दिलीप कुमार की यादें : जब तक बनारस में संघर्ष की शूटिंग चलती रही यूसूफ मियां की दावतें ताज के जरिए खिलती रहीं

दिलीप साहब जब वाराणसी में अड़ गए कि अब घास-पात को हाथ नहीं लगाऊंगा। पराठा व कबाब तो अपने चाहने वाले ताज भाई के हाथ का खाऊंगा। अल्ताफ बताते हैं कि अब्बू को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गई। शूटिंग चलती रही होटल से उनका नानवेज जाता रहा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 07 Jul 2021 08:02 PM (IST) Updated:Wed, 07 Jul 2021 08:02 PM (IST)
दिलीप कुमार की यादें  : जब तक बनारस में संघर्ष की शूटिंग चलती रही यूसूफ मियां की दावतें ताज के जरिए खिलती रहीं
1960-65 के दशक में फिल्म संघर्ष की शूटिंग के लिए दिलीप साहब काशी आए

वाराणसी [कुमार अजय]। भीड़ भरे नई सड़क चौराहे से दालमंडी होते हुए चौक की ओर बढ़े तो लगभग दो ढाई सौ कदमों के बाद एक ऐसी जगह आएगी जहां रोस्टेड चिकन व तपते तवे पर नाचते सुर्ख कबाबों की खुशबू से आमिष भोजियों की चहल कदमी बरबस ही ठहर जाएगी। ढाबा टाइप यह दशकों पुराना होटल यूं तो ताज होटल के नाम से पुकारा जाता है पर इसकी मशहूरी का सेहरा अब भी फिल्मी दुनिया के बेताज बादशाह दिलीप कुमार (जनाब यूसूफ खान) के सिर ही बांधा जाता है। मुतमईन रहें इस ढाबे में यूसूफ मियां (जो आज हमारे बीच नहीं रहे) कि न तो फीसद भर भी हिस्सेदारी है, ना तो मालिकाना, न ही कोई किराएदारी। फिर भी ढाबे की दहिनवारी दीवार को लाखों कद्रदानों की आंखों के नूर दिलीप साहब मरहूम की एक शानदार तस्वीर पूरे अदब व एहतराम के साथ हमेशा सजी पाई जाती है।

थोड़ी देर को बुतपरस्ती के इल्जाम से बरी रखें तो कहने से परहेज नहीं कि यह नायाब छवि यहां फरिश्तों सी अकीदत पाती है। दिलीप साहेब के आज दुनिया से परदा कर लेने की खबर सुनते ही बेजारी की हालत में हम सबसे पहले पहुंचे ताज होटल जहां आज इस तस्वीर को फूलों से फिराजे अकीदत पेश की जा रही थी। पूछने पर पता चला कि ताज होटल की दरो दीवार को 75 साल पुरानी इस तस्वीर से सजाने वाले, दिलीप साहब के हर अंदाज पर वारे-वारे जाने वाले उनके जबरदस्त फैन और होटल के मालिक मोहम्मद ताज भाई खुद भी बीते जून महीने में दुनिया को अलविदा कह गए। उनके साहबजादे मोहम्मद अल्ताफ बताते हैं-हम सबकी नजर में यह महज एक तस्वीर नहीं एक जज्बा है..., एक कहानी है। इसमें अबूझे रिश्तों की गरमाहट और एकतरफा ही सही बेपनाह मोहब्बत की रवानी है। बताते हैं अल्ताफ, मेरे वालिद दिलीप साहब और मशहूर गायक मोहम्मद रफी को टूट कर चाहते थे। उनकी फनकारी के लोहे को दुनिया में अव्वल मानते थे। इसीलिए पूरा हिंदुस्तान घूमने के बाद उन्होंने बड़ी मशक्कत के बाद छांट-बीन कर ये दोनों तस्वीरें होटल की दीवार पर फ्रेम कराईं। यह रोजाना का हालहवाल था कि एक तरफ दुकान अपनी रौ में चलती रहती थी।

दूसरी तरफ काउंटर पर अब्बू को घेरे हुए दिलीप साहब के कद्रदानों की जमात में से दिलीप साहब की बेलौस अदाकारी की किस्सा गोईयां निकलती रहती थीं। अल्ताफ बताते हैं 1965-70 के दौर की बात, जब यहां संघर्ष फिल्म की शूटिंग के लिए दिलीप कुमार अपनी यूनिट के साथ बनारस आए और बातों ही बातों में दालमंडी वाली अपनी दुकान का जिक्र सुना। जनाब दिलीप साहब अड़ गए इस जिद पर कि अब घास-पात को हाथ नहीं लगाऊंगा। पराठा व कबाब तो अपने चाहने वाले ताज भाई के हाथ का खाऊंगा। अल्ताफ बताते हैं कि अब्बू को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गई। जितने दिन शूटिंग चलती रही होटल से उनका नानवेज जाता रहा, अब्बा के पास तारीफों का डोला भी हर रोज उधर से आता रहा। बताया कि दुनिया से रुखसती से पहले भी अब्बा ने हम सबसे वादा लिया कि आइंदा भी ये दोनों तस्वीरें होटल में इसी तरह जगमगाती रहेंगी। मेरी एकतरफा मोहब्बत के किस्से सुनाती रहेंगी।

संघर्ष से उभरकर आए, दिलो-दिमाग पर छाए

एक नेता होने के साथ ही शहर में इनसाइक्लोपीडिया के नाम से मशहूर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अशोक पांडेय दिलीप साहब को श्रद्धांजलि देते हुए भी बीते दौर का जिक्र करते हैं। बताते हैं सन 1960-65 के दशक में फिल्म संघर्ष की शूटिंग के लिए दिलीप साहब काशी आए और शूटिंग के दौरान उन्हें यहां के पंडों का विरोध झेलना पड़ा। वे बताते हैं कि फिल्म की कहानी के केंद्र में मुख्य रुप से पंडों की ज्यादतियों को ही विषय बनाया गया था। सही किंतु खरी बात दिल को चुभती ही है। यहां के पंडे भी हो-हल्ले पर अमादा हो गए। किसी तरह शूटिंग पूरी हुई, फिल्म जब रीलिज हुई तो चौक के चित्रा टाकीज पर हंगामा करके पंडों ने पहले दिन का पहला शो रुकवा भी दिया। बाद में दिलीप साहब के प्रशंसकों की लामबंदी के आगे अवांछनीय तत्वों के हौसले पस्त हो गए।

एक खूबसूरत इत्तेफाक गंगो-जमुनी धारा में भींगा हुआ सा

सबसे ज्यादा फिल्मी भजन लिखे शायर सकील बदायूंनी ने, सबसे ज्यादा भक्ति संगीत संवारा संगीत नौशाद ने, सबसे बड़ी संख्या में फिल्मी भजन गाए मोहम्मद रफी ने, सबसे ज्यादा भजन फिल्माए गए यूसूफ खां यानी अपने दिलीप साहब के किरदारों पर।

chat bot
आपका साथी