World Ethnic Day : भदोही के राजकुमार श्रीवास्तव नाट्य मंचन से सहेज रहे भारतीय संस्कृति और सभ्यता की थाती
भदोही के ज्ञानपुर नगर के कुंवरगंज पुरानी बाजार निवासी राजकुमार श्रीवास्तव। माता-पिता से विरासत के रूप में मिली लोक कलाओं के जरिए नाट्य मंचन को नया आयाम दे रहे हैं। युवाओं सहित आने वाली पीढ़ी में भारतीय संस्कृति व सभ्यता का रंग भरने में भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
भदोही, जेएनएन। पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति को अपनाने के लोभ में एकल होते परिवार तो कमजोर होती रिश्तों की डोर। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति व सभ्यता से लोगों की टूटती डोर को मजबूत करने में पूरे मनोयोग से जुटे हुए हैं ज्ञानपुर नगर के कुंवरगंज, पुरानी बाजार निवासी राजकुमार श्रीवास्तव। माता-पिता से विरासत के रूप में मिली लोक कलाओं के जरिए न सिर्फ नाट्य मंचन (नौटंकी कला) को नया आयाम दे रहे हैं। युवाओं सहित आने वाली पीढ़ी में भारतीय संस्कृति व सभ्यता का रंग भरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कई विख्यात रंगकर्मियों के साथ नाटक का मंचन भी किया है।
भले ही सामाजिक परिवेश बदलता गया लेकिन उन्होंने अपनी संस्कृति व सभ्यता को नहीं छोड़ी। लोक कलाओं की सारी विधाओं में पारंगत राजकुमार श्रीवास्तव डा. लक्ष्मीनारायण का अंधा कुंआ हो या फिर डा. भारतेंदु द्विवेदी का उपन्यास अंधेर नगरी अथवा मुंशी प्रेमचंद की कफन, पूस की रात, फातिहा, मंत्र, ईदगाह, नमक का दरोगा, मंगल सूत्र अन्य साहित्यकारों के विविध उपन्यास। उसका नौटंकी रूपांतरण कर नाट्य मंचन करा चुके हैं। उनके रूपांतरित नौटंकी को प्रदेश व देश के तमाम कलाकार महोत्सवों में मंचित कर रहे हैं तो संगीत नाटक एकेडमी उत्तर प्रदेश व दिल्ली तक में मंचित हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि आजादी के लड़ाई में पिता लक्ष्मीनारायण गजल के रूप में आजादी के तराने लिखा करते थे तो माता विजयलक्ष्मी देवी लोकगीत। इसके लिए पिता जी को ब्लैक लिस्टेड भी किया जा चुका था। वर्ष 1954 में एक दिसंबर को जन्म लेने के बाद बचपन में उन्हें ननिहाल प्रतापगढ़ में रहना पड़ा। ननिहाल में लोक कला व संस्कृति की सारी विधाएं मौजूद थी। जिसके चलते उन्हें बचपन से ही लोक कलाओं की जानकारी थी। पढ़ाई के दौरान वह इलाहाबाद में बालसंघ आकाशवाणी से जुड़े तो युग वाणी, पंचायत घर, पनघट व गृह लक्ष्मी से भी जुड़कर लोक कलाओं में प्रतिभाग करते रहे हैं। नौटंके स्वयं शोध कर नाट्य मंचन के लिए लोक कलाकारों को मंच देने के कार्य के चलते उन्हें संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की ओर से फेलोशिप कमेटी का सदस्य बनाया गया था।
मिल चुका है सम्मान
लोक कला व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उन्हें जहां वर्ष 1984 में साहित्यकार डा. महादेवी वर्मा द्वारा जहां लोक कला रत्न सम्मान से विभूषित किया था तो उन्हें लोक नाट्य शिरोमणि, लोक कला महर्षि, लोक साहित्य महर्षि सहित कई अन्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी उपलब्धियों के लिए वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।