जल निगम वाराणसी जिले में रडार से होगा सर्वे, पता लगाएंगे पाइप लाइनों के लीकेज और गैप
जेएनएनयूआरएम के तहत नगर में पेयजल योजना को जनोपयोगी बनाने के लिए जल निगम ने बड़ी तैयारी की है। इसके लिए हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार सर्वे कराया जाएगा ताकि जमीन के नीचे क्या-क्या है इसकी जानकारी हो जाएगी।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। जेएनएनयूआरएम के तहत नगर में पेयजल योजना को जनोपयोगी बनाने के लिए जल निगम ने बड़ी तैयारी की है। इसके लिए हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार सर्वे कराया जाएगा ताकि जमीन के नीचे क्या-क्या है, इसकी जानकारी हो जाएगी। इससे जल निगम पेयजल पाइपों में लीकेज के अलावा गैप को तलाश करेगा। इसका प्रस्ताव बनकर तैयार है और शासन को भी भेजा जा चुका है। फंड निर्गत होने का इंतजार किया जा रहा है।
प्रस्ताव के मुताबिक करीब छह करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। जेएनएनयूआरएम के तहत एक दशक पूर्व पेयजल की तीन योजनाएं बनी थीं। इसमें एक सिस वरुणा तो दूसरी सिस वरुणा पेयजल योजना बनी। तीसरी योजना घरों में कनेक्शन व मीटर लगाने की योजना थी। मीटर स्थापित करने व कनेक्शन योजना की हकीकत धांधली भरी है तो सिस वरुणा में पेयजल पाइप लाइन व ओवरहेड टंकियों के निर्माण में भी भारी गड़बड़ी की गई। जांच पर जांच हुई। 19 अफसर निलंबित हो गए तो 17 सेवानिवृत्त अफसरों से रिकवरी का आदेश हो गया। इसके बाद भी पेयजल योजना जनोपयोगी नहीं हो सकी। सिस वरुणा पेयजल योजना में अब तक 32 ओवरहेड टंकियों को भरने में जल निगम असफल रहा है तो सिस वरुणा में तो ओवरहेड टंकियों तक ही पानी नहीं पहुंच सका है। इसकी वजह पाइप लाइनों में लीकेज व गैप के कारण होने की बता कही जा रही है। इसे देखते हुए जल निगम ने ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार सर्वे कराने का निर्णय लिया है। इससे जमीन के अंदर गहराई तक कौन-कौन सी पाइप लाइनें व केबल है, कहां लीकेज है तो कहां पाइप बिछाई ही नहीं गई है, आदि की जानकारी मिल जाएगी। इस कार्य के लिए दिल्ली या मुंबई से दक्ष कंपनी को बुलाया जाएगा। इस सर्वे के लिए आरएसएसी यानि रिमोर्ट सेंसिंग एप्लीकेशन सिस्टम की ओर से प्रस्तावित किया गया है।
अमृत योजना से फंड की मांग
जल निगम ने इस फंड के लिए अम्रृत योजना से उपलब्ध कराने की मांग की है। हालांकि, अमृत योजना में फंड का संकट है। इसे देखते हुए 14वें व 15वें वित्त से उपलब्ध कराने का विकल्प तलाशा जा रहा है।
सबसे पहले बनारस में तकनीक का उपयोग
वर्ष 2017 में सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया डॉ. स्वर्णा सुब्बाराव के निर्देशन में भी वाराणसी में विकास कार्यों को लेकर इसी तकनीक से सर्वे किया जा चुका है। पिछली बार 2017 में देश में पहली बार बनारस में ही इस तकनीक से अंडर ग्राउंड मेट्रो के लिए सर्वे किया गया था। इसके बाद सीवेज योजना में इस्तेमाल हुआ है।
क्या है ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार
ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार एक भू-भौतिकीय विधि है जो उपसतह की छवि के लिए रडार का उपयोग करती है। यह कंक्रीट, तारकोल, धातु, पाइप, केबल या चिनाई जैसी भूमिगत उपयोगिताओं की जांच करने के लिए उपसतह का सर्वेक्षण करने का एक तरीका है। जीपीआर यानी (ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार) सर्वे की इस अत्याधुनिक तकनीक से बिना खोदाई कराए जमीन के नीचे की जानकारियां आसानी से मिल जाती हैं।
15 मीटर गहराई तक मिलेगी जानकारी
इस सर्वे से जमीन के नीचे 15 मीटर नीचे तक की सभी जानकारियां आसानी से मिल जाएंगी। काशी की प्राचीनता के लिहाज से यह बहुत जरूरी है कि खोदाई के समय क्षेत्र की सभ्यता का ध्यान रखा जाए। ऐसी महत्वपूर्ण जगहें भी होती हैं, जहां ऐतिहासिक धरोहरें दबी होती हैं। खोदाई में इनके नष्ट होने का खतरा अधिक रहता है। एक किलोमीटर के जीपीआर सर्वे पर करीब 10 हजार रुपये तक का खर्च आता है। इससे किसी तरह का उस क्षेत्र को कोई भी नुकसान नहीं होता है।
बोले अधिकारी : सर्वे के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया है। उम्मीद है कि जल्द ही स्वीकृति मिल जाएगी। इस सर्वे से पेयजल पाइप लाइन में गैप व लीकेज का पता लगाया जा सकेगा। छह करोड़ रुपये अनुमानित खर्च है। - एसके बर्मन, परियोजना प्रबंधक जल निगम।