Vijay Dashami पर होती है शस्‍त्र पूजा, जौनपुर के राज हवेली में आज भी परंपरा का निर्वहन

जौनपुर रियासत के 12 वें नरेश कुंवर अवनींद्र दत्त के हाथों दशहरा पर्व पर शस्त्र पूजन होना है। इस बार लगातार दो सौवें साल में शस्त्र-पूजन का कार्यक्रम दरबार हाल में होगा। कोविड के कारण बीते वर्ष को छोड़ दिया जाए तो पूजन पर शानदार दृश्य देखने को मिलता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 09:16 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 09:56 AM (IST)
Vijay Dashami पर होती है शस्‍त्र पूजा, जौनपुर के राज हवेली में आज भी परंपरा का निर्वहन
200 साल से भी अधिक की इस ऐतिहासिक परंपरा को आज भी लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ मना रहे है।

जौनपुर, जागरण संवाददाता। विजय दशमी के दिन राज हवेलियों में शस्त्र पूजन की परंपरा है। इसी क्रम में राजा जौनपुर राजघराने में भी शुक्रवार को शस्त्र पूजन होगा। इसको लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं। दो सौ साल से भी अधिक की इस ऐतिहासिक परंपरा को आज भी आयोजन होता है। कोरोना को देखते हुए इस बार बचाव की गाइड लाइन का पालन किया जाएगा।

जौनपुर रियासत के 12 वें नरेश कुंवर अवनींद्र दत्त के हाथों दशहरा पर्व पर शस्त्र पूजन होना है। इस बार लगातार दो सौवें साल में शस्त्र-पूजन का कार्यक्रम हवेली के दरबार हाल में होगा। कोविड-19 के कारण बीते वर्ष को छोड़ दिया जाए तो पूजन पर दरबार का शानदार दृश्य देखने को मिलता है। जिसमें शहर के गणमान्य, व्यापारी, अलग लिवास में साफे की पगड़ी पहने दरबार हाल की शोभा बढ़ाते हैं। यही नहीं राजा जौनपुर के पोखरा पर मेला एवं राजा जौनपुर के हाथों रावण दहन देखने के लिए गांव देहात से आने वाली भीड़ जुटती है।

जौनपुर रियासत के शस्त्र पूजन का इतिहास : राजा कालेज के प्राचार्य डाक्टर अखिलेश्वर शुक्ला ने बताया कि जौनपुर रियासत के प्रथम नरेश राजा शिवलाल दत्त ने 1798 में विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजन एवं दरबार की शुरुआत की थी। दरबार हाल में उस समय जिलेदार (ठिकानेदार), सर्वराकार, राज वैध, हकीम, व्यापारी सहित गणमान्यजनों की उपस्थिति में शस्त्र पूजन वैदिक रीति-रिवाज से राज ज्योतिषी के निर्धारित लग्नानुसार संपन्न हुआ करता था। तत्पश्चात द्वितीय राजा बाल दत्त की धर्मपत्नी रानी तिलक कुंवर ने 1848 में पोखरे पर विशाल मेले की शुरुआत की थी। राजा जौनपुर की सवारी शाही अंदाज में हवेली से मानिक चौक, सिपाह होते हुए मेला स्थल (राजा साहब का पोखरा) तक पहुंच कर रावण दहन करने के बाद शमी पूजन करते हुए वापस हवेली पहुंचती थी।

इस दौरान राजा का दर्शन करने वालों की भीड़ देखने को जुटती थी। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। महारानी तिलक कुंवर ने इसी वर्ष (1845) में रामलीला की शुरुआत की थी, जो रामनगर में होने वाली रामलीला के तर्ज़ पर होता था। जिसका प्रारंभ राजा बाजार से होकर राजा साहब के पोखरा पर राम-रावण युद्ध के बाद रावण दहन फिर राज तिलक के पश्चात पूर्ण होता था। पंडितजी की रामलीला ने इसे जारी रखने का प्रयास किया है। वर्तमान में अनेकों घरानों, संगठनों की तरफ से शस्त्र पूजन किया जाता है, लेकिन जौनपुर रियासत के हवेली स्थित आकर्षक दरबार हाल में राज पुरोहित सहित पांच पंडितों की उपस्थिति में शस्त्र पूजन होता है।

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