवाल, गोपाल मासीवाल व ललित मासीवाल और कनौणी आल से प्रधान गिरधर बिष्ट, दीपक वर्मा, चंदन बिष्ट, ललित बिष्ट, नवीन, राहुल बिष्ट, भूपेंद्र, जितेंद्र व मनोज बिष्ट ने भागीदारी की।

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सल्टिया सोमनाथ से भी जाना जाता है मेला

मासी का सोमनाथ मेला कुमाऊं के प्राचीन मेलों में शुमार है। पूर्व में इसे व्यावसायिक मेला भी कहा जाता था, जो तब 11 दिनों तक लगता था। अपने उत्पाद बेचने के लिए यहां दूर दूर से व्यवसायी आते थे। धीरे धीरे मेला सात दिन में सिमट गया। हालांकि मेले का यह स्वरूप आज भी बरकरार है। सोमनाथ के मुख्य मेले के एक दिन पूर्व रात का मेला लगने से इसे सल्टिया सोमनाथ मेला नाम से भी जाना जाता है।

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नहीं दिखे लोक संस्कृति के रंग

सोमनाथ मेला दो आलों से जुड़ा है। इसमें उत्तराखंड की पारंपरिक लोकविधाएं यथा झोड़ा गायन, भगनौल, न्यौली-चांचरी व सरंकार नृत्य के साथ ही लोकसंस्कृति के विविध रंग दिखते हैं, लेकिन अबकी कोरोना संक्रमण के चलते सभी गतिविधियां बंद रही।

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