वाराणसी का ज्ञानवापी : अकबर के फरमान पर सजा बाबा का स्थान, इतिहासकार डा. एएस अल्तेकर की पुस्तक में सविस्तार उल्लेख

डा. एएस अल्तेकर की पुस्तक में कहा गया है कि अकबर के शासन काल में बनारस की स्थिति बदल गई थी लेकिन 1567 में शांति व्यवस्था कायम हुई। इसमें अकबर ने नई नीति अपनाकर सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव दिखाया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 09:10 AM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 11:17 AM (IST)
वाराणसी का ज्ञानवापी : अकबर के फरमान पर सजा बाबा का स्थान, इतिहासकार डा. एएस अल्तेकर की पुस्तक में सविस्तार उल्लेख
काशी में भोले बाबा का स्थान अकबर के फरमान से सजा-संवरा।

वाराणसी, जेएनएन। काशी में भोले बाबा का स्थान बादशाह अकबर के फरमान से सजा-संवरा। इसमें प्रकांड विद्वान नारायण भट्ट का संकल्प काम आया तो इसमें राजा मान सिंह व टोडरमल ने  भी महती भूमिका निभाई। इसका उल्लेख बीएचयू के ख्यात इतिहासकार डा. एएस अल्तेकर की वर्ष 1936 में प्रकाशित पुस्तक हिस्ट्री आफ बनारस में है। ज्ञानवापी क्षेत्र के पुरातात्विक सर्वेक्षण से संबंधित अपील पर बहस के दौरान वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सात मार्च 2020 को इसे न्यायालय के समक्ष रखा था। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी क्षेत्र और विश्वनाथ मंदिर की धार्मिक महत्ता का उल्लेख करते हुए दलील दी कि 15वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के कार्यकाल में राजा मान सिंह और राजा टोडरमल द्वारा मंदिर का पुनरुद्धार कराया गया था। वादी पक्ष ने मुकदमे की पूर्व में  चली सुनवाई के दौरान दाखिल 23 छाया चित्र व अन्य दस्तावेजों से अदालत को अवगत कराया।

अकबर के शासन काल में बनारस की स्थिति बदल गई थी

दरअसल, डा. एएस अल्तेकर की पुस्तक में कहा गया है कि अकबर के शासन काल में बनारस की स्थिति बदल गई थी, लेकिन 1567 में शांति व्यवस्था कायम हुई। इसमें अकबर ने नई नीति अपनाकर सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव दिखाया। इसी समय विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निमाण का प्रयास शुरू हुआ जिसका श्रेय ख्याति प्राप्त प्रकांड विद्वान नारायण भट्ट और उनके शिष्य राजा टोडरमल को जाता है।

इसमें बनारस से जुड़ी एक घटना का भी जिक्र आता जिसमें राजा मान सिंह व राजा टोडरमल मुंगेर (बिहार) की लड़ाई से दिल्ली लौटते समय काशी (ज्ञानवापी) पहुंचे और जगद्गुरु नारायण भट्ट के निर्देशन में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म कराया। इसके लिए उन्हें स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णित ज्ञानवापी महात्म्य यहां खींच लिया जिसमें भगवान शंकर ने स्वयं कहा है कि जो इस ज्ञान क्षेत्र में अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण कराएगा उसे गया के फाल्गू तीर्थ में श्राद्ध-तर्पण से करोड़ गुना अधिक फल प्राप्त होगा। उस समय देश में अकाल पड़ा था।

राजा मान सिंह व टोडरमल ने जगद्गुरु नारायण भट्ट से भगवान शिव से प्रार्थना कर वर्षा कराने का आग्रह किया। नारायण ने अधगिरा विश्वनाथ मंदिर पुनर्निमाण की शर्त रखी। अकबर का फरमान काशी में प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर देश में बारिश कराने का भरोसा दिया। राजा मानसिंह व टोडर मल अकबर बादशाह के दरबार पहुंचे तो मुंगेर की लड़ाई के साथ काशी में नारायण भट्ट के साथ वार्ता का वृत्तांत सुनाया। अकबर ने विश्वास न करते हुए भी सशर्त फरमान जारी किया कि इसके बाद काशी पहुंचने के 24 घंटे में देश में बारिश हुई तो विश्वनाथ मंदिर बनाने की अनुमति प्रदान की जाती है। फरमान मिलने के 24 घंटे के अंदर शर्त पूरी हुई। मंदिर निर्माण के लिए राजा टोडर मल ने धन की व्यवस्था कराई। नारायण भट्ट के निर्देशन में विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण वर्ष 1585 में कराया गया।

chat bot
आपका साथी