पटाल युग की वापसी से लौटेगी सांस्कृतिक पहचान

ऐतिहासिक नगरी की अल्मोड़ा की पटाल संस्कृति इसे देश में विशिष्ट बनाती है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 13 Mar 2021 11:01 PM (IST) Updated:Sat, 13 Mar 2021 11:01 PM (IST)
पटाल युग की वापसी से लौटेगी सांस्कृतिक पहचान
पटाल युग की वापसी से लौटेगी सांस्कृतिक पहचान

संस, अल्मोड़ा : ऐतिहासिक नगरी की अल्मोड़ा की पटाल संस्कृति इसे देश में विशिष्ट बनाती है। करीब 500 वर्ष पूर्व चंद राजवंश ने जब चम्पावत से अपनी राजधानी अल्मोड़ा स्थानांतरित की तो अनूठे पत्थर यानी पटाल के फर्श बिछा बाजार स्थापित की। उसी बहाने विरासत में मिली कत्यूरकालीन प्रस्तर शैली का संरक्षण व उसे विस्तार देने का बीड़ा भी उठाया। मगर कालांतर में आधुनिक चकाचौंध कहें या संरक्षण के अभाव में लापरवाही, धरोहर में मिली पटाल संस्कृति को सहेज कर नहीं रखा जा सका। अब पालिका बोर्ड ने डीएम नितिन सिंह भदौरिया की पहल पर प्रस्ताव पास करा अल्मोड़ा में इतिहास बन चुकी पटाल वाली बाजार को पुन: पुराने स्वरूप में लाने का खाका खींचा है। इस पर इतिहासकार व बुद्धिजीवियों व व्यापारी नेताओं ने 'दैनिक जागरण' से विचार साझा कर अपनी खोई पहचान वापस लाने की सराहनीय पहल करार दिया।

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पटाल को हटाने से हमारी परंपरा का हृास ही हुआ। पटाल हमारी पहचान रही हैं। बाजार में फिर से पटाल बिछने से भावी पीड़ी संस्कृति से रूबरू होगी। कोटा स्टोन में वह चमक नहीं। इसे तो लोग चोटिल ही हुए। अपनी परंपरा को जिंदा रखना है तो पटाल संस्कृति को वापस लाना चाहिए।

- प्रो. इला साह, विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र, एसएसजे परिसर अल्मोड़ा

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अल्मोड़ा की पाटाल बाजार यहा की सांस्कृतिक पहचान रही है। अनेक गीतों में इसका वर्णन देखने को मिलता है। बाजार में पटाल बिछने से पुरानी रौनक लौट आएगी। हमारी परंपरा को बचाने के लिए बाजार में पटाल को बिछाया जाना स्वागतयोग्य कदम है। अच्छी पहल भी है।

- लता पाडे, संस्कृति कर्मी

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बाजार को प्राचीन स्वरूप में लाने की पहल सराहनीय है। अल्मोड़ा का 500 साल पुराना इतिहास रहा है। इसमें पाल संस्कृति का विशिष्ट स्थान था। देश विदेश के पर्यटक ऐतिहासिक स्थलों के साथ ही पटालों की खूबी जानने पहुंचते थे। कोटास्टोन की तुलना में पटाल ज्यादा आकर्षक होते हैं।

- वीडीएस नेगी, इतिहासविद् एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा

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ऐतिहासिक बाजार में दोबारा पटाल बिछाने की योजना काबिलेतारीफ है। इससे नगर की खूबसूरती में चार चांद लगेंगे। पटाल हमारी सांस्कृतिक पहचान रही है। पालिका को नगर में छोटे छोटे पार्किग जोन भी बनाने चाहिए। लोग पैदल बाजार घूमेंगे। पटालों का महत्व समझेंगे।

-सुशील साह, व्यापार मंडल अध्यक्ष

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