Weaver strike In Varanasi : वस्त्र उद्योग को 13 दिन में 300 करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल

फ्लैट रेट पर बिजली की मांग को लेकर बनारस के बुनकर 15 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इन 13 दिनों में अब तक सीधे तौर पर 300 करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं। सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो नुकसान का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता चला जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 07:21 AM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 01:12 PM (IST)
Weaver strike In Varanasi : वस्त्र उद्योग को 13 दिन में 300 करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल
वाराणसी में बुनकरों की हड़ताल के कारण अब तक करीब 300 करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं।

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। डेढ़ दशक तक जूझने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के सार्थक प्रयास से बनारसी वस्त्र उद्योग की रंगत लौटने लगी थी। वर्ष 2014 से 2018 तक प्योर सिल्क, काटन और कढ़ुआ साडिय़ों का कारोबार करीब 32 फीसद बढ़ा। कारोबार पुरानी रंगत में लौट पाता कि इससे पहले कोरोना नाम की मुसीबत आ खड़ी हुई। छह माह इससे जूझने के बाद जब लगा कि अब बुनकर अपने पांव पर दोबारा खड़े हो जाएंगे, तो उन्हें सस्ती बिजली ही मयस्सर नहीं। फ्लैट रेट पर बिजली की मांग को लेकर बनारस के बुनकर 15 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इन 13 दिनों में अब तक सीधे तौर पर करीब 300 करोड़ रुपये के आर्डर कैंसिल हो चुके हैं। खरीदार काम चलाने के लिए सूरत व बेंगलुरु का रुख करने लगे हैं। बंदी का हल जल्द नहीं तलाशा गया तो कारोबार कई वर्ष पीछे चला जाएगा और दाने-दाने को मोहताज बुनकर पलायन को मजबूर होंगे।

वर्ष 2007 में बनारसी साडिय़ों को जीआई टैग प्रदान किए जाने के लिए आवेदन किया गया था। 4 सितंबर 2009 को जीआई पंजीकरण हुआ। इसके बाद कारोबार पटरी पर लौटने लगा। 150 रुपये रोजाना पाने वाले हथकरघा बुनकर अब 500 तक कमाने लगे। कढ़ुआ काम करने वाले हथकरघा बुनकरों की मांग अचानक बढ़ी। दक्ष बुनकरों की कमी महसूस की जाने लगी। इसकी भरपाई के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। नई पीढ़ी, खासकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाया जाने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हथकरघा और हस्तशिल्प के लिए बनारस को कई सौगातें दीं। हथकरघा के लिए वाराणसी में नौ कामन फैसिलिटी सेंटर,10 ब्लाक स्तरीय क्लस्टर, दीनदयाल हस्तकला संकुल एवं निफ्ट (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग) केंद्र इस उद्योग में नई जान फूंकने में सफल रहे। वहीं देश-विदेश में आयोजित प्रदर्शनियों में बुनकरों को भेजा जाने लगा। बुनकर बिरादराना तंजीम बाइसी के हाजी अब्दुल कलाम व चौदहों के सरदार मकबूल हसन के मुताबिक लगभग 2500 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार वाले इस घरेलू उद्योग पर करीब छह लाख परिवारों की रोजी-रोटी निर्भर है। 13 दिन की बंदी में अब तक 300 करोड़ रुपये से अधिक के आर्डर रद हो चुके हैं। सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो बुनकरों के नुकसान का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता चला जाएगा।

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