जल संरक्षण : वर्षा जल की बूंदों को बचाकर ही समृद्ध होगा भूगर्भ जल, मऊ के लोग हो रहे जागरूक

वैज्ञानिक अनुसंधानों में यह साबित हो चुका है कि वर्षा जल को पोखरों जलाशयों छोटी नदियों एवं पारंपरिक जलस्रोतों में सहेजे बिना भूगर्भ जल का संरक्षण संभव नहीं है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में औसतन एक वर्ष में लगभग 40 दिन ही झमाझम बारिश होती है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 05:49 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 05:49 PM (IST)
जल संरक्षण : वर्षा जल की बूंदों को बचाकर ही समृद्ध होगा भूगर्भ जल, मऊ के लोग हो रहे जागरूक
जलस्रोतों में सहेजे बिना भूगर्भ जल का संरक्षण संभव नहीं है।

मऊ, जेएनएन। मानव जीवन की कल्पना न तो आक्सीजन के बिना की जा सकती है और न ही अन्न के बिना। दोनों की उपलब्धता बनी रहे इसके लिए सबसे जरूरी है वर्षा जल का संरक्षण। वैश्विक महामारी के बीच किस तरह आक्सीजन के अभाव में अस्पतालों के बाहर लोगों ने तड़प-तड़प कर अपनी जान दी है, इस पीड़ा को तो सभी ने करीब से महसूस किया है। जल और वन दोनों के ही अंधाधुंध दोहन का दुष्परिणाम है कि पीने और कृषि कार्य के लिए पानी के साथ-साथ पर्यावरण की भी सेहत बिगड़ती जा रही है। आक्सीजन और अन्न दोनों पर जल के अभाव में खतरा बढ़ता जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि वर्षा की एक-एक बूंद को सहेजा जाए।

वैज्ञानिक अनुसंधानों में यह साबित हो चुका है कि वर्षा जल को पोखरों, जलाशयों, छोटी नदियों एवं पारंपरिक जलस्रोतों में सहेजे बिना भूगर्भ जल का संरक्षण संभव नहीं है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में औसतन एक वर्ष में लगभग 40 दिन ही झमाझम बारिश होती है। पेयजल के साथ ही कृषि के लिए भी हमारी निर्भरता और आवश्यकता भूगर्भ जल के लिए बढ़ गई है, लेकिन संरक्षण के सभी प्रयास नगण्य हैं। इस लिए हर व्यक्ति को वर्षा जल के संरक्षण के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। एक बात स्पष्ट है कि आक्सीजन के बाद सबसे बड़ा संकट जल न सहेजने पर अन्न का आने जा रहा है। इसलिए संरक्षण के प्रति सबको तैयार रहना होगा।

भूगर्भ जल का इस्तेमाल तीन दशक पहले से कई गुना बढ़ चुका है। पोखरे-पोखरियों पर अतिक्रमण करने वालों को तत्काल वह क्षेत्र खाली कर देना चाहिए। पट चुके पोखरों को फिर से पुराने स्वरूप में भेजने की व्यवस्था हर जागरूक और पढ़े-लिखे व्यक्ति की अनिवार्य प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। स्वयं दो पोखरे की खोदाई कराने के साथ ही मैंने 100 से अधिक पौधे लगाकर आस-पास के लोगों को जल संरक्षण एवं पर्यावरण की रक्षा के प्रति जागरूक किया है।

- डा.एके मिश्र, प्राचार्य, डीसीएसके पीजी कालेज, मऊ।

शहर हो गांव हर जगह आबादी तेजी से बढ़ रही है। पहले जहां गांव या शहर में कई-कई पोखरे हुआ करते थे, वहीं अब अतिक्रमण के चलते कुछ पोखरे ही बिगड़े स्वरूप में बचे हैं। मऊ नगर पालिका क्षेत्र में लगभग एक दर्जन पोखरों का अस्तित्व बचाने के लिए मुझे एक दशक से ज्यादा शासन-प्रशासन तक लड़ना पड़ा। मखनवा पोखरी, दशई पोखरा आदि अतिक्रमण से मुक्त होकर अब पुन: पोखरी के स्वरूप में हैं। जल के दोहन के साथ-साथ संरक्षण पर भी प्रत्येक व्यक्ति को विचार करना होगा।

- छोटेलाल गांधी, श्रीगंगा-तमसा सेवा समिति, मऊ।

शहर हो या गांव, नई पीढ़ी का भविष्य अब युवा पीढ़ी के हाथ में है। बेहतर कल के लिए जरूरी है कि जल और पर्यावरण का संरक्षण आज ही से शुरू किया जाए। हमने गांव में पांच नए पोखरे खोदवाए हैं। इसमें वर्षा जल के संरक्षण का पूरा ध्यान रखा गया है। पांचों पोखरों को मत्स्य पालन से जोड़ा गया है। पोखरे तीन से चार ग्रामीण युवाओं को रोजगार दे रहे हैं। युवा पीढ़ी चाहे तो अपनी खाली जमीन को पोखरों में तब्दील कर जल संरक्षण के साथ-साथ गांव में रोजगार के द्वार भी खोल सकती है।

- रविशंकर भारत, सीए, सुल्तानीपुर, मऊ।

नदियां प्रवाहित होती रहें, इसके लिए भूगर्भ जल का संवर्धन यानि वर्षा जल का संरक्षण बहुत ही अनिवार्य है। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि गांव अथवा नगर के पोखरों या पोखरियों के चलते ही वर्षा ऋतु न होने के बावजूद नदियों में प्रवाह बना रहता है। हरे-भरे क्षेत्रों पर ही बादलों की भी कृपा होती है। सब पोखरे की खोदाई नहीं करा सकते, लेकिन पोखरों पर हो रहे अतिक्रमण को रोक कर जल संरक्षण की दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं। नई पीढ़ी को इस दिशा में आगे आने की जरूरत है।

- देवभाष्कर तिवारी, प्रधानाचार्य, डीएवी मऊ।

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