Vishwakarma Jayanti 2021 : 17 सितंबर को वाराणसी के कल-कारखानों में मनाई जाएगी देवों के आदि अभियंता विश्वकर्मा की जयंती
भगवान शिव का त्रिशूल विष्णु का सुदर्शन चक्र द्वारिका नगरी का निर्माण करने वाले जगत अभियंता भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। कल-कारखानों फैक्ट्रियों में पूजन की तैयारी शुरू हो गई है। आदि अभियंता के पूजन से सभी तकनीकी कार्य शुभ होते हैं।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। भगवान शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, द्वारिका नगरी का निर्माण करने वाले जगत अभियंता भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। कल-कारखानों, फैक्ट्रियों में पूजन की तैयारी शुरू हो गई है। भगवान विश्वकर्मा के पूजन से वास्तुदोष के साथ-साथ फैक्ट्री, कारखानों में बरकत होती है। आदि अभियंता के पूजन से सभी तकनीकी कार्य शुभ होते हैं। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से दुर्घटनाओं व आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार भाद्रपद माह की कन्या संक्रांति तिथि के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। हर वर्ष यह तिथि 17 सितंबर को पड़ती है। इस कारण इस दिन भगवान की जयंती मनाई जाती है।
यह है सृजन देवता का पूजन विधान
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार शिल्प देव भगवान विश्वकर्मा का पूजन विधान अत्यंत सरल है। विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद सपत्निक पूजा स्थान पर बैठें। इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर ओम आधार शक्तपे नम:, ओम कूमयि नम:, ओम अनंतम नम:, ओम पृथिव्यै नम: का उच्चारण करते हुए चारों दिशाओं में यह अक्षत छिड़क दें। इसके बाद पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे। दोनों लोग अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे। उसके बाद भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। इसके बाद दीप जलाएं, जल के साथ पुष्प, सुपारी लेकर संकल्प करें। भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाएं। उस स्थान पर सात अनाज रखें। उस पर मिट्टी और तांबे पात्र का जल डालें।
इसके बाद पंचपल्लव (पांच वृक्षों के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश को ढ़क दें।
अक्षत से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। फिर वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर कहें, हे भगवान विश्वकर्मा इस प्रतिमा में विराजमान होकर मेरी पूजा को स्वीकार कीजिए। इसके बाद कथा का श्रवण करें।