श्राद्ध और तर्पण : स्त्रियों को भी है तर्पण का अधिकार, शास्‍त्रों में स्त्रियों को समानता का अधिकार

मीना शुक्ला के कबाइलियों द्वारा अपहरण और मीना से अमीना बना दिए जाने की त्रासद कथा है। वृद्धावस्था में वही मीना अपनी आंखों के सामने मारे गए तमाम परिचित- अपरिचित भारतीयों का तर्पण करने के लिए गया आती है और मारे गए सभी लोगों का पिंड दान करती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 10:35 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 10:35 AM (IST)
श्राद्ध और तर्पण : स्त्रियों को भी है तर्पण का अधिकार, शास्‍त्रों में स्त्रियों को समानता का अधिकार
मीना शुक्ला के कबाइलियों द्वारा अपहरण और मीना से अमीना बना दिए जाने की त्रासद कथा है।

वाराणसी [प्रमोद यादव]। यह सनातन धर्म की विशेषता है कि अपने पूर्वजों और दिवंगत स्वजनों को स्मरण करने के लिए एक पूरा पखवारा ही पितृपक्ष के नाम से निर्धारित किया गया है। शास्त्र कहते हैं कि इस पक्ष में पितरों का स्मरण, तर्पण आदि करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। उनकी पुण्यतिथियों पर गरीबों,लाचारों को अन्न,वस्त्र आदि का दान करने से घर में सुख समृद्धि आती है। वैसे तो दैनंदिन पूजा में भी पितरों के तर्पण का विधान है पर जो लोग यह नहीं कर पाते हैं वे पितृपक्ष में अवश्य ही करते हैं ।

प्रख्यात साहित्यकार डा.नीरजा माधव का उपन्यास "तेभ्य:स्वधा"अपने पूर्वजों के साथ साथ दूर के दिवंगत परिचितों-अपरिचितों के भी श्राद्ध और तर्पण का आह्वान करता है । इस उपन्यास का आधार पूरी तरह शास्त्रीय है जिसमें भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से बलात विस्थापित हिंदुओं के कत्लेआम की कहानी है। भारत विभाजन के समय पाकिस्तान के बर्बर अत्याचारों से घबराए भारतीयों ने राजौरी की घाटी में शरण ली थी और रातों-रात कबायली वेश में उनका कत्लेआम कर दिया गया था। बाद में उनकी अस्थियों को ट्रकों में भरकर हरिद्वार में विसर्जित किया गया था। "तेभ्य: स्वधा" उपन्यास की कहानी भारत विभाजन के उसी त्रासदी की कहानी है जिसमें लाखों भारतीय मारे गए थे।

कहानी में बच गई थी लड़की मीना शुक्ला के कबाइलियों द्वारा अपहरण कर लिए जाने और मीना से अमीना बना दिए जाने की त्रासद कथा है। वृद्धावस्था में वही मीना अपनी आंखों के सामने मारे गए तमाम परिचित- अपरिचित भारतीयों का तर्पण करने के लिए गया आती है और मारे गए सभी लोगों का पिंड दान करती है। भारत विभाजन की स्मृति के साथ-साथ यह उपन्यास यह भी बताता है कि हमारे शास्त्र स्त्रियों को भी तर्पण का अधिकार देते हैं। इतना ही नहीं हमारे शास्त्र यह भी कहते हैं कि सातों द्वीपों अखिल ब्रह्मांड जहां कहीं भी पितर हों, वे सभी अपना-अपना श्राद्ध ग्रहण करते हैं। एक मंत्र है-

अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम् ।

आब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।

यह उपन्यास तार्किक ढंग से इन तर्पण - मन्त्रों की वैज्ञानिकता को भी व्याख्यायित करता चलता है। उपन्यास का नायक और मीना का युवा पुत्र अज्जू जब पंडा से पूछता है कि क्या आपका यह मंत्रोच्चार या पुकार सातों द्वीपों में या ब्रह्मांड में कहीं भी विचरण कर रहे पितर सुन रहे होंगे तो उसका जवाब अपनी युवावस्था में संस्कृत विषय से शास्त्रों का अध्ययन कर चुकी मीना देती है ।वह कहती है कि आज के युग में तो इसे प्रमाणित करना और आसान है। मनुष्य की सीमित बुद्धि यदि ऐसा आविष्कार कर सकती है कि किसी की आवाज टेप करके सैकड़ों वर्षो सुरक्षित रखें या रेडियो लंदन को यहां तक सुना जा सके तो उस ईश्वर की बुद्धि क्या मनुष्य से भी थोड़ी होगी? सब कुछ इसी ब्रह्मांड में ही स्थित है- शब्द, आकाश, प्राणवायु, नाद। सब कुछ। उससे परे क्या है? जहां हमारी बुद्धि नहीं पहुंच पाती उसे कुछ लोग बिल्कुल नकार देते हैं और कुछ लोग उस अदृश्य सत्ता के सम्मुख नतमस्तक हो जाते हैं! पर क्या फर्क पड़ जाएगा इससे उस शक्ति के अस्तित्व पर?

वह अपना कार्य लगातार कर रही है। हम तर्क करें या स्वीकार करें। लोक और शास्त्र भी कहते हैं के सीता जी ने फल्गु नदी के किनारे महाराज दशरथ जी को आपातकाल में बालू का पिंडदान किया था। इस के दो अर्थ हैं -सीता यानी स्त्रियों को तर्पण का अधिकार और बालू का पिंडदान यानी भाव की प्रधानता। नीरजा माधव का यह उपन्यास भारत विभाजन की त्रासदी के साथ-साथ सनातन धर्म की आस्था और विश्वास की वैज्ञानिकता को भी प्रमाणित करने का एक अनूठा प्रयास है। कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल यह उपन्यास "तेभ्य: स्वधा" भारत विभाजन का सही इतिहास बताने से लेकर भारतीय जीवन दर्शन का उदार आख्यान भी प्रस्तुत करता है।

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